उन्हें यक़ीं है सत्ता में फिर से क़ाबिज़ होने का
कतिपय काव्यपंक्तियाँ डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक : वो दिल का क़ातिम (काला) है और कातिल भी, क़ातिब (लेखक) ने उसे क़ादिर (शक्तिशाली) बना दिया। दो : अपनी क़ुबूलियत पे तुम इतराओ मत, तीन : उन्हें […]
कतिपय काव्यपंक्तियाँ डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक : वो दिल का क़ातिम (काला) है और कातिल भी, क़ातिब (लेखक) ने उसे क़ादिर (शक्तिशाली) बना दिया। दो : अपनी क़ुबूलियत पे तुम इतराओ मत, तीन : उन्हें […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बेजान सड़क पे, इक गुमनाम दिख रही, अनजान-सी हक़ीक़त, बदनाम दिख रही। —–इक पैग़ाम ‘उनके’ नाम—– उस हवा को सलाम, जो लहरा रही है ज़िन्दगी, उस धूप को सलाम, जो खिला रही […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक: उजड़ा हुआ चमन, उजड़ा रहे तो बेहतर है, खिलता हुआ गगन, खिला रहे तो बेहतर है। गुमनाम लोग की दुनिया भी क्या दुनिया, अब वे खुले आम हो जायें तो बेहतर […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- मातृभूमि की सेवा का प्रण, तुम फ़िर से वीर निभा जाना। देख रहा हिन्द निरीह दृष्टि हो, तुम फिर से धरा में आ जाना। नित बिद्ध हो रही भारत माँ, तुम फिर […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बेशक, चाहो पर सराहो नहीं, बेशक, पाओ पर निभाओ नहीं। मुद्दत बाद ज़िन्दगी सयान हुई, उसे सब्ज़बाग़ दिखाओ नहीं। मस्त-मौला हूँ और फक्कड़ भी, भूले से कभी आज़्माओ नहीं। मनमाफ़िक मर्ज़ी का […]
जगन्नाथ शुक्ल (इलाहाबाद) तू मुझसे प्रेम करता है ,या रक्तिम आँसू रुलाता है, कभी अग्नि से जलाता है,कभी तेज़ाब से झुलसाता है। अरे! मानव अहंकारी दुर्बुद्धिकारी, सद्बुद्धि पैदा कर, जो ही तुझको करे पैदा, तू […]
प्रभांशु कुमार लतपथ गहनों आैर चमकीले वस्त्रों से लदे फदें बारातियों को आैर राह को जगमगाने के लिए पेट्रोमैक्स सिर पर रखे उजास भरते अपने आसपास वे गरीब बच्चे खुद मन में समेटे है एक […]
प्रभांशु कुमार मेरे अंदर का दूसरा आदमी मेरा दूसरा रुप है वर्तमान परिदृश्य का सच्चा स्वरूप है जिस समय मैं रात में सो रहा होता हूं उसी समय मेरे अंदर […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बेचारा है, दिल तोड़ नहीं पाता, बेचारा है, दिल छोड़ नहीं पाता। नफ़रत क़रीने से सजा के रखता है, बेचारा है, दिल जोड़ नहीं पाता। हर सम्त लोग मुखौटे लगाये हैं बैठे, […]
अमित धर्मसिंह उनकी आँखों में पानी था लाज-शर्म का, रिश्तों की लिहाज का, अपनी हालत पर शर्मिंदगी का पानी भरा था उनके रोम-रोम में। उनके दिल में छुपे दुखों के पहाड़ों से फूटते रहते थे […]
प्रभाँशु कुमार- वह आदमी निराश नही है अपनी जिन्दगी से जो सड़क के किनारे लगे कूड़े को उठाता हुआ अपनी प्यासी आँखो से कुछ ढूंढ़ता हुआ फिर सड़क पर चलते हंसते खिलखिलाते धूल उड़ाते लोगों […]
प्रभांशु कुमार, इलाहाबाद दुनिया से जाने के बाद रह जाना चाहता हूं दीवार पर टंग जाने के बजाए किसी के लिए किसी अच्छे दिन की अविस्मरणीय स्मृति बनकर रह जाना चाहता हूं धरती की […]
जगन्नाथ शुक्ल (इलाहाबाद) मञ्चों से नित गीता गाता, औ पढ़ता क़ुरान की आयत हूँ। विविध धर्म औ भाषाओं संग, मैं वो जीता – जागता भारत हूँ। सुबह सवेरे भरता अज़ान, औ पूजता नित ऐरावत हूँ। […]
