हिन्दी साहित्य सम्मेलन का ७५वाँ अधिवेशन सम्पन्न

शासकीय कार्योँ मे हिन्दी की उपेक्षा भी राष्ट्रभाषा के मार्ग मे बाधक– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग एवं ओडिशा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट के संयुक्त तत्त्वावधान मे त्रिदिवसीय 75 वाँ राष्ट्रीय अधिवेशन २५ जून को विश्वविद्यालय-सभागार मे सम्पन्न हो गया। इस आयोजन मे तीन सत्र आयोजित हुए :– साहित्यपरिषद्, राष्ट्रभाषापरिषद् तथा समाजशास्त्रपरिषद्।

प्रयागराज से पधारे वैयाकरण एवं भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय विशिष्ट वक्ता के रूप मे विचार व्यक्त करते हुए कहा, “हमे हिन्दी को व्यावहारिकता मे लाने और हिन्दी-अंकोँ के प्रयोग करने की आवश्यकता है, जिसके लिए हमे इसके व्यावहारिक पक्ष पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना होगा। हिंदी को प्रौद्योगिकी से जोड़ना चाहिए। कहने के लिए देश मे हिन्दी को राजभाषा के रूप मे स्थान दिया गया है; परन्तु शासकीय कार्योँ मे जिस तरह से हिन्दी की उपेक्षा की जा रही है, वह शोचनीय है और हिन्दी को राष्ट्रभाषा का रूप देने मे बाधक स्थिति भी है। इस दृष्टि से हिन्दी को राष्ट्रभाषा का रूप देने के लिए समस्त हिन्दी-संस्थानो को एक होना होगा। इस सत्र मे एस० शेषारत्नम्, प्रो० एस० शेषारत्नम्, डॉ० प्रभात ओझा, डॉ० लक्ष्मीधर दाश ने भी विचार प्रस्तुत किये। डॉ० मनोज सिँह प्रभावकारी संचालन किया।

इससे पूर्व साहित्यपरिषद् के अन्तर्गत ‘भारतीय ज्ञानपरम्परा और हिन्दी’ परिसंवाद मे रेवेंशा कॉलेज, भुवनेश्वर के पूर्व-हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ० अजय कुमार पटनायक ने अध्यक्षता करते हुए कहा– जहाँ तक हिन्दी का प्रश्न है विरासत के रूप मे इसे वेद, उपनिषद, बौद्ध, सिद्ध आदि से विपुल भाण्डार मिला था।

इसी क्रम मे डॉ० हेमराज मीणा, सुरेखा शर्मा, अनिल मेहरा आदिक ने भी अपने विचार व्यक्त किये। सम्मेलन के साहित्यमन्त्री डॉ० रामकिशोर शर्मा ने संचालन किया था।

प्रो० भरतकुमार पण्डा ने ‘समाजशास्त्रपरिषद्’ सभापतित्व किया, जिसमे डॉ० सुशील उपाध्याय, मनोहर पुण्यमभूमि, हरेराम वाजपेयी आदिक की भी वैचारिक सहभागिता रही। इस सत्र का प्रभावकारी संचालन डॉ० चक्रधर प्रधान ने किया।

अन्तिम दिन (२५ जून) समापन समारोह हुआ, जिसमे हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमन्त्री कुन्तक मिश्र ने कहा– हमारे सम्मेलन के इस अधिवेशन मे देश के विभिन्न अंचलोँ से आये हुए प्रतिनिधिमण्डल ने जिस तरह से इस त्रिदिवसीय आयोजन मे अपनी विशेषज्ञता की अभिव्यक्ति की, वह हमारे लिए गौरवपूर्ण है।

ओड़िशा केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति ने समापन-सत्र की अध्यक्षता की थी। समापन-समारोह का विद्वत्तापूर्ण संचालन प्रो० हेमराज मीणा ने किया।

इस अवसर पर तीन विद्वज्जन को हिन्दी साहित्य सम्मेलन की शीर्षस्थ मानद सम्मान ‘साहित्य वाचस्पति’ से समलंकृत किया गया तथा चौदह हिदी-अनुरागियोँ को ‘सम्मेलन सम्मान’ से विभूषित किया गया।

इस अवसर पर रजनीकान्त तिवारी (मुम्बई), हीना शाह (अहमदाबाद), भगवान त्रिपाठी (ओड़िशा), अनिलकुमार शर्मा (वर्द्धा), सुनीता शर्मा (हरियाणा), बण्डुरक्षक (नागपुर), पं० दुर्गानन्द शर्मा, डी० के० सिँह, किण्ठमणि मिश्र, पवित्र तिवारी, कृष्णकुमार पाण्डेय, राजकुमार शर्मा आदिक शताधिक हिन्दीप्रेमी उपस्थित थे।

इस पूरे आयोजन को सम्पन्न कराने मे विश्वविद्यालय की ओर से दो प्राध्यापक– डॉ० चक्रधर प्रधान और डॉ० मनोज सिँह की विशिष्ट भूमिका रही।