भारत की झोली मे आया, पहली बार विश्वकप

भारतीय महिला-क्रिकेटदल का, विश्व के सर्वाधिक सुदृढ़ और पेशेवर क्रिकेट-दल ऑस्ट्रेलिया को सेमी फ़ाइनल मे बुरी तरह से पराजित करने के बाद, आत्मविश्वास शिखर पर दिख रहा था। उसकी खेलाड़िनो के सामने अब केवल विश्वकप दिख रहा था।

फ़ाइनल का मुक़ाबला इंग्लैण्ड को सेमी फ़ाइनल मे १२५ रनो के एक बड़े अन्तर से पराजित करनेवाले जुझारू खेलाड़ी-दल दक्षिणअफ़्रीका के साथ होना था। फ़ाइनल मे दोनो दल चिर-परिचित डी० वाई० पाटिल, नवी मुम्बई के मैदान मे उतर चुके थे। तारीख़ थी, २ नवम्बर। भारत और दक्षिणअफ़्रीका के महिला-दलोँ के बीच महिला विश्वकप-क्रिकेट– २०२५ का फ़ाइनल मैच दर्शकोँ से खचाखच भरे हुए मैदान मे शुरू हो चुका था। वर्षा से बाधित होने के कारण मैच लगभग दो घण्टे विलम्ब मे शुरू किया गया था। मैदान मे भारत के महान् क्रिकेट-खेलाड़ियोँ मे सुनील गावस्कर, ब्रजेश पटेल, सचिन तेन्दुलकर, रोहित शर्मा इत्यादिक उपस्थित थे।

सिक्का उछाला गया, जो दक्षिणअफ़्रीका के महिलादल की कप्तान लौरा के पक्ष मे गिरा। कप्तान लौरा ने भारतीय महिलादल को बल्लेबाज़ी करने के लिए आमन्त्रित किया था। भारत की ओर से उसके आरम्भिक बैटर स्मृति मन्धाना और शेफाली वर्मा ने जो बल्लेबाज़ी की थी, विशेषत: शेफाली वर्मा, वह देखते ही बन रही थी। पॉवर-प्ले मे भारत का ऐतिहासिक प्रदर्शन (६४ रन) रहा। दोनो के बीच १०४ रनो की भागीदारी हो चुकी थी। स्मृति मन्धाना अपनी लय मे आ चुकी थीँ। जब विपक्षी कप्तान भारत की पहली शतकीय साझेदारी को तोड़ने मे नाकाम रहीँ तब उन्होँने अपनी स्पिनर ट्रयान को मौक़ा दिया और वह गेंदबाज़ अपने कप्तान के भरोसे को टूटने नहीँ दिया; परिणामस्वरूप स्मृति का विकेट (४५ रन) मिला। उसके बाद भी शेफाली ने अपना आक्रामक प्रदर्शन बनाये रखा था। तब लगने लगा था कि भारत ५० ओह्वर खेलकर लगभग ३५० रन बना लेगा; परन्तु मध्य-क्रम की बैटरोँ के निराशाजनक प्रदर्शन के कारण वैसा हो पाना बहुत मुश्किल दिखने लगा था।

यद्यपि दक्षिणअफ़्रीकी खेलाड़िनो ने कई आसान कैच छोड़े थे तथापि उनका क्षेत्ररक्षण प्रभावकारी बना रहा। यदि वे कैच ले लिये गये रहते तो भारत की जीत बहुत मुश्किल हो जाती। २०वेँ ओह्वर के बाद से दक्षिणअफ़्रीकी गेंदबाज़ोँ ने सटीक गेंदबाज़ी करते हुए, भारतीय बल्लेबाज़ोँ की आज़ादी लगभग छीन ली थीँ। इसका प्रमाण रहा कि भारतीय बल्लेबाज़ १८ गेंदोँ मे केवल ३ रन बना सके थे। यही कारण था कि उस दबाव को शेफाली वर्मा झेल नहीँ पायीँ और शानदार प्रदर्शन करने के बाद ७८ गेंदोँ पर ८७ रन बनाकर एक आसान-सा कैच देकर चलते बनीँ। सेमी फ़ाइनल की महानायिका जेमिमाह (२४ रन) फ़ाइनल मे चल नहीँ पायीँ; लेकिन हमे भूलना नहीँ चाहिए कि फ़ाइनल मे भारत को लाने का श्रेय उन्हेँ ही जाता है, जो सेमी फ़ाइनल-मुक़ाबले मे चट्टान की तरह से अडिग बनी रहीँ और भारत को फ़ाइनल का टिकट दिलाकर ही लौटीँ। जेमिमा को विश्वकप से बाहर कर दिया गया था। उनके पिता पर समाज के एक घृणित समुदाय-द्वारा धर्म-परिवर्तन का झूठा आरोप लगाया गया था। जेमिमा के साथ अभद्र व्यवहार किया गया था और उनकी सदस्यता भी रद्द करा दी गयी थी।

