
हमने ऊपर दिख रही सामग्री मे अशुद्ध शब्द-व्यवहार को यथाशक्य सकारण शुद्ध किया है। इसमे जिसकी रुचि हो, वे ग्रहण कर सकते हैं; किसी प्रकार की कोई बाध्यता नहीं। वैसे भी शब्द मे शक्ति होती है तो वह आकाश का सीना चीरते हुए, ‘ब्रह्माण्ड’ मे व्याप्त हो जाता है।
● व्याख्यान
◆ व्याख्यान मे ही ‘विशेष’ के अर्थ मे ‘वि’ उपसर्ग जुड़ा हुआ है, इसलिए अलग से ‘विशेष’ का प्रयोग अशुद्ध है। एक ही शब्द मे एक ही अर्थ से युक्त दो उपसर्ग का प्रयोग व्याकरण-सम्मत नहीं है।
● उत्कृष्ट शोधपत्र-लेखन के नियम/अनुशासन
◆ प्रभावी का अर्थ है, किसी पर बलपूर्वक पड़ जाना; ‘हावी’ हो जाना, जो कि यहाँ उपयुक्त नहीं है।
◆ पहली बात, ‘रणनीतियाँ’ शब्द का प्रयोग अशुद्ध है; क्योंकि ‘नीति’ स्वयं मे बहुवचन का संज्ञा-शब्द है। यदि कोई कहता है कि ‘रणनीतियाँ’ शुद्ध प्रयोग है तो क्या वह यह कहने के लिए सहमत है कि ‘राजनीतियाँ’ भी शुद्ध शब्द है।
दूसरी बात, शोधपत्र-लेखन के लिए ‘रणनीति’ नहीं बनायी जाती, बल्कि निर्धारित मानदण्ड के अन्तर्गत लेखन किया जाता है। रणनीति बनाने के लिए व्यक्ति अन्य संदर्भ मे स्वतन्त्र होता है, जबकि शोधपत्र-लेखन के लिए व्यक्ति निर्धारित अनुशासन का ही पालन करता है। ‘रणनीति’ का शाब्दिक अर्थ है, ‘रण की नीति’/’युद्ध की नीति’। अब प्रश्न है– लेखनकर्म/लेखन-कर्म मे ‘युद्ध की नीति’ कहाँ से आ गयी? ज्ञातव्य है कि बहुसंख्यजन ‘रणनीति’ को रूढ़ बनाकर अपना प्रायोगिक उल्लू सीधा करते आ रहे हैं तथा हमारे तथाकथित व्याकरणाचार्यों का समूह मौन धारण कर, उनका अनुमोदन करता आ रहा है।
● डॉ०
◆ हिन्दी मे लाघव चिह्न . (बिन्दी) नहीं है, ० (शून्य) है। देश मे जितने भी विश्वविद्यालय, समस्तरीय शैक्षिक संस्थान एवं शेष शैक्षणिक संस्थान हैं, उनमे जितने भी अध्यापिकाएँ- अध्यापक हैं, वे सब समवेत रूप मे ‘डा.’/’डॉ.’, ‘प्रो.’ इत्यादिक शब्दों मे इसी तरह का चिह्न प्रयोग करते आ रहे हैं।
● ख्यातिलब्ध विषयविशेषज्ञा/विषय-विशेषज्ञा/विषय की विशेषज्ञा
◆ डॉ० पूर्णिमा जोशी एक महिला हैं, इसलिए ‘विशेषज्ञ’ के स्थान पर ‘विशेषज्ञा’ होगा, फिर यह कोई ‘पदनाम’ नहीं है। ‘विषय विशेषज्ञा’ निरर्थक शब्द है; क्योंकि दोनो ही शब्द पृथक-पृथक् हैं; उनमे सम्बद्धता तब आयेगी जब वे सामासिक शब्द ‘विषयविशेषज्ञा’ का रूप ले लेंगे वा योजक-चिह्न के युक्त होने से एक-दूसरे के साथ (यहाँ ‘से’ का प्रयोग अशुद्ध है।) सम्बद्ध हो जायेंगे; इसप्रकार से– ‘विषय-विशेषज्ञा’। विषय-विशेषज्ञा विशेष्य शब्द है, इसलिए उसकी विशेषता का बोध कराने के लिए ‘ख्यातिलब्ध’ शब्द का प्रयोग होगा, जो ‘प्रख्यात’ की तुलना मे अधिक प्रभावकारी विशेषण-शब्द है, यद्यपि ‘प्रख्यात’ और ‘ख्यातिलब्ध’ को पर्यायवाची शब्द कहा गया है तथापि दोनो मे तात्त्विक अन्तर है, जो एक-दूसरे के प्रभाव को पृथक्-पृथक् अर्थ और भाव के रूप मे प्रदर्शित करते हैं।
● आयोजन-विवरण/आयोजन-विवरण : एक दृष्टि मे
★ ऑन-लाइन कार्यक्रम/ प्रसारण आन्तर्जालिक कार्यक्रम/प्रसारण
★ माध्यम :–
★ तिथि/दिनांक :– १९-१-२०२४ ई०
★ समय :– अपराह्ण ४ बजे से
◆ विवरण के आगे कोई चिह्न नहीं लगेगा; क्योंकि विवरण नीचे है। माध्यम, दिनांक तथा समय की जानकारी (विवरण) मे विवरण-चिह्न का व्यवहार होगा। सबसे पहले कार्यक्रम-पद्धति ‘ऑन-लाइन’ को अंकित किया जायेगा, न कि सबसे अन्त मे।
पहले दिनांक का प्रयोग होगा, फिर समय का।
★ किसी भी प्रतियोगी का सकारण सर्वशुद्ध उत्तर प्राप्त नहीं हुआ है।
■ हम निकट भविष्य मे उपर्युक्त शब्द-प्रयोग (‘प्रयोगों’ अशुद्ध शब्द है।) का अत्यधिक व्याकरणिक विस्तार कर, उन्हें प्रकाशनाधीन ‘आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला’ नामक कृति मे सम्मिलित करेंगे।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज।)