ज़ुम्लेबाज़ गजोधर चाचा! काहेँ चुप हो?

आपराधिक और आडम्बरभरी बातेँ काहेँ फैला रहे हो?
कल की ‘महँगाई डायन’ को ‘डार्लिंग डायन’ काहेँ बनाकर डोल रहे हो?

कभी-कभी अपनी औरत के मंगलसूत्र के दर्द का भी हाल-चाल ले लिया करो।

आज देश मे लगभग ८० प्रतिशत की बेरोज़गारी पर मौनी बाबा काहेँ बन गये हो? आज १०० बेरोज़गारोँ मे से ८० युवा बेरोज़गार हैँ; इसपर भी तो कुछ बोलो?
तुम छियासी इंच का सीना ठोंकर नारी-स्वाभिमान की बात करते रहे; परन्तु मणिपुर मे सैनिकोँ की महिलाओँ के साथ सार्वजनिक शारीरिक दुष्कर्म पर तुम्हारे होँठ तक नहीँ हिले; काहेँ?

देश के मध्यम वर्ग के साथ भेद-भाव काहेँ कर रहे हो?
यह भी तो बताओ– पी० एम० फण्ड का घोटाला कहाँ गया?

चुनावी चन्दा लेकर काहेँ मुँह छिपा रहे हो?

तुम्हारे राजकाज मे जो भारतीयोँ पर क़र्ज़ चढ़ा है, उसपर बोलने से काहेँ कतरा रहे हो?

तुम्हारे राजकाज मे देश के बैंकोँ मे डक़ैती करके जो ‘मोदी ऐण्ड संस’ विदेश भाग गये हैँ, उनपर बोलते समय मुँह काहेँ सिला लिये हो?

‘पुलवामा काण्ड’ के शहीदोँ के नाम पर ‘एक वोट’ की भीख माँगते समय जीभ कटकर गिर क्योँ नहीँ गयी?

नोटबन्दी के नाम पर जो देश की जनता को बरगलाये थे, उसकी सच्चाई सामने आने पर चुप्पी काहेँ साध लिये हो? सौ दिनो के भीतर विदेश से काले धन लाने की बात काहेँ बिसर गये हो?

‘विकास’ के नाम पर जो ‘विनाश’ का महानाला बहा रहे हो, क्या यही ‘विकास’ है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय; प्रयागराज; २५ अप्रैल, २०२४ ईसवी।)