इसतरह से तीन भारतीय खेलाड़िनेँ पैवेलियन लौट चुकी थीँ। उसके बाद सेमी फ़ाइनल मे ८९ की पारी खेलनेवाली कप्तान हरमनप्रीत कौर ने मोर्चा सँभाला, जिनके साथ थीँ, सेमीफ़ाइनल मे जीत दिलाने मे उपयोगी भूमिका निभानेवाली हरफ़नमौला दीप्ति शर्मा। दोनो सँभल-सँभलकर खेल रही थीँ। ४०वेँ ओह्वर तक भारतीय बल्लेबाज़ी बहुत धीमी बनी रही, जिसके दबाव को हरमन झेल नहीँ पायीँ और ग़लत शॉट लगाने के चक्कर मे २९ गेंदोँ पर मात्र २० रन बनाकर मैदान मे सन्नाटा बोकर चली गयीँ। दीप्ति से उम्मीद थी कि वे चौका-छक्का लगाकर पारी की रनसंख्या को तीव्र गति देँगी, जबकि वैसा करने के लिए उनकी ओर से कोशिश भी नहीँ देखी गयी।

४० ओह्वरोँ की समाप्ति पर ५.७२ के औसत से भारत की रन-संख्या ४ विकेटोँ पर २२९ रन तक पहुँच चुकी थी। उस समय दीप्ति शर्मा और अमनजोत कौर खेल रही थीँ। ४०वेँ ओह्वर मे दीप्ति शर्मा को ४० रनो की संख्या पर कप्तान लौरा के हाथोँ कैच छूटा था, जिसका वे कुछ ख़ास लाभ नहीँ ले सकीँ।

स्टम्प-टु-स्टम्प घातक गेंदबाज़ी करनेवाली डी० क्लर्क ने ४३.१ ओह्वर मे अमनजोत कौर को अपने ही गेंद पर सस्ते मे निबटा दिया था।

बंगाल के लिए खेलनेवाली ऋचा घोष ने अपनी पारी की शुरूआत छक्के से करते हुए, अपना इरादा ज़ाहिर कर दिया था, तब भारत के ४४ ओह्वरोँ मे ५ विकेटोँ पर २५३ रन बन चुके थे। ऋचा का दमदार प्रदर्शन रहा। उन्हेँ ४८वेँ ओह्वर मे एक जीवनदान मिल चुका था, तब वे २० गेंदोँ मे ३३ रन बना चुकी थीँ। क्लर्क, मलाबा, ट्रयान और खाका संतुलित गेंदबाज़ी कर रही थीँ। ऋचा ‘रूम’ बनाकर हटकर शॉट लगाने के लिए जानी जाती हैँ; परन्तु गेंदबाज़ोँ ने ऋचा को मौक़ा ही नहीँ दिया; फलत: ऋचा तेज़ खेलने की चाह मे ३४ रन बनाकर कैच-आउट हो गयीँ।

अन्तत:, भारतीय दल ५० ओह्वरोँ मे ७ विकेटोँ पर २९८ रन ही बना पाया। दीप्ति ने ५८ गेंदोँ मे ५८ रन बनाये थे; परन्तु उनकी रन बनाने की गति बहुत ही धीमी रही। भारतीय बैटरोँ की कमज़ोरी रही कि जहाँ दो रन हो सकते थे वहाँ एक ही रन ले पाती थीँ।

दक्षिणअफ़्रीका की स्पिनरोँ ने सधी गेंदबाज़ी की थी। यही कारण था कि अन्तिम १० ओह्वरोँ मे भारतीय बल्लेबाज़ोँ, विशेषकर दीप्ति शर्मा ने निराश किया था, जिसके कारण भारत के ३०-४० रन कम दिख रहे थे। भारत की ओर से स्मृति मन्धाना, जेमिमा और हरमन ने अपनी प्रतिभा के अनुरूप प्रदर्शन नहीँ किये। इसप्रकार दक्षिणअफ़्रीका को ३०० गेंदोँ मे जीतने के लिए २९९ रनो का लक्ष्य मिला था, जोकि दक्षिणअफ़्रीका के बैटरोँ के लिए कोई बहुत कठिन नहीँ था।

