सी०बी०एस०ई० परीक्षा-परिणाम : प्रश्नों के घेरे में?..!

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


विद्यार्थी इतने मेधावी हो गये हैं— ९९% से भी अधिक अंक पाने लगे ? सच तो यह है कि सारी प्रयोगात्मक परीक्षाएँ पूरी तरह से बेईमानी पर आधारित होती हैं; क्योंकि सारे-के-सारे परीक्षक सम्बन्धित शिक्षासंस्थानों के हाथों बिक जाते हैं। उन्हें नियम के विपरीत परीक्षा-केन्द्रों-द्वारा वाहन, होटल, जलपान, भोजन, भ्रमण करने, मौज-मस्ती करने की भरपूर सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाती हैं और परीक्षार्थियों को अंक देते समय पहले से ही अंक चढ़े तालिका प्रस्तुत कर दी जाती है और एहसान के बोझ से दबे परीक्षक महोदय उन अंकतालिकाओं पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य और विवश कर दिये जाते हैं; हो जाते हैं। यदि परीक्षक ५-१०% ईमानदार रहा तो उस पर इस प्रकार का भावनात्मक दबाव डाला जाता है कि वह पूर्णांक ३० में २८, २९, ३० देने के लिए विवश हो जाता है। उसके बाद जब परीक्षक अन्तिम रूप से उस शिक्षणसंस्थान से जाने लगता है तब उसे ‘गिफ़्ट’ थमा दिया जाता है।

इस प्रकरण के सम्बन्ध में एक सचाई यह भी है कि ‘प्रयोगात्मक’ परीक्षाओं में अधिकतम अंक दिलाने और परीक्षक की आवभगत करने के लिए विद्यार्थियों से बड़ी धनराशि विद्यालय-प्रबन्धन के लोग वसूलते हैं।
दूसरी ओर, लिखित परीक्षा में भी अधिक-से-अधिक उत्तर-पुस्तिकाओं का परीक्षण कर, रुपये कमाने की भूख और होड़ परीक्षण-केन्द्रों में जाकर देखी-समझी जा सकती है। इसके लिए ‘चीफ इग्ज़ामिनर’ (एच०ई०) की प्रत्येक स्तर पर अधिकतर परीक्षक ‘चमचागिरी’ करते नज़र आते हैं; उत्तरपुस्तिका-मूल्यांकन करने के लिए जो मानक होता है, उसे भी धत्ता बताते हुए, अधिकतर परीक्षक एक-दूसरे को नीचा दिखाते हुए, अपने बाज़ारू चरित्र का प्रमाण भी प्रस्तुत करते हैं; जैसा कि कुछ दिनों-पूर्व ‘वाई०एम०सी०ए०’, सिविल लाइन्स, इलाहाबाद के मूल्यांकन-सभागार में वाई०एम०सी०ए० की शारीरिक शिक्षक श्रीमती रामश्री सिंह ने एच०ई० के रूप में अपने बेहद घटिया आचरण का प्रमाण दिया था। उस महिला ने सी०बी०एस०ई० के नियमों को ताक़ पर रखकर उत्तरपुस्तिका का मूल्यांकन कराया था। इसकी विस्तृत सूचना सप्रमाण जब मैंने सी०बी०एस०ई०, इलाहाबाद के आर०ओ० के पास भेजी तब उक्त एच०ई० रामश्री सिंह के पास सी०बी०एस०ई० की ओर से उत्तर माँगा गया है।
इससे वास्तव में, जो मेधावी परीक्षार्थी होते हैं, उनके साथ न्याय नहीं हो पाता। इसका प्रत्यक्ष प्रभाव ‘माध्यमिक शिक्षा परिषद्’ से सम्बद्ध परीक्षार्थियों के भविष्य पर भी पड़ता है।

इस सम्बन्ध में यदि कोई ‘दूध का धुला’ परीक्षक हो तो यहाँ अपना विरोध व्यक्त करे, स्वागत है।
सी०बी०एस०ई० को अपनी मूल्यांकन-पद्धति में आमूल-चूल परिवर्त्तन लाते हुए, एक आदर्श मानदण्ड-मापदण्ड की व्यवस्था करनी होगी; अन्यथा वास्तविक योग्यता के साथ छलावा होता रहेगा।

वहीं देश का मीडिया अभी इतना जवान नहीं हो पाया है कि ऐसे विषयों को अपने कन्धे पर उठा सके; अन्यथा उक्त विसंगतियों और विद्रूपताओं पर नियन्त्रण अवश्य होता। इन सबका ‘स्टिंग ऑपरेशन’ मीडिया के लोग क्यों नहीं करते?

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; २८ मई, २०१८ ई०)