देश के साहित्यकारो! आग उगलने का समय आ चुका है

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

आप गीत, ग़ज़ल, कविता, दोहा, विचार आदिक में आदर्शवाद की बात बिलकुल न करें; तीज-त्योहार के वर्णन करने में समय का अपव्यय न करें और न ही अपने भीतर के कायरपन को प्रकट करें। आज देश घोर संकट और संत्रास की स्थितियों से गुज़र रहा है; समय-सत्य रचनाओं को ही जनमानस स्वीकार करना चाहेगा। अपनी रचनाओं में आग बो दें। जिन साहित्यकारों में यदि देश की लुटेरी, निर्मम-निर्दय-निकृष्ट सरकार की बीभत्स नीतियों और निर्णयों के विरुद्ध लिखने का साहस न हो तो वे ‘चूड़ियाँ’ पहनकर अपने घरों में बैठें। ऐसे कायर और निरीह साहित्यकारों से ‘कल’ का समय उनके पुरुषार्थहीन होने पर प्रश्न करेगा।

अब समय आ गया है, हम सभी साहित्यकार लेखनी के माध्यम से आग उगलते हुए, “करो या मरो” को जीवन्त करने के लिए कृत-संकल्प हों।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १७ अप्रैल, २०२१ ईसवी।)