चलो मेरे साथ

आकांक्षा मिश्रा, गोंडा, उत्तर प्रदेश

आज , इक्कीस तारीख है । पूरा एक साल बीत गया , अपनी जिंदगी को अपनी तरह जीने की ख्वाईश भीतर ही भीतर दबी पड़ी थी । इन ख्वाइशों ने स्थान बदलने में अहम भूमिका निभाई । आहना पूरी तरह से अतीत डूब गई ।

पापा एक बार जाना चाहती हूँ , देखती हूँ लोग कैसे रहते है क्या सलीका है वहाँ का ? वहाँ की मिट्टी ,यहाँ की मिट्टी में फर्क क्या है ?

पापा ! कोई फर्क नही है ? सिर्फ सोच में फर्क हैं ।

आहना इस जबाब से पूरी तरह सहमत नहीं हुई ।

कमरे में बिस्तर पर पड़ी आवाक सी तेजी से चल रहे पंखे को देख रही थी । इन सत्ताईस सालों मे कुछ भी नही बदला । सुबह जागना , जागते ही कामों पर चले जाना एक मशीन की भाँति जिंदगी चली जा रही है , इसका परिणाम सुखद होगा इसी उम्मीद पर ।

आहना ! आहना …सुनो जरा शाम हो गई तुम चाय रख दो ।
अनमने मन से आहना गैस पर चाय रख देती है । चाय खौलने लगती है उधर जाने कितने सवाल आहना के मन मे चल रहे होते है ? इन सवालों का जबाब दे पाना मुश्किल है ।

तभी मां रसोई घर में किसी काम से जाती है , आहना को करीब से देखती हुई , तुम और तुम्हारी चाय की हालत एक जैसी है ।

अरे ,चाय बन गई है , देती हूँ .चाय की अमल बेचैन कर देती है ।
तुम जाना चाहती हो ,
हाँ

तो जा सकती हो ,’कोशिश यही करना पैर जमीं पर रखना हमेशा सुकून मिलेगा तुम्हें ।’
आहना मां की बातों से चौंक जाती है ।
जाना चाहती हूँ एक बार ,अच्छी तरह जानती हूँ ।
हमारी परवरिश कैसी हुई है ? हमारी मिट्टी किस जगह को चुन सकती है ?
मां मिट्टी कभी जगह नही चुनती आहना !तुम बड़ी हो समझदार भी, तुम्हें रोकना अब तुम्हारे साथ नाइंसाफी होगी ।
सब कुछ छोड़कर प्रसन्न रहा करो , हर चीजे अच्छी लगेगी ।
तुम्हारे पापा को समझा नही सकती ।
वह अच्छा करेगे ,
किसी को समझाने की जरूरत नही है ।
सामान मैने रख लिया है किसी चीज की जरूरत होगी फोन करूँगी भाई से भिजवा देना ।
जरूर ,
जहाँ रहोगी सब मिल जायेगा ।
ज्यादा परेशान नही होना चाहिए ।
फिर भी …
आहना जा रही है तुमने क्या सोचा ?
जिसे जाना है वो जायेगा ही ।

फिर इतनी तकलीफ क्यूं जाने देना चाहिए ।
हाँ ।

सुबह की बस है ,तुम जल्दी उठ जाना सोती मत रहना ….।
उठ जाऊँगी जल्दी ।
आहना के मन मे अजीब सी हलचल होने लगी ।
जाना है ।
आहना दी दरवाजा खोलिए
बाहर से रीना की आवाज से तंद्रा टूट गई,
दी बाहर आइए ,चले छत पर बहुत अच्छा मौसम लग रहा है ।
आप बाहर बहुत कम निकलती है ,,दिखाई ही नही देती है ! लगता है जैसे आप यहाँ रहती ही नही ।

नही,रीना ऐसी बात नही है ,हल्की सी मुस्कान लिए हुए आहना ने दरवाजा खोल दिया ।
वाकई बाहर बहुत सुंदर शाम हो आई थी ,छत पर हल्की सी खुशी मिली जैसे कई दिन से आहना हँसी भूल गई हो ।
ढलती शाम इस शाम की लालिमा कह रही हो कल मिलूँगी ,कल फिर मिलूँगी …… यही मेरा इंतजार करना …….।
रीना कुछ फोटो अपनी मोबाइल मे लेकर दिखाने लगी ।

आहना कभी फोटो देखती कभी अतीत का आइना कैसा वर्तमान है न आगे जाने की इच्छा ,न पीछे लौट कर आ पाना उन यादों को ला पाना !

एक अलग सा वक्त पुकारता हुआ जा रहा है गति से
तुम चलो मेरे साथ मेरी बनकर
आहना चुप सी
बुदबुदाने लगी
चलूँगी वक्त के साथ
चलूँगी ………..।