यादें मीत की

राहुल पाण्डेय ‘अविचल’-


लेशमात्र भी खुशियाँ नहीं हृदय में मेरे हैं
दीपों के इस पर्व से मुझको तनिक भी प्यार नहीँ ;
मीत हमारा साथ छोड़ क्यों चला गया ?
कैसे बताऊँ किस तरह जिया हूँ ,
बचपन के एहसासों को सीने में दबाये बैठा हूँ !
आखिर मेरा तुम साथ छोड़ क्यों चले गये?
सुनता हूँ जब बात कि तेरा मुजरिम हूँ ,
मिथ्या आरोपों से न उबर मैं पाता हूँ ।
अपना ये दर्द किसे हम रोकर के सुनाएंगे ,
वर्ष में जब यह दिन आकर के मिलता है ;
वेदना हृदय में तब असीम उमड़ती है ।
वो पल जो था साथ में बीता,
क्या वह महज एक सपना था ?
तेरी खुशियां तेरे सपने,
हम आज भी पूरी करते हैं;
खुद के लिए न जीकर,
हर बात तेरी ही सुनते हैं ।
रघुनंदन आपसे मात्र यही एक विनती है ,
यदि पुनर्जन्म मुझको देना;
फिर मिलन मित्र से हो जाये,
जीवन में उनके मुझको शामिल कर देना,
आरोपमुक्त जीवन अबकी मेरा रखना ।