“मेरी सरकार रहे, चाहे चली जाये; मगर अभद्रता की अनुमति नहीं ही दूँगा”― अटलबिहारी

आज (१६ अगस्त) अटलबिहारी वाजपेयी की निधनतिथि है।

(अटलबिहारी वाजपेयी के साथ डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-द्वारा की गयी विस्तृत मुक्त भेंटवार्त्ता का एक अंश प्रस्तुत है।)

पं० जवाहरलाल नेहरू के बाद यदि कोई एक-जैसा लोकप्रिय प्रधानमन्त्री रहा था तो वह था,
संवेदना मे पला-बढ़ा कुशल राजनीतिज्ञ और मर्मज्ञ काव्यशिल्पी अटलबिहारी वाजपेयी। वे ऐसे पहले प्रधानमन्त्री थे, जो सभी राजनीतिक दलों को संघटित कर, ‘राष्ट्रीय सरकार’ का गठन करना चाहते थे। इससे लगता है कि वे विपक्ष को कितना महत्त्व देते थे।

आइए! तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटलबिहारी वाजपेयी से ‘डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय’-द्वारा दिसम्बर, १९९९ ईसवी में की गयी भेंटवार्त्ता के एक अंश को वर्तमान राजनीतिक परिप्रेक्ष्य मे ग्रहण करें :―
मेरा प्रश्न था, “आप अपने सन्दर्भों मे विपक्ष की भूमिका को कैसा अनुभव करते हैं?

“मै मानता हूँ, देश मे सुदृढ़ विपक्ष का होना ज़रूरी है। वह सत्तारूढ़ दल के कामो की समीक्षा कर, उसे चेतावनी देने का काम करे, यह लोकहित मे ही है; किन्तु दुर्भाग्य है कि विपक्ष अपनी सही भूमिका अदा नहीं कर रहा है।”

अटलबिहारी वाजपेयी ने विपक्ष की वर्तमान (तत्कालीन) भूमिका के सन्दर्भ मे किये गये प्रश्न के उत्तर मे यह चिन्ता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा,” विपक्ष और सत्तापक्ष, दोनों परस्पर एक हैं और विपक्ष की आलोचना भी राष्ट्रहित की परिधि पर नज़र रखते हुए ही होनी चाहिए; किन्तु दु:ख की बात है कि उसका काम ‘विरोध के लिए विरोध’ रह गया है।”

अटलबिहारी वाजपेयी ने बताया, “मै उदाहरण देता हूँ। विपक्षवाले जनता मे प्रचार करते हैं कि सत्तापक्ष प्याज, तेल तथा नमक के दाम बढ़ाकर उपभोक्ताओं को लूट रहा है; उधर किसान से कहते हैं :― तुम्हें तुम्हारी उपज का दाम कम दिया जा रहा है, इसलिए आन्दोलन करो।” प्रश्नात्मक स्वर मे अटल जी ने कहा, “बताइए! क्या यह दोहरी नीति ‘रचनात्मक’ दिशा की ओर संकेत करती है? यह तो केवल सत्तापक्ष को बदनाम करने का खुला षड्यन्त्र है।”

मेरा प्रश्न था, “वाजपेयी जी! जब आप मानते हैं, सुदृढ़ विपक्ष आवश्यक है तब क्या उसके (विपक्ष के) आन्दोलन और अभिव्यक्ति के अधिकार न्यायसंगत नहीं हैं? वह आपकी ‘हाँ-मे-हाँ’ मिलाने के लिए तो है नहीं?”

कुछ आक्रामक होते हुए, अटल जी ने उत्तर दिया, “है पाण्डेय साहब! इसको स्वीकार करने से पीछे नहीं हटता; लेकिन…. यहाँ पर भी ‘लेकिन’ है; लेकिन एक सीमा मे। असंसदीय ढंग को मै कदापि प्रोत्साहन नहीं दूँगा। मेरी सरकार रहे, चली जाये, मगर अभद्रता की अनुमति नहीं ही दूँगा।”

चित्र-विवरण– मनोहर व्यक्तित्व के स्वामी ‘अटलबिहारी वाजपेयी’ के साथ मुक्त भेंटवार्त्ता करते हुए, ‘डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय’।