जगन्नाथ शुक्ल (इलाहाबाद) कविते! तेरे तरकश में, मेरी भी वाणी बनी रहे। उदात्त भाव से नित मेरी, मधुर रागिनी ठनी रहे। कर्कश न हो शब्द कभी, नित प्रेमभाव से सनी रहे। रिश्तों की हो नित […]
उपासना पाण्डेय ‘आकांक्षा’, हरदोई (उत्तर प्रदेश) मेरा क्या अस्तित्व होता , अगर आप जैसा पिता मुझे न मिलता, हर ज़िद को पूरा किया, हर पल मेरी खुशियों का ख्याल रखा । आप परेशान होते हो, […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बेपर्द: की बात करने लगे, बातों को वे कतरने लगे। ख़ुद को तूफ़ाँ समझते थे, बुलबुला से भी डरने लगे। वक़्त ने चाल चल दी है, हर गोटी को परखने लगे। देखते […]
नेहा द्विवेदी- जनता की ये जुबां है, भावों का आसमां है । मातृ भाषा हिंदी भारत की आत्मा है । अगणित भाषा वाले हिंद की पहचान है हिंदी मां भारती की शान है, सम्मान है […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय आओ! अब कड़ुए घूँट पीने की आदत डालें, आओ! अब मरकर भी जीने की आदत डालें। हवा अच्छी हो या बुरी उसे तो बहना ही है, आओ! अब चलते रहने की आदत […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद सूरज तो कुछ उकता-सा गया है, दिन अब कुछ मुरझा-सा गया है। ये कण्ठ नहीं है अवरुद्ध तुम्हारा, धरा को क्यों उलझा-सा गया है।। सूरज तो………………………… अब मुक्त करो निज बाहुपाश से, […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय सारी उम्र खपा दी उसने अपनी मुहब्बत में , तरक़्क़ी सारी गँवा दी उसने मुहब्बत में। ज़ख़्मों पर नमक ही हर बार मिलता रहा, अपनी दोस्ती भी लुटा दी उसने मुहब्बत में। […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय अँखिया के कजरा हेराइ गइल सजनी, हथेलिया के मेहँदी रिसाइ गइल सजनी। बहरिया-बहरिया हर ओरिया उजार बा, घरवा के दियवा बुझाइ गइल सजनी। जोहत रहि गइनी अन्हेरिया में अंजोरिया, एही तरी अँखिया […]
नेहा द्विवेदी- हे चिर महान भारत की शान मानवता के अविचल प्रहरी। युग-युग से हो तुम अचल खडे़ तुमको पग भर न डिगा सके तूफां जो आये बड़े-बड़े हे सत्यब्रती, संघर्षरती हे वैरागी, योगी तपसी […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय (सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय; २८ जनवरी, २०१८ ईसवी) यायावर भाषक-संख्या : ९९१९०२३८७० ई०मेल : prithwinathpandey@gmail.com बिखरे पंख, टूटे पाँव कटे हाथों से दर्द की दवा माँग रहे हैं। […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ‘परिवारवाद’ अलापते, वे परिवारवादी हो गये, जाति-ज़हर घोलते वे, अब समाजवादी हो गये। “बहुजन हिताय” ग़ायब, ख़ुद के हित हैं साधते, पालकर अम्बेडकर भूत, वे दलितवादी हो गये। राममन्दिर बिसर गये, अब […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय साँठ की कोई गुंजाइश न रहे, गाँठ की कोई गुंजाइश न रहे। ‘सच’ से ऐसी दोस्ती कर लो, ‘भीड़’ की कोई गुंजाइश न रहे। महफ़िल सजाओ ऐसी अपनी, ‘मै’ की कोई गुंजाइश […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय – जोगिया रंग रँगाये, देखो! सन्त आ गया, प्रथा दम तोड़ती, देखो! ‘अन्त’ आ गया! खेतों की हरियाली, अब मुँह है छुपा रही, इधर रुग्ण परिवेश, उधर वसन्त आ गया! काया अब […]
