वफ़ा ने फज़ा से पूछा सनम की आँखों का नूर कैसा है

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद-

वफ़ा ने फज़ा से पूछा सनम की आँखों का नूर कैसा है। 
फज़ाने जवाब दिया कसम से जन्नत के हूर जैसा है।। 
महबूबा की आँखों में अश्कों का समन्दर छुपा है बैठा।
तेरी यादों में है बदहवास और थकी से चूर जैसा है।।
दर्द इतना गहरा चुका है अब उससे सब्र होता न है।
पास होकर भी तो वो मुझे लगता कोशों दूर जैसा है।।

ग़म-ए-तसदीक़ कैसे दूँ तुम्हें मुझ पे यकीं हो जाए।

जो इतना टूट के चाहे 'जगन' उसका कुसूर कैसा है।।

चले आओ मोहब्बत का परिन्दा बनकर ऐ! जगन ।

जरा देखो तुम्हारे सनम के दिल का सुरूर कैसा है।।

चले आओ अपने इश्क़ के सलामती के इमदाद में ।

'जगन'आ के देखो जरा तुम्हारे इश्क में गुरूर कैसा है।।