हमे याद रहना चाहिए कि अतीत मे विश्वकप महिला क्रिकेट मे सबसे पहले बल्लेबाज़ी करनेवाले दल ने ६ मे से ५ विश्वकप जीते थे।

अब दक्षिणअफ़्रीकी महिलादल २९९ रनो का लक्ष्य हासिल करने के लिए मैदान मे था। दक्षिणअफ़्रीका की ओर से उसकी आरम्भिक बैटर कप्तान लौरा वुल्फार्ट और ताज़मीन ब्रिट्स ने कमान सँभाले थे। उनके सामने भारत की आरम्भिक गेंदबाज़ रेनुका ठाकुर और क्रान्ति गौड़ थीँ। दोनो ही सधी हुई गेंदबाज़ी कर रही थीँ। उसके बाद स्पिनरोँ को लगाया गया था। दीप्ति शर्मा ने नौवेँ ओह्वर मे अपने ही गेंद पर लौरा का कैच छोड़ा था, तब दक्षिणअफ़्रीका के ४४ रन थे। अकस्मात् रेनुका सिँह के गेंद पर ब्रिट्स ने रन लेना चाहा; परन्तु मिड-ऑन-क्षेत्र मे गये गेंद को रोककर कप्तान हरमन ने सीधे विकेट पर मारकर ब्रिट्स को २३ रन के व्यक्तिगत स्कोर पर रन-आउट कर दिया था। इसप्रकार पॉवर-प्ले मे दक्षिणअफ़्रीका ने ५.२० के रन-रेट से १ विकेट पर ५२ रन बना लिये थे। स्पिनर श्रीचरणी को लगाया गया था और उन्होँने दूसरा विकेट गिरा दिया। अमन जोत और राधा यादव की गेंदबाज़ी साधारण रही। वे स्पिनर के रूप मे थीँ, जबकि गेंदबाज़ी तीव्र गति मे कर रही थीँ, जिसके कारण उनकी जमकर पिटायी भी की गयी थी। दक्षिणअफ़्रीका ने २० ओह्वरोँ मे ५.६५ के रन-रेट से २ विकेट पर ११३ रन बना लिये थे। भारतीय गेंदबाज़ प्रभाव नहीँ डाल पा रही थीँ; फिर कप्तान हरमन ने शेफाली वर्मा को गेंद करने का दायित्व सौँपा था, जो ६० की गति मे धीमी और सधी हुई लम्बाई और पंक्ति मे गेंदबाज़ी कर रही थीँ। उन्होँने अपने पहले ही ओह्वर मे एस० लूस को २५ रन के स्कोर पर पैवेलियन भेज दिया था। इतना ही नहीँ, शेफाली ने अपने दूसरे ही ओह्वर मे विकेटरक्षिका ऋचा घोष के हाथोँ कैच-आउट कराकर एक और विकेट ले लिया। इसप्रकार शेफाली ने २ ओह्वरोँ मे मात्र ६ रन देकर २ विकेट लिये थे। उस समय तक दक्षिणअफ़्रीका ने ४ विकेटोँ पर १२४ रन ही बनाये थे। ज्ञातव्य है कि इतने ही ओह्वरोँ मे भारतीय दल के १ विकेट पर १३४ रन थे। दीप्ति शर्मा ने पाँचवाँ विकेट लिया था। दीप्ति शर्मा ने ही ३६वें ओह्वर मे रेनुका ठाकुर के गेंद पर ए० डेर्कसन का कैच छोड़ा था, तब दक्षिणअफ़्रीका का स्कोर ५ विकेटोँ पर १८६ रन था और डेर्कसन के ३६ रन। ४०वेँ ओह्वर मे दीप्ति को लगाया गया और उन्होँने डेर्कसेन का स्टम्प उखाड़ दिया। दक्षिणअफ़्रीका ने ३९.३ ओह्वरोँ मे ६ विकेटोँ पर २०९ रन बनाये थे, जबकि ४०वेँ ओह्वर मे लौरा वोल्वार्ट ने अपना शतक ९८ गेंदोँ मे ही बना लिया था। उस समय दक्षिणअफ़्रीका को जीतने के लिए ५८ गेंदोँ मे ८७ रन बनाने थे। जो कप्तान लौरा धैर्य और समझ-बूझकर शतक बनाकर खेल रही थीँ और भारत को उनके विकेट की दरकार थी, तब दीप्ति शर्मा ने लौरा को अमनजोत कौर के हाथोँ तीसरे प्रयास मे कैच कराया था। उस समय लौरा ने १०३.०६ के औसत से १०१ रन बना लिये थे। दीप्ति ने अपने अगले ही गेंद पर ट्रायो को लेग-बिफ़ोर आउट कर दिया था।