सुधीर अवस्थी ‘परदेशी’ (पत्रकार हिन्दुस्तान)- यू०पी० में मचा है हाहाकार चच्चा और भतीजे रूठे, भाई-बाप खिसियायि रहे | हमका दई देव जो भी मांगी, यहु भौकाल दिखाइ रहे | कुर्सी के पीछे मची तबाही, घर-भीतर […]
राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’ ऐसे कलुषित समाज में लेकर जन्म वर्ण कुल सब मेरा श्याम हो गया । बड़ी दूषित है सोच कर्म भी काले हैं गहन तम में अस्तित्व इनका घुल गया । देखकर यह […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद स्वागत है ऋतुराज तुम्हारा, हम बैठे थे खाली- खाली ! आम्रमञ्जरी खिल रही हैं, सुरभित हो रही डाली-डाली! अरहर ,चणक हैं हिले – मिले, सरसों झूम रही फ़ूली – फ़ूली! कोयल रागिनी […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद क़दम ताल सीमा पे करते, भारत माता के लाल हैं! राष्ट्र मुकुट न झुकने पाये, रखे चरण निज भाल हैं! विपदा राष्ट्र के पथ जो आयी, दुश्मन को किये बे-हाल हैं! अरि […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद नव रश्मियुक्त मार्तण्ड उगा, अब नव विहान की बारी है! कान्तियुक्त ज्वाज्वल्यमान, कितनी उत्तम तैयारी है! कर दो मुखरित सकल धरा, इतनी अरदास हमारी है! भ्रमर कमर कलि की छुए, निरखे ये […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद नयन अयन उस ओर हैं, जिस ओर मेरे सरकार ! सज़ल नेत्र चातक फिरें, करत फिरें मेघ तकरार! वंशी बजी जो श्याम की, मेघ करने लगे फटकार! भीगीं लटें जो सजन की, […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद उस ओर विधायकों के काफिले हैं गुजरते, जिस ओर गरीबों की बस्तियाँ नहीं पड़तीं! उस ओर से गुजरते हैं इनके उड़नखटोले, जिस ओर बारिश में कश्तियाँ नहीं चलती! उस ओर ही बसाते […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय हथेलियों में छुपा लेता हूँ ख़ुद को और निहाल हो जाता हूँ। हर ज़रूरत से दूर ख़ुद को रखकर अपनी कैफ़ीयत की मंज़रकशी करने लगता हूँ। शब्दों के लिहाफ़ में नख-शिख बन्द […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद चाहे गुरु पर्व कहो लोहड़ी या फिर मकर संक्रान्ति, सूर्य देव ओट में हैं कुहासा ने मचा रखा है क्रान्ति! राष्ट्रभक्त और विद्वत्जन लोभवश सब हैं चुप बैठे, देखो चोर उचक्के नेता […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- आइए जनाब! मैं प्यार बेचता हूँ। किसिम-किसिम का प्यार तरह-तरह का प्यार भाँति-भाँति का प्यार नाना प्रकार का प्यार विविध प्रकार का प्यार। आप प्यार, आम प्यार, ख़ास प्यार मर्दाना प्यार, जनाना […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय मैं उस वतन का चराग़ हूँ, जहाँ आँधियाँ-आँधियाँ। चीर-हरण होता हर प्रहर, चलती जहाँ अब गोलियाँ। विस्थापित शराफ़त हो रही, नंगों की दिखतीं टोलियाँ। कार्पोरेट का डंका बज रहा, फैली हैं सबकी […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- एक : उसका दीवानापन, सितमकशीद१ लगता है, सितमगर सितमकशी२ का ऐसा इम्तिहान न ले। दो : मझधार में है सफ़ीना३, साहिल४ है दिखती दूर, किश्तीबान५ साहिबे! रुको नहीं, मंज़िल भले हो दूर। […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- साहेब! यही चुनाव है। चुनावी मौसम है, दलदल में अब पाँव हैं। हवा का रुख़ नामालूम, दो नावों में पाँव हैं।। साहेब! यही चुनाव है। हत्यारे, बलात्कारी, व्यभिचारी चहुँ ओर, धर्म, जाति, […]
