रग-रग मे रामचरितमानस और राम

‘रामचरितमानस’ और ‘राम’ पूरे भारतवर्ष विशेषकर अवध क्षेत्र के कण-कण में और अवधवासियों के रग-रग में बसे हुए हैं।

महाकवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा अवधी बोली में लिखी हुई मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की यह गाथा हम अवधवासियों के लिए किसी धार्मिक महाकाव्य से कहीं अधिक है। रामचरितमानस हमारे लिए केवल पूज्य ग्रंथ, सुख दुःख का साथी ही नहीं बल्कि साक्षात भगवान राम का संदेश है।

इसीलिए अवधवासी किसी मनोकामना, आकांक्षा के पूर्ण होने पर रामचरितमानस का पाठ कराते हैं। किसी भी शुभ कार्य जैसे- गृह प्रवेश, मुंडन, कर्ण छेदन, शादी- ब्याह , परिवार में किसी की नौकरी लगने, पुत्र रत्न की प्राप्ति होने या किसी असाध्य बीमारी से छुटकारा पाने पर रामचरितमानस का अखंड पाठ कराने की परंपरा पीढ़ियों से रही है।

रामचरितमानस का सुंदरकांड अवध के सभी पूजा घरों का एक अभिन्न अंग है। मंगलवार के दिन सभी मंदिरों विशेषकर बजरंगबली के मंदिर में हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ होता है। इस पाठ में नर- नारी समान रूप से भाग लेते हैं और रामकथा का रसास्वादन करते हैं।

सदियों से साधु-संत, ज्ञानीजन
रामचरितमानस की ज्ञान गंगा में गोते लगाते रहे हैं । वे लोग इसका पठन-पाठन कर नित नए अर्थ समझते और समझाते रहे हैं। आश्चर्य की बात यह कि कम पढ़े लिखे लोगों, तथकथित देहातियों के लिए भी रामचरितमानस उतनी ही रुचिकर रही है । हर अच्छे -बुरे, नैतिक- अनैतिक कार्य के लिए बुजुर्ग रामचरितमानस की चौपाइयों का उद्धरण देते आए हैं। इसकी चौपाइयां –

1.भय बिनु होइ न प्रीति।

  1. जो जस करहि, सो तस फल चाखा।
  2. जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।
  3. जाको प्रभु दारुण दुख देही, ताकी मति पहले हर लेही।
  4. होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥”

आदि हम गांव-गिरांव के बड़े- बूढ़ों से लोकोक्ति की तरह बचपन से सुनते आए हैं।

रामचरितमानस वास्तव में सभी के लिए सब कुछ है। यह एक ग्रंथ नहीं बल्कि तमाम वेद पुराण का निचोड़ है-

“गावत वेद पुराण अष्टदश ।
छओं शास्त्र सब ग्रंथन को रस ।
मुनि -जन धन सन्तन को सरबस। सार अंश सम्मत सबही की।।””

इसमें एक राजा का प्रजा के प्रति, पुत्र का पिता के प्रति, भाई का भाई के प्रति, पत्नी का पति के प्रति और यहां तक कि अपने शत्रु के प्रति भी कैसा व्यवहार होना चाहिए, इसका आदर्श उदाहरण रामचरितमानस में मिलता है। इसीलिए हर पिता, पुत्र के रूप में बालक राम, हर पत्नी पति के रूप में राजकुमार राम, प्रत्येक राज्य की प्रजा राजा के रूप में अयोध्यापति राम और संपूर्ण लोक अपने आदर्श के रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम राम की कामना करता है। महात्मा गांधी ने भी आदर्श राज्य के रूप में रामराज्य की ही कल्पना की थी।

रामचरितमानस के प्रति मेरी श्रद्धा पापा के कारण हुई है। ऐसी मान्यता है कि गोस्वामी तुलसीदास ने रामाज्ञा से रामचरितमानस का लेखन कार्य आज ही की पुण्य तिथि यानी रामनवमी के दिन प्रारंभ किया था। भगवान राम के प्रकटोत्सव के अति पावन दिन इस अनमोल ग्रंथ की एक प्रति अगली पीढ़ी को सौंपते हुए मुझे अपार प्रसन्नता हो रही है ।

रामचरितमानस युगों-युगों तक हमारा मार्गदर्शन करती रहे और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की कृपा हम सब पर सदैव बनी रहे, इसी मनोकामना के साथ– जय श्री राम।।

(आशा विनय सिंह बैस, अवधवासी)