कहते हैं कि वनवास के दौरान पांडव कुछ समय के लिए भौंती के जंगलों में रहे थे। उस दौरान आस- पास के क्षेत्रों में पानी की समस्या के समाधान हेतु वह कन्नौज के हसरैन क्षेत्र के कंसुआ झील से निकलने वाली नदी को मोड़कर कानपुर की तरफ लाये थे। चूँकि पांडव इसे लाये शायद इसीलिए इसका नाम पाण्डु नदी पड़ गया।
पांडु नदी कन्नौज जिले से निकलकर उत्तर- प्रदेश के फर्रूखाबाद, कानपुर नगर, कानपुर देहात, फतेहपुर जिलों के कई क्षेत्रों व गांवों से होकर गुजरती है। अपने प्रवाह के दौरान यह नदी कई क्षेत्रों, गांवों को सिंचित करते हुए अंत में फतेहपुर में गंगा की चिर जलधारा में विलीन हो जाती है। इस दौरान यह लगभग 120 किलोमीटर का सफर तय करती है।
इस नदी पर अंग्रेजों ने एक शानदार पुल बनाया था जिसमें नीचे से नदी बहती थी, ऊपर से नहर गुजरती है। नहर के एक पाट से वाहनों के आने जाने की सड़क है और उसके नीचे से पैदल यात्रियों का रास्ता है। अभियांत्रिकी की अद्भुत मिसाल यह पुल अभी भी पूरी तरह सुरक्षित है और कार्य कर रहा है।
अभी कुछ दिन पूर्व अपनी चचेरी बहन से मिलने कानपुर के सवायजपुर गांव गया तो इस नदी को देखने का लोभ संवरण न कर सका। किंतु इसकी हालात देखकर अत्यंत पीड़ा हुई कि यह नदी आज प्रदूषण का भीषण दंश झेल रही है।
कानपुर नगर में प्रवेश से पूर्व इस नदी का जल हरा है , किंतु कानपुर की कई फैक्ट्रियों से निकलने वाले कचरे और पनकी पावर प्लांट से निकलने वाली टनों गर्म फ्लाई राख इसे गंदे नाले में बदल देते हैं। पानी गंदला और काला हो जाता है। नदी में प्रदूषण बढ़ने और अतिक्रमण के कारण इसकी कोख में पलने वाले जीव जंतु भी मर रहे हैं।
कभी एक सदानीरा नदी के रूप में बहने वाली पांडु नदी आज एक बरसाती नदी बनकर रह गई है। जो नदी कभी अपने जल से कई क्षेत्रों को हरा- भरा करती थी, वह आज विलुप्त होने की कगार पर है।
पृथ्वीदिवस
(आशा विनय सिंह बैस)
नई दिल्ली, 8920040660