आशीष सागर- कलम तोड़ने वाले अक्सर किरदार यहाँ बिक जाते है , खबर के अगले दिन ही रद्दी में अख़बार यहाँ बिक जाते हैं । ब्यूरोक्रेसी की क्या बात करे अब तमाशबीन है जनता भी, […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- एक : लम्हा-दर-लम्हा जो संग-संग चलता रहा, बूढ़ा समझ हम सबने घर से निकाल दिया। दो : कितना निष्ठुर दस्तूर है ज़माने का, काम निकल आने पे घूरे में डाल आते हैं। […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- १- ”हालात जस-के-तस” मीडिया बताता है, बाहर हो जाने का डर उसे भी सताता है। २- इज़्ज़त ख़रीद कर लाये हैं बाज़ार से कल हम, काना-फूँसी शुरू है, सेंध लगाये पहले कौन। […]
राघवेन्द्र कुमार ‘राघव’- प्रधान संपादक, इण्डियन वॉयस 24 अब तो धर्मशत्रु पहचानो, भारत कहे पुकार के । सत्ता के लालच में तुम क्यों, चरणों में हो गद्दार के ॥ कब तक छद्म देश भक्ति, भारत […]
आकांक्षा मिश्रा – ______________________________ दिसम्बर की सर्दी रजाई में दुबके हुए इंसान मायूस से आये नजर कभी भोर में चलते उस महिला को देखते , इधर के दिनों सातवां महीना चल रहा है एक साथ […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- कविता मेरी ठिठुर रही है, निष्ठुर ठण्डी आहों से। डरता हूँ वो बिछुड़ न जाए, प्रेम भरी इन राहों से।। घुटन नहीं ये प्रेम है मेरा, जानो कितना विवश हूँ मैं, जैसे […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- जब मैं जीवन का मूल अस्तित्व तलाश करने लगा तब हृदय ने अतिवादी कहा | जब मन को मन में पैठाने लगा तब शरीर ने उत्पाती कहा जब विचार का विचार से […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- शंख और अजान से होती है भोर मेरे भारत की, ये बात है हमारे अटल विश्वास और आदत की। हिन्द की शान में हम एक ही हैं जान लो ‘जगन’ बात है […]
पवन कश्यप (युवा गीतकार, हरदोई)- यदि नयन रोते रहे संताप होगा। भूल जाओगे हमें यह पाप होगा।। हरि से हरि नारद बने थे, प्रेम मे बस वह सने थे। शब्दों के फेरो में फसकर, मायूसी […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद, मो०- ९६७००१००१७ अरुणोदय हो गया शिखर में, किरणों से सुरभित हो गई धरा। पशु-पक्षी भी हो गए प्रफुल्लित, धरती का दामन है हरा – भरा। कलियां पुष्पित होकर मुसकाईं, चञ्चरीक ने किया […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- तुम्हारी पूर्णता भाती नहीं मुझे क्योंकि तुम मुझसे द्रुत गति में दूर हो रहे हो। हाँ, मैं अपूर्ण हूँ। तुम मुग्ध हो, अपनी पूर्णता पर और मैं गर्वित हूँ, अपनी अपूर्णता पर […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद बाग़ किनारे खेत है मेरा, बाग़ में है खगवृन्दों का डेरा। विविध रूप और रंग -बिरंगी , संग में लातीं अपनी साथी संगी। तरह-तरह के हैं ये गाना गाती, हर मन को […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद कविते!तेरे दृगबन्धों से न नीर बहे, मणिबन्धों से मिलकर ये पीर कहे। मेरा हृदय तेरा हृदय संश्लिष्ट होकर, क्यों दुनिया भर के ये तीर सहें । कविते!तेरे दृगबन्धों……………. अद्भुत है तुझमें यूँ […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय इतिहास के फड़फड़ाते पृष्ठ कर रहे हैं, असामयिक मौत का इन्तिज़ार और बदलता युग, वार्धक्य का एहसास करते हुए समय के चरमराते पलंग पर खाँसता है। इंसान बूढ़े होते इतिहास की […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- देश हमारा सन्त सरीखा मुकुट हिमालय है जिसका । कटि में बनी मेखला गङ्गा सागर पग धोता है जिसका।। धन्य है भारत भूमि सखे! धन्य है इसकी अतुल कान्ति। इस मिट्टी के […]
