आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

निर्देश– शुद्धता की दृष्टि से अधोटंकित वाक्योँ पर विचार करेँ :–

एक– एक से सौ तक की गिनती हमने सीख लीं हैं।
दो– हमने एक से सौ तक की गिनतियाँ सीख ली है।

विवेचन-विश्लेषण– दोनो वाक्य अशुद्ध हैँ। ‘गिनती’ और ‘गणना’ शब्द स्वयं मे बहुवचन के शब्द होते हैँ। हम ‘गिनतियाँ’ और ‘गिनतियोँ’ का प्रयोग करेँगे तो अशुद्ध माना जायेगा। हम इसी भाँति ‘गणना’ शब्द को ‘गणनाएँ’ और ‘गणनाओँ’ के रूप मे प्रस्तुत नहीँ कर सकते। हम ‘एक से सौ तक का पहाड़ा’ कहते हैँ; ‘पहाड़े’ वा ‘पहाड़ोँ’ का प्रयोग नहीँ करते; विचार करेँ– ऐसा क्योँ?

उल्लेखनीय है कि ‘एक से सौ तक की गिनती’ का अर्थ है, ‘सौ तक की गिनती’। उदाहरण के लिए– हमे सौ तक की गिनती याद है। हम यह नहीँ कहते :– ”हमे एक से सौ तक की गिनती वा पहाड़ा याद है।” हम कहते हैँ :– ”हमे घर तक पहुँचना है।” जैसे– हमे प्रयागराज से बलिया तक जाना है और हम कहेँ :– “हमे प्रयागराज से बलिया तक पहुँचना है” तो इसका अर्थ है कि हम प्रयागराज से वाराणसी, ग़ाज़ीपुर इत्यादिक जिलोँ से गुज़रते हुए ही ‘बलिया’ तक पहुँचेँगे, इसलिए हम सीधे कहते हैँ, “हमे बलिया तक पहुँचना है। अब ‘तक’ को समझेँ। ‘तक’ शब्दभेद के विचार से ‘अव्यय’ का शब्द है, जो ‘पर्यन्त’ का बोध कराता है। यह हमारा गन्तव्य निर्धारित करता है और यह भी संकेत करता है कि ‘बलिया’ से आगे बढ़ना भी नहीँ है।

कर्त्ता सदैव वाक्य के आरम्भ मे होता है, जो शब्दोँ का नेतृत्व करता है; उन्हेँ चलाता है; उनका संचालन करता है; ढोता है। कर्त्ता की वही भूमिका होती है, जो डिब्बोँ को साथ लेकर चलनेवाले इंजिन की होती है। हम कर्त्ता के साथ तभी छेड़-छाड़/बदलाव करेँगे, जब वह विकारग्रस्त हो। यहाँ ‘हमने’ एक स्वस्थ कर्त्ता के रूप मे दिख रहा है, अत: हमे उसे उसके उसी रूप मे ग्रहण करना होगा। वाक्य मे कर्म-शब्द ‘गिनती’ शब्दभेद की दृष्टि से संज्ञा का शब्द है तथा लिंग-दृष्टि से स्त्रीलिंग-शब्द, इसलिए क्रिया स्त्रीलिंग की होगी– ‘सीख ली।’

इसप्रकार हमारा शुद्ध वाक्य होगा–
हमने सौ तक की गिनती सीख ली है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ७ जुलाई, २०२४ ईसवी।)