● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
आज मुझे आत्यन्तिक सुख और संतोष का अनुभव हुआ है। मैने विगत दिवस अपने बचपन के एक ऐसे मित्र के विषय मे बताया था, जिसके साथ मैने पहली कक्षा से छठी कक्षा तक अध्ययन किया था। वह स्थान था, मेरा गाँव बाँसडीह, जनपद बलिया और शिक्षण-संस्थान ‘टाउन प्राइमरी स्कूल’ और मिडिल स्कूल’।
मेरा पूर्व-सहपाठी गुप्तेसर (गुप्तेश्वर) के पूर्वजोँ का कर्म मिट्टी के लोँदे से दीया-दीयरी, मेटा, गगरी, सुराही से लेकर छोँड़ आदिक बनाने का काम (कुम्हारकर्म) होता रहा है। गुप्तेश्वर भी उसी कर्म को धारण करते हुए, आज भी अपने पूर्वजोँ के पथ पर अग्रसर है।
मै इन दिनो अपने गाँव-घर मिरीगिरी टोला, बाँसडीह, बलिया मे नव-गृहनिर्माण करा रहा हूँ। दो दिनो से एक भाव की रचना हो रही थी कि अपने मित्र गुप्तेश्वर को नये परिधान मे देखूँ। आज वह भाव एक विचार का रूप ग्रहण कर चुका था।
गुप्तेश्वर का घर मेरे घर से लगभग पाँच सौ मीटर की दूरी पर है। संध्या मे ७.३० बजे गुप्तेश्वर के घर पहुँचा। वह एक खटिया पर कुर्ता और लूँगी पहने लेटा हुआ था।मेरा स्वर उभरा, “गुप्तेश्वर!” वह अचकचा कर उठ बैठा। मैने कहा, “चलो! बाज़ार चलते हैँ।” वह पट्ठा बिना कुछ सोचे चल पड़ा। मार्ग मे ही शीत पेय-पदार्थ की एक दुकान थी; हम दोनो ने ‘माजा’ का मज़ा लिया। पग बढ़ चुके थे। मैने पूछा, “ऐसी दुकान मे चलो, जहाँ कुर्ता-पाजामा मिल सके। घूमते-टहलते, एक दुकान पर रुक गये। मैने पूछा, “कुर्ता-पाजामा’ मिल जायेँगे।” उधर से ”हाँ” का उत्तर मिला।
मैने कहा, “दिखाइए।” वस्त्र-विक्रेता ने दो रंग के कुर्ता-पाजामा दिखाये। मैने वस्त्र-विक्रेता से कहा, ”मुझे अपने मित्र के लिए लेना है, इनकी पसन्द की दिखाओ।” मैने गुप्तेश्वर की ओर देखते हुए कहा, “गुप्तेसर! हेकरा मे से तहरा क कवन नीमन लाग ता?” (इनमे से तुम्हेँ कौन-सा अच्छा लग रहा है?) गुप्तेश्वर ने पीले रंग का कुर्ता पसन्द किया था। इसप्रकार मैने पीले रंग का कुर्ता और श्वेत रंग का लहकदार पाजामा मे अपने मित्र के चहकते चेहरे को देखकर, अनिर्वचनीय सुख और संतोष की निधि अर्जित कर ली है।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १५ मई, २०२५ ईसवी)