आदित्य त्रिपाठी “यादवेन्द्र”- नैन की नैन से हो रही बात है । प्रिय न जाओ अभी चांदनी रात है ॥ बावरी हूँ विरह में तुम्हारे पिया । आपके प्यार की मैं दुखारी पिया । आस […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- जीवन हो इतना दीप्ति प्रखर, चढ़ जाओ तुम उन्मुक्त शिखर। मन में न हो कोई आवेश कभी, बन जाओ हृदय के मुख्य प्रहर।। सरल हृदय के हो तुम स्वामी, मेरे मन मन्दिर […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- होठों से मुसकान उतरी कब-कैसे, उन्हें मालूम है, चेहरे पे कालिख़ पुती कब-कैसे, उन्हें मालूम है | चाहत शर्मिन्दा बन गयी और वे तमाशाई रहे, तिनका-मानिन्द ख़्वाब बिखरा कैसे, उन्हें मालूम है […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- गाँव हमारे है बड़ा निराले, जैसे धरती अमृत के प्याले। प्रेम जहाँ बसता है पग -२ में, कभी न पड़ते स्नेह में छाले।।१।। धरती बिछौना गगन है चादर, एक -दूजे का हृदय […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- हिन्दी माता की सेवा में, निज भाव समर्पित करता हूँ । अपना सौन्दर्य बढ़ाता हूँ, माता के ही नित गुण गाता हूँ। श्रृंगार,करुण औ हास्य संग, शब्द प्रसून नित अर्पित करता हूँ।। […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- कहीं लग न जाए मेरे कलेजे के टुकड़े को ठण्ड, यह सोच माँ के कलेजे में बर्फ सी जम जाती है। धूप से न झुलस जाए मेरे मासूम […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद (उ०प्र०) हे! मातृशक्ति है नमन तुम्हें, ये मेरा जीवन है दान तुम्हारा। है शत् शत् वन्दन मातु तुम्हें, स्नेह,कान्ति और मान तुम्हारा। हे!सहनशक्ति की प्रतिमूर्ति मातु, अद्भुत शक्ति सम्मान हमारा। जीवनदर्शन की […]
आरती जायसवाल (कवयित्री एवं लेखिका) माननीय जब शहर में आते हैं रास्ते साफ हो जाते हैं कूड़े -करकट के साथ -साथ आम आदमियों को हटाने में भारी मशक्कत करनी पड़ती है पुलिस बल चौकन्ना हो जाता […]
— डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- निगाहों को गुनहगार हो जाने दो, होठों को गुलरुख़सार* हो जाने दो। * गुलाबफूल-जैसे पतझर का ज़ख़्म अब भी ताज़ा है, कैसे कहूँ, मौसमे बहार हो जाने दो। नज़रें बात बना […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद शब्द बीज है काव्य सर्जन का, कागज़ पे अंकुर हो ही जाएगा। भाषा का मस्तक तिलक बनके, संस्कृति उजाला कर ही जाएगा। कहीं पे ये सदा उन्मुक्त दिखता है , तो कहीं […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- डोली ‘हिन्दुत्व’ और ‘विकास’ की उठी, ‘न्यू इण्डिया’ के लुटेरे कहार देखिए। देशहित दूर अब स्वहित पास-पास, सौ डिग्री चुनावी बुख़ार देखिए। धर्म से हैं शून्य, पर ज्ञान बाँटते, खिंची हिन्दू-मुसलिम दीवार […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद पथ प्रवीण होता अनुरागी, जो संघर्ष निरन्तर करता है। पथ पार चला जाता