डॉक्टर चतुरानन ओझा ने डॉ .एस .पी .तिवारी जी को धन्यवाद कि उन्होंने कामरेड स्वर्गीय राजनारायण मिश्र जी को उनके मर्म के साथ याद किया। मेरी उनसे मुलाकात पी यू एच आर के मीटिंग में हुई थी।
दरअसल मैं गोरखपुर मंडल का उस समय अध्यक्ष हुआ करता था और पुलिस द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार हनन के मुद्दों पर बहुत ही मुखर होकर आंदोलन आत्मक रूप में गतिविधियां हमें चलानी पड़ती थी। उस समय वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह के साथ उनसे हुई पहली मुलाकात में मुझे उनका मुरीद बना दिया। बात के दिनों में न सिर्फ मानवाधिकार के मुद्दे पर , कानूनी सलाह और आंदोलन के संदर्भ में बल्कि देश की राजनीतिक गतिविधियों, आंदोलनों और संगठनों की भूमिका और पक्षधरता, विचारधारा तय करने में भी उनके साथ बराबर विचार विमर्श करना विशेष महत्वपूर्ण बना रहा। आज जबकि वैचारिक रूप से सक्षम और सक्रिय लोगों की सबसे अधिक जरूरत थी उनका अचानक जाना हमें हतप्रभ कर गया। पिछले 1 वर्ष में हमने इस तरह के जितने सदमे उठाएं उतने तो अब तक के पूरे जीवन काल में नहीं उठाए थे। उनका वैचारिक आकर्षण, उनका आकर्षक व्यक्तित्व, उनकी सहजता ने इतना आकृष्ट किया कि उनसे मिलने उनके गांव तक जाना हुआ।
बभनान स्थित महाविद्यालय में हिंदी के आचार्य रहे डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडे से उनकी विशेष दोस्ती थी। हिंदी विभागाध्यक्ष पद से रिटायर होने के बाद डॉक्टर पांडे ने बरहज में रहते हुए जिन थोड़े से लोगों की प्रशंसा की और लगातार संवाद बनाए रखा उसमें एक राज नारायण मिश्र जी भी थे ।डॉक्टर पांडे की दीक्षा r.s.s. में हुई थी लेकिन बाद के दिनों में आदरणीय मित्र जी के प्रभाव में वह बाम विचारधारा के तरफ आकृष्ट हुए और समाज के आर्थिक मुद्दों को विशेष रूप से उठाने का निश्चय कर लिया। इस संदर्भ में उन्होंने मुक्तिबोध के समग्र साहित्य का अध्ययन किया और बरहज में मुक्तिबोध जयंती के अवसर पर समकालीन जनमत पत्रिका के संपादक रामजी राय की अध्यक्षता में बी आर डी वी डी पी जी कॉलेज आश्रम बरहज में एक संगोष्ठी भी कराई ।
कामरेड मिश्र आंदोलनकारी विचारक थे। वे जनता के वकील थे। डॉक्टर तिवारी जी ने आज जिस रूप में उन्हें याद किया है वह महत्वपूर्ण है।
हम कामरेड राज नारायण मिश्र जी को कभी नहीं भूल सकते ।उनकी याद बराबर सीने में कसकती रहती है। उन्होंने अपने घर के बच्चों पर वैचारिक प्रभाव डाला है कि वह उनके विचारों और पक्षधरता को आगे बढ़ाने के प्रति उत्साहित दिखते हैं ।उनके बड़े बेटे ने मुझे फोन कर इसके प्रति आश्वस्त किया था कि पिताजी के नहीं रहने की स्थिति में आप लोग ऐसा ना महसूस करें की हम उन विचारों के साथ सक्रिय रूप में आंदोलन के साथ नहीं है।
उनकी बेटी डॉक्टर आकांक्षा मिश्र अपने साहित्यिक और वैचारिक लेखन के जरिए विभिन्न बेबीनार के माध्यम से जिस तरह अपनी उपस्थिति बनाए हुए हैं वह हमारे लिए बहुत ही आश्वस्तकारी है और इस चीज को आश्वस्त करता है की कामरेड राजनारायण मिश्र जी विभिन्न रूपों में हमारे बीच उपस्थित हैं।
एक बार फिर विनम्र श्रद्धांजलि! लाल सलाम!!