शिक्षा और रोजगार

इंसान का इंसान से हो भाईचारा।
यही पैगाम हमारा, यही पैगाम हमारा।।
और इस भाईचारे का न्यायोचित उपाय है- “शिक्षा और रोजगार”।
अर्थात्-
1● समाज में 25 वर्ष की आयु तक प्रत्येक नागरिक को मानवीय पात्रता के विकास हेतु विद्यालय की निःशुल्क, अनिवार्य, अबाध्य संवैधानिक सुव्यवस्था।
2● और उसी विकसित पात्रता के अनुसार पदनियुक्ति द्वारा मानवीय समाज में प्रति परिवार समुचित रूप से एक रोजगार/नौकरी के अवसर व संसाधनों की संवैधानिक सुव्यवस्था।

दुनिया भर के मानवीय समाज में रोजगार के चार संसाधन होते हैं-
1● कृषिभूमि
2● वाणिज्यिकपूंजी
3● राजकीय वेतन
4● नेतृत्वभत्ता

रोजगार के उपरोक्त संसाधनों के वितरण की न्यायोचित व्यवस्था है-
◆क्षमतानुसार पात्रता,
◆पात्रतानुसार कर्म,
◆कर्मानुसार पद,
◆पदानुसार सम्पदा।

क्षमता ही पात्रता की नींव है।
मनुष्यों में क्षमताओं के विकास की चार संभावनाएं होतीं हैं-
◆शारीरिक क्षमता (क्रियाशक्ति) PQ
◆मानसिक क्षमता (वाक्शक्ति) IQ
◆भावनात्मक क्षमता (व्रतशक्ति) EQ
◆चेतनात्मक क्षमता (विवेकशक्ति) SQ

उपरोक्त क्षमतानुसार पात्रता का परीक्षण करके पात्रतानुसार पदनियुक्ति की न्यायोचित व्यवस्था अपनाकर मानवीय जीवन जिया जा सकता है-
◆शारीरिक क्रियाशक्ति द्वारा कृषिकर्म।
◆मानसिक वाक्शक्ति द्वारा वाणिज्यकर्म।
◆भावनात्मक व्रतशक्ति द्वारा राज्यकर्म (चपरासी से लेकर राष्ट्रपति पद)।
◆चेतनात्मक विवेकशक्ति द्वारा नेतृत्वकर्म (पँच-सरपंच से लेकर प्रधानमंत्री पद)।

वास्तव में पात्रतानुसार कर्म-पद-सम्पदा का समुचित वितरण ही न्याय है, इंसाफ है।
इंसाफ के विना इंसान सुखी नहीं।
सुख के बिना शांति नहीं रह सकती।
शांति के बिना कोई भाईचारा कभी ठहर नहीं सकता।
स्पष्ट है कि मानवीय समाज में न्याय अनिवार्य है।
न्याय के बिना समाज में उथल-पुथल, आंदोलन, क्रांति, हड़ताल, संघर्ष, युद्ध, आक्रमण, लूट, डकैती, अपहरण, कब्जा, हत्या, मारपीट, शोषण, उत्पीड़न, गुलामी, नौकरी, दासता कभी समाप्त नहीं हो सकते।
इसलिए

उठो! जागो! न्याय को प्रतिष्ठित करो..!

शिक्षा और रोजगार को उपरोक्तानुसार न्यायपूर्वक सुव्यवस्थित करो..!!
✍??

-(राम गुप्ता, स्वतंत्र पत्रकार, नोएडा)