बैरागी, जो ध्यान समर्पित रखता है।। चलो ‘जगन उस पार चले , इस पार नहीं कुछ रखा है। केवल […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय क्लान्त-विश्रान्त एकाकी पथिक के कर्ण-कुहरों में अनुगूँजित स्वर-माधुर्य उसे साथ ले निसर्ग-पथ पर गतिमान् है | मोक्ष की अभीप्सा में इहलोक-परलोक की अन्तर्यात्रा गन्तव्य की अवधारणा के साथ संपृक्त होती संलक्षित हो […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद जब जीवन ज्योतिर्मय हो जाए, मम हृदय समर्पित हो जाए। इस कोलाहल से मिले शान्ति नाथ! निज मार्ग प्रवर्तित हो जाए।।१।। सत्य सदा मम उद्गार बने, जीवन में न असत्य की रार […]
राहुल पाण्डेय ‘अविचल’- लेशमात्र भी खुशियाँ नहीं हृदय में मेरे हैं दीपों के इस पर्व से मुझको तनिक भी प्यार नहीँ ; मीत हमारा साथ छोड़ क्यों चला गया ? कैसे बताऊँ किस तरह जिया […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- चलो सब मिल मनाएं भैया दूज, देवि समान सभी बहन को पूज! भाई बहन का है रिश्ता अनूठा , भैया अब मत बहना पर खीझ!! चलो…………………………………..।।१।। आज के दिन बहना घर जाना, […]
पिहानी कस्बे के युवा शायर सलमान जफर पूरे देश के आल इंडिया मुशायरों में अपनी पहचान कायम करने के बाद अब विदेश तक पहुंच रहे हैं। आगामी 27 अक्टूबर को […]
सौरभ कुमार पटेल (संगीतकार)- मैं तुझे शाम को रोज़ मिलता रहूँ, तू मुझे शाम को रोज़ मिलती रहे। ज़िन्दगी मेरी चाहत की मोहताज़ है, तेरी चाहत मुझे रोज़ मिलती रहे।। फूल खिलते रहें खुशबू आती […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय हे ईश्वर ! सचमुच, हम कितने चतुर मूर्ख हैं | मतभेद से मनभेद तक की यात्रा यों ही समाप्त नहीं हो जाती; मन-मस्तिष्क उद्वेलित कर देते हैं रक्त-शिराओं को | मस्तिष्क के […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद अब तो चरागों को तेल नहीं मिलते अब तो मिट्टी के वो ढ़ेर नहीं मिलते। बचपन कॉन्वेंट के बस्तों से बदल गया, अब तो ख़ुशी के दो बोल नहीं मिलते।। ————————————————- फ़रेब […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- देख मनुज मैं तो पौधा हूँ, आज मैं फिर से औंधा हूँ। तूने काटा मेरे रग- रग को, तेरे लिए मैं केवल धंधा हूँ।। तूने तो मेरा तन लूट लिया, मेरे मन […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद ०६/१०/२०१७- राजनीति हो गई भिखारिन , जनता के लहू की प्यासी है। चोर उचक्के राजा बन गए , सारी जनता हो गई दासी है।। देख रहा कुचक्र को वह तेरे, जो ऊपर बैठा […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- मैं चैत्य हूँ गाँव के किनारे का, आज जरूरत है मुझे सहारे की! मैंने देखा गाँव के बच्चों को बड़े होते, लड़ते – झगड़ते और हँसते – रोते ! मैं भी ख़ास […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- कैसे-कैसे बाबा अब दिखने लगे हैं, कामिनी ले बाँहों में दिखने लगे हैं। भगवा वस्त्र बेईमानी की चादर में, आश्रम में बहुरुपिये दिखने लगे हैं। कौन है साधु और शैतान यहाँ, चरित्र […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- ग़म-ख़ुशी का फ़र्क़ महसूस होता है, अपना भी न कोई महसूस होता है | सौग़ात में मिलता रहा एक दर्द-सा, रिश्तों में दरार अब महसूस होताहै | जवानी ने भी छीन लीं […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- आसमान में उड़ते बादल, रूप बदलकर आते बादल | लेकर चेहरे काले-भूरे, कभी गरज चौंकाते बादल | संग हवा के दौड़ लगाते, यहाँ-वहाँ दिख जाते बादल। देह अकड़ती ठण्ढ से जब, गुप-चुप […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय हिन्दी के नाम पर, हिंगलिश की मंडी है | सिखाता शुद्ध हिन्दी, तो कहते घमंडी है | मगर मैं तो कहता, वे सारे पाखंडी हैं | पल में झुलसने वाली गोबर की […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय- चिन्दी-चिन्दी रातें पायीं, फाँकों में मुलाक़ातें पायीं | मुरझायीं पंखुरियाँ देखीं, कही-अनकही बातें पायीं | बेमुराद आँसू छलके जब, याद पुरानी घातें आयीं | दुलराते बूढ़े ज़ख़्मों को, यादों की रातें घहरायीं […]
राज सिंह चौहान (ब्यूरो प्रमुख हरदोई)- तुम लहरों सी टकराती हो, मैं मिट्टी सा बह जाता हूँ। देखोगे सतह में आकर जो, एक दूजे में मिल जाता हूँ।।1 तुम क्षण-क्षण में कता-कतरा, मुझे काट-काट ले […]
राघवेन्द्र कुमार राघव- मिल जाए हमको माल किसी का, मैं हो जाऊँ मालामाल । चाहे हो वो चोरी का, या दे दे वो ससुराल । कण्डीशन लग जाए कोई, चाहें जो हो हाल । मिल […]
मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’ लखनऊ (युवा गीतकार) अल्फ़ाज़ बदलने चाहिए जज़्बात बदलने की ख़ातिर | हर सोच बदलनी चाहिए हालात बदलने की ख़ातिर || अग़लात कुचलने हों अगर अस्हाब बदलने ही होंगे | आदाब बदलने […]
राघवेन्द्र कुमार राघव- अंगों में भरी शिथिलता नज़र कमज़ोर हो गयी । देह को कसा झुर्रियों ने बालों की स्याह गयी । ख़ून भी पानी बनकर दूर तक बहने लगा । जीवन का यह छोर […]
मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’, लखनऊ- किस कारण कोई स्वाँग रचो || किस कारण कोई स्वाँग रचो || निज भाषा है अपना मान | हिंदी से ही है सम्मान || अपनी भाषा ही है मूल | […]
✍ माज़ अंसारी (गौसगंज, हरदोई)- दी खुशियां तूने जो मुझको, भुलाना न आसान होगा, मेरी हर कामयाबी पे, तेरा ही नाम होगा। रखूँगा तेरे हर तर्ज़ को, खुद में समां कर इस तरह, भूल कर […]
पवन कश्यप (युवा गीतकार, हरदोई)- अधखिले पुष्प जब वो खिले ही नहीं । कल मिलेंगे उन्होंने ये वादा किया, एक अरसा हुआ वो मिले ही नहीं। कैसे आती बसन्ती ऋतु प्यार की मखमली शाम […]
मनीष कुमार शुक्ल ‘मन’, लखनऊ- ज़िन्दगी इक मर्ज़ है मौत ही बस इक दवा है | ज़िक़्र तेरा यूँ लगा हो रही जैसे दुआ है || मंज़िलों को छोड़कर रास्तों की ख़ाक छानी | वो […]
तेरी इन झील सी आंखों में जो ये नूर दिखता है, तेरे चेहरे की मदहोशी में ये मन चूर दिखता है । कहीं जुल्फों का गिर जाना, कहीं अधरों का खिल जाना । कहीं मासूम […]
राघवेन्द्र कुमार “राघव” हरे नोटों के सामने, पतिव्रत धर्म बिकता है । नारी की इस्मत बिकती है, पायल का राग बिकता है ।। खुल जाते हैं बन्द दरवाजे, चन्द सिक्कों की खनकार से। बिक जाते […]
सुजीत कुमार सुमन (गीतकार)- फिर से जिहादी झूले में झूल गए हो हामिद क्या संवैधानिक पद की गरिमा भूल गए हो हामिद क्या ? संविधान का धर्म राष्ट्र है सिर्फ एक इस्लाम नहीं राज्यसभा की […]
अभय सिंह निर्भीक (ख्यातिलब्ध ओजस्वी कवि, लखनऊ)- आओ हम सब भारत घूमें इसकी पावन रज को चूमें नाना से प्यारी नानी तक दादी की आनाकानी तक माँ की ममता के आंचल तक काले टीके के […]