दक्षिणअफ़्रीका ने ४१.४वेँ ओह्वर मे ८ विकेटोँ पर २२१ रन बना लिये थे। उसके लिए रन-रेट बढ़कर ९.७० पर पहुँच चुका था, जबकि वह ५.३६ के औसत से रन बना रहा था। ४३वेँ ओह्वर मे रन-रेट १० का हो चुका था, जिससे परिणाम ९० प्रतिशत भारत के पक्ष मे आ चुका था। ४३.३ ओह्वर मे गेंदबाज़ रेनुका और ठीक उसके अगले गेंद मे क्रान्ति गौड़ के हाथोँ एन० डी० क्लर्क के कैच छूटे थे। अब दक्षिणअफ़्रीका को प्रति ओह्वर ११.७८ की औसत से रन बनाने थे, जोकि नहीँ बना सके।

भारतीय कप्तान हरमनप्रीत इस फाइनल-मुक़ाबले मे बहुत सूझबूझ की कप्तानी कर रही थीँ और उपयुक्त समय पर गेंदबाजोँ मे बदलाव करती दिख रही थीँ। इसके बाद भी उनसे एक ग़लती हो गयी थी। उन्हेँ राधा यादव से अधिक ओह्वर न कराकर, क्रान्ति गौड़ से कराना चाहिए था। दक्षिणअफ़्रीका के बैटर क्लर्क ने राधा के एक ओह्वर मे दो छक्के-चौके लगाकर अपना मंसूबा ज़ाहिर कर दिया था; लेकिन दीप्ति शर्मा ने अपने एक ही ओह्वर मे दो खेलाड़ियोँ को बाहर का रास्ता दिखा, भारत के लिए ऐतिहासिक विजयपथ को प्रशस्त कर दिया था। इसप्रकार दक्षिणअफ़्रीकी दल ४५.३ ओह्वरोँ मे १० विकेटोँ पर २४६ रन ही बना पाया था। भारत की ओर से दीप्ति शर्मा ने ९.३ रन प्रति ओह्वर के औसत से ३९ रन देकर ५ विकेट लिये थे।
भारत की ओर से दीप्ति, शेफाली, श्रीचरणी, रेनुका और क्रान्ति की गेंदबाज़ी कसी हुई रही।

इस मैच मे शानदार बल्लेबाज़ी, गेंदबाज़ी और क्षेत्ररक्षण करने के कारण शेफाली वर्मा (८७ रन और २ विकेट) को ‘प्लेयर ऑव़ द मैच’ का पुरस्कार दिया गया था। ज्ञातव्य है कि इस पूरे टूर्नामेण्ट मे शेफालिका का कोई नामो-निशाँ नहीँ था; वह तो लीग-चरण मे चोट लगने से पहले तक ३०८ रन बनानेवाली आरम्भिक बैटर प्रतिका रावल की अनुपस्थिति मे शेफाली को स्थान दिया गया था, जिसे उन्होँने अपने प्रदर्शन से सिद्ध कर दिया है।

जबकि पूरे टूर्नामेण्ट मे गेंद और बल्ले से उत्कृष्ट प्रदर्शन करनेवाली भारतीय खेलाड़िन दीप्ति शर्मा (२१५ रन और २२ विकेट) को ‘प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेण्ट’ का पुरस्कार प्रदान किया गया था। विश्वकप के फ़ाइनल मे स्मृति मन्धाना ने इस विश्वकप-टूर्नामेण्ट मे ४३४ रन बनाकर पूर्व-भारतीय महिला कप्तान मिताली राज का भारतीय कीर्तिमान भंग कर दिया है।

देखा जाये तो भारतीय दल ने दक्षिणअफ़्रीका के सामने जीतने के लिए २९९ रन का जो लक्ष्य रखा था, उसे हासिल करना, कोई विशेष कठिनाई का विषय नहीँ था। दक्षिणअफ़्रीका की कप्तान लौरा जब शतक के नज़्दीक पहुँच गयी थीँ तब उनके प्रदर्शन को देखकर ऐसा लगता नहीँ था कि वे कुछ जोख़िमभरा शॉट खेलकर अपने दल को लक्ष्य के समीप तक ले जाना चाहती होँ। उनका प्रथम लक्ष्य उनका अपना शतक बनाना था। जिस तरह से एक छोटे अन्तराल पर उनके खेलाड़ी आउट होते रहे और वे एक छोर को सँभाले रहीँ, वह स्थिति भारत की जीत की राह मे रोड़ा दिख रहा था; परन्तु उनके आउट होते ही भारत के लिए जीत का मार्ग प्रशस्त होने लगा था; अन्तत:, ३६ वर्षीया कप्तान हरमनप्रीत कौर के नेतृत्व मे भारतीय महिला-क्रिकेटदल ने एकदिवसीय अन्तरराष्ट्रीय विश्वकप क्रिकेट-टूर्नामेण्ट के फ़ाइनल मे दक्षिणअफ़्रीका को ५२ रनो से पराजित कर, पहली बार वर्ष २०२५ के विश्वकप को भारत के उन्नत भाल पर प्रतिष्ठित करने का ऐतिहासिक अवसर अर्जित किया है।

दक्षिणअफ़्रीकी दल ५२ वर्ष मे पहली बार फ़ाइनल मे पहुँचा था, जबकि भारतीय दल ८ वर्ष-बाद फ़ाइनल मे प्रवेश किया था। आस्ट्रेलिया सात बार विश्व-चैम्पियशिप जीतकर सबसे सफल महिला-क्रिकेटदल है। इंग्लैण्ड ने चार और न्यूज़ीलैण्ड ने एक बार महिलाओँ का विश्वकप जीता है। महिलाओँ का विश्वकप-टूर्नामेण्ट पुरुष-विश्वकप से दो वर्ष पहले ही वर्ष १९७३ मे पहली बार खेला गया था, जोकि प्राचीनतम वैश्विक टूर्निमेण्ट है। वर्ष १९७३ मे केवल सात देशोँ के दल ने भागीदारी की थी। उन दिनो ५० ओह्वरोँ के स्थान पर ६० ओह्वरोँ का मैच होता था।


महिला-विश्वकप विजेता-उपविजेता-विवरण : एक दृष्टि मे

वर्ष विजेता उपविजेता

१९७३ इंग्लैण्ड ऑस्ट्रेलिया
१९७८ आस्ट्रेलिया इंग्लैण्ड
१९८२ ऑस्ट्रेलिया इंग्लैण्ड
१९८८ ऑस्ट्रेलिया इंग्लैण्ड
१९९३ इंग्लैण्ड न्यूज़ीलैण्ड
१९९७ ऑस्ट्रेलिया न्यूज़ीलैण्ड
२००० न्यूज़ीलैण्ड ऑस्ट्रेलिया
२००५ ऑस्ट्रेलिया भारत
२००९ इंग्लैण्ड न्यूज़ीलैण्ड
२०१३ ऑस्ट्रेलिया वेस्टइण्डीज़
२०१७ इंग्लैण्ड भारत
२०२२ ऑस्ट्रेलिया इंग्लैण्ड
२०२५ भारत दक्षिणअफ़्रीका
 उल्लेखनीय है कि इस मैच मे वर्षा की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती, यदि वर्षा थमती नहीँ तो; क्योँकि वर्षा के कारण दक्षिणअफ़्रीका को फाइनल का विजेता घोषित कर दिया जाता। ऐसा इसलिए कि उसने लीग-चरण मे भारत की तुलना मे अधिक अंक अर्जित किये थे। वैसे वर्षा से बाधित होने के कारण ३ नवम्बर को 'सुरक्षित दिन' रखा गया था।
  
निस्संदेह, २ नवम्बर की तारीख़ क्रिकेट-खेल के इतिहास मे स्वर्णाक्षरोँ से अंकित की जायेगी; क्योँकि अतीत मे इस कप को भारत मे लाने के लिए बहुत प्रयत्न किये गये थे; परन्तु वह उपविजेता तक सीमित रह गया था। भारत की खेलाड़िनोँ ने एकजुटता का परिचय देते हुए, अन्तत:, स्वप्न को मूर्त रूप दे दिया।

सम्पर्क-सूत्र :–
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