सई नदी की करुण कथा : पौराणिक और ऐतिहासिक नदी मर रही है

प्रेम का प्रदर्शन कितना सही

एक मित्र का प्रश्न..

प्रश्न- प्रेम का प्रदर्शन कितना सही, कितना ग़लत है..?
कथित प्रेमी/प्रेमिकाओं के
असफ़ल होकर आत्महत्या करने जैसे निर्णय पर भी प्रकाश डालें..!

उत्तर- प्रेम में असफल कभी कोई हो ही नहीं सकता।
असफलता केवल लूट में हो सकती है प्रेम में नहीं।
प्रेम तो डिवोशन है समर्पण है उसमें कोई असफल कैसे हो सकता है।
समर्पण असफल नहीं होता, आक्रमण असफल होता है।
लुटेरा जब दूसरे पर कब्जा नहीं जमा पाता तो स्वयं को असफल अनुभव करता है।
प्रेमी तो दूसरे के कब्जे में रहने को समर्पित होता है तो असफल कैसे होगा।
इस ब्रह्मांड में कभी कोई किसी के प्रेम या समर्पण को ठुकरा नहीं सकता।
प्रेमी तो दूर से भी बैठकर उसके गीत गाता है, उसको देखकर खुश होता है, उसे सुनकर उसका अनुगमन करता है, उसकी आज्ञा मानता है, उसके अनुशासन का पालन करता है।
मीरा ने कृष्ण को प्रेम किया कृष्ण को पता भी नहीं चला क्योंकि तब कृष्ण तो प्रत्यक्ष थे भी नहीं।
द्रोणाचार्य को एकलव्य ने प्रेम किया, उनकी मूर्ति को पूजकर महान धनुर्धर बन गया।
प्रेम तो श्रद्धालु होता है, फॉलोवर होता है, अपने प्रियपात्र के गुणों को अपने हृदय में उतार लेता है।
वह कभी असफल नहीं बल्कि सदैव सफल ही होता है।
जो जिसको वास्तव में प्रेम करता है वह वही हो जाता है।
दूसरे को अपने अंतःकरण में उतार लेना ही तो प्रेम है।
प्रेम संग्राहक है आक्रामक नहीं।
सफलता तो प्रेम में ही सम्भव है और असफलता भी केवल द्वेष में ही सम्भव है।

(राम गुप्ता, स्वतंत्र पत्रकार, नोएडा)