प्रयागराज के डी० एम० के पास बुद्धिजीवियोँ के लिए ‘समय’ नहीँ

– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

प्रयागराज के डी० एम० श्री मनीषकुमार वर्मा प्रयागराज के बुद्धिजीवि-वर्ग से “अलग से मिलते नहीँ साहेब।”

मैने तत्काल प्रतिक्रिया की थी, “आपके डी० एम० गवर्नर हो गये हैँ क्या?” मैने उसके शीघ्र पश्चात् फ़ोन-सम्पर्क काट दिया था।

उपर्युक्त उत्तर था, डी० एम०-कार्यालय के किसी अज्ञात कर्मचारी का, जिसने उत्तर दिया था, “उनके आफिस से बोल रहा हूँ।”

यह निन्दनीय और विचारणीय विषय ४ नवम्बर दिन मे प्रकाश मे आया है, जिसका प्रमाण मेरे पास है।

उल्लेखनीय है कि उक्त डी० एम० कौशाम्बी मे इसी पद पर रहते हुए, कौशाम्बी मे ही आयोजित एक समारोह मे मुख्य अतिथि थे और मै अध्यक्ष।

वैसे मुझे लगता है, डी० एम० ने उक्त आशय की बात नहीँ कही होगी, बल्कि कथित कर्मचारी ने अपने ‘मन की बात’ बोली होगी। बहरहाल, सत्य-पक्ष जो भी हो; परन्तु दो टूक बात करनेवाले आत्माभिमानी बुद्धिजीवियोँ की किसी स्तर पर यदि उपेक्षा की जाती है तो विषय स्वत: शोचनीय बन जाता है।

कुछ दिनो से मन मे यह विषय स्थिर हो रहा था कि उपर्युक्त डी० एम० को अपनी सम्पादित और मौलिक कृतियाँ क्रमश: ‘स्वातन्त्र्य-समर मे प्रयागराज का शंखनाद’ (प्रयागराज-मण्डल-प्रशासन-द्वारा प्रकाशित) और ‘आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला’ प्रदान करूँ; परन्तु उक्त प्रकार का प्रशासकीय चरित्र सुन-समझकर क्षोभ हुआ है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ४ नवम्बर, २०२५ ईसवी।)