सुर-साधिका स्वर-सजनी को हमारा प्रणाम।
—- डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
१९४१ ईसवी में जब लता १२ वर्ष की थीं तभी उनके अस्वस्थ पिता का देहावसान हो गया था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अतीव शोचनीय थी। मृत्यु से पूर्व पिता ने लता से कहा था– बेटी! मेरे दुखी मन को इतना विश्वास है कि तेरे गले में ‘गंधार’ है। अपने परिवार के लिए मैं इतनी ही सम्पत्ति छोड़े जा रहा हूँ।
पिता का कहा हुआ एक-एक शब्द सत्य सिद्ध हुआ है।
१२ वर्ष की अवस्था में मास्टर विनायक की फ़िल्म-कम्पनी ‘प्रफुल्ल पिक्चर्स’ में लता को पहली बार अवसर मिला था। १९४१ ईसवी में उन्होंने ‘ओरिएण्टल फ़िल्म्स’ के बैनर पर बनी फ़िल्म ‘सीधा रास्ता’ के लिए अपना पहला गायन किया था। पार्श्व-गायन के क्षेत्र में लता जी शीर्षस्थ और अप्रतिम रही हैं। २६ जनवरी, २००१ ईसवी को लता जी को ‘भारतरत्न’ से समलङ्कृत किया गया था |
★ विवरण :—- ‘भारतरत्न-विभूतियाँ– पृष्ठ-संख्या : १७३; लेखक : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय