परीक्षा से परे है जिंदगी की असली उड़ान

1992 की हाईस्कूल(10वीं) की परीक्षा में मुझे हिंदी में 58 अंक जबकि बायोलॉजी में 75 (डिस्टिंक्शन) अंक मिले। 1994 में इंटरमीडिएट की परीक्षा में मुझे अंग्रेजी में मात्र 46 अंक जबकि रसायन विज्ञान में 63 अंक मिले।

अगर परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर कोई राय बनाई जाए तो हाई स्कूल के अंक मेरी रुचि मेडिकल फील्ड में दर्शाते हैं जबकि इंटरमीडिएट के नंबर मुझे फार्मा क्षेत्र में कैरियर बनाने को कहते हैं। लेकिन इंटरमीडिएट के बाद मैंने वायुसेना की तकनीकी शाखा को कैरियर के रूप में चुना।

वायुसेना में जाने के बाद ताम्बरम में प्रशिक्षण के दौरान मुझे दो वर्ष के मैकेनिकल इंजीनियरिंग के डिप्लोमा में 72% अंक और ‘आउट आफ टर्न’ प्रमोशन मिला। पुणे में सुखोई-30 वायुयान के टेट्रा कोर्स में ‘बेस्ट इन ट्रेड’ मिला। AME परीक्षा के पहले प्रश्न पत्र में मुझे 100 में से 90 अंक (हैदराबाद रीजन में सबसे अधिक) मिले।

उक्त अंको के आधार पर धारणा बनाई जाए तो मुझे तकनीकी रूप से पारंगत, दक्ष होना चाहिए। लेकिन मुझे हमेशा से पता था कि प्रैक्टिकली मैं टेक्निकल मामलों में बेहद कमजोर हूँ। सिर्फ मैं ही जानता था कि रट्टा मार के तकनीकी विषयों में अंक ले आना अलग बात है, लेकिन मेरी आत्मा साहित्य में बसती है। इसीलिए वायु सेना से अवकाश ग्रहण करने के बाद मैंने तकनीकी या किसी अन्य क्षेत्र के बजाय सिर्फ और सिर्फ राजभाषा और अनुवाद क्षेत्र में रोजगार के लिए परीक्षा दी। ईश्वर की कृपा और स्वर्गीय अम्मा-पापा के आशीर्वाद के कारण आज भारत के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान में अनुवाद अधिकारी के रूप में कार्य कर रहा हूं। ठीक ठाक पैसे मिलते हैं, प्रतिष्ठा भी है और सबसे बड़ी बात यह कि अपने मन का कार्य कर रहा हूँ ।

लोग सोचते हैं, कुछ लोग मुझसे भी पूछते हैं कि विज्ञान और तकनीकी पढ़ने वाले छात्र साहित्य, भाषा और साहित्य के क्षेत्र में कैसे सामंजस्य बिठाएंगे? क्या वे इस क्षेत्र में मिसफिट साबित नहीं होंगे?

मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं कि विज्ञान वर्ग से पढ़ने वाले छात्र, तकनीक समझने वाले छात्र जब कला वर्ग में जाते हैं तो उनका अनुभव कुछ ऐसे होता है जैसे पहाड़ी में चढ़ने या बलुई मिट्टी में दौड़ने के बाद , सपाट दोमट मिट्टी में दौड़ रहे हों। वे विषय को बेहतर और तार्किक ढंग से समझ पाते हैं।

सीबीएसई द्वारा घोषित परिणाम में जिन बच्चों के अच्छे अंक आये, उन्हें बहुत-बहुत बधाई। वे जरूर बेहतर हैं, उन्होंने इसके लिए मेहनत की होगी, त्याग किया होगा। मैं उन्हें हतोत्साहित नहीं कर रहा परंतु किसी भी परीक्षा में प्राप्त किए हुए अंक किसी छात्र की वास्तविक प्रतिभा का आईना नहीं होते हैं ।

किसी छात्र की वास्तविक प्रतिभा सिर्फ और सिर्फ उसे पता है। इसलिए परीक्षा में किसी विषय में कम अंक प्राप्त करने पर बिल्कुल भी निराश नहीं होना चाहिए। अपने फ़ेवरिट विषय में कम अंक मिलने पर होने वाली पीड़ा से मैं भलीभांति अवगत हूँ। लेकिन इसके कारण अवसाद में नहीं चले जाना चाहिए, कोई गलत कदम उठाने की भूलकर भी नहीं सोचना चाहिए। क्योंकि आज के युग में कोई भी सरकारी या निजी संगठन या विभाग हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के अंकों के आधार पर छात्रों को नौकरी या रोजगार नहीं देता है। अब तो विश्वविद्यालय में स्नातक पाठ्यक्रम में प्रवेश भी बोर्ड परीक्षा में प्राप्त अंकों के बजाय CUET परीक्षा के आधार पर होता है।

इसलिए बच्चों, चिल करो। यह सिर्फ एक पड़ाव था, मंजिल नहीं। क्योंकि –

“जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है।
जिंदगी के कई इम्तिहान अभी बाकी हैं।।
अभी तो नापी है मुठ्ठीभर जमीन तुमने।
आगे सारा आसमान बाकी है।।

(विनय सिंह बैस)
अब भी छात्र