आओ! ‘व्यभिचार’ करें

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


क्या ये न्यायाधीशगण अपनी बहू-बेटियों-पत्नियों को पर-पुरुषों के साथ व्यभिचार करने की आज़ादी देंगे?
चौकीदार के राजकाल में जो अब तक नहीं हुआ है, वह सब होगा; देखते रहिए।

नैतिकता की पुस्तकों को ‘उच्चतम न्यायालय’ के प्रवेशद्वार पर जलाकर वहीं पर ‘व्यभिचार’ करते हुए, विरोध-प्रदर्शन करने का समय अब आ गया है। न्यायालय अपना स्तर पूरी तरह से गिरा चुका है। अब वह दिन दूर नहीं, जब देश के न्यायाधीशों का स्तर आज के नेताओं-जैसा हो जायेगा।
अब कक्षा एक से उच्चस्तरीय और प्राविधिक शिक्षण-स्तर पर ‘व्यभिचार’ का एक ‘विषय’ निर्धारित कर देना चाहिए। ‘फ़िल्म सेंसर बोर्ड’ को समाप्त कर ‘व्यभिचार-परीक्षण परिषद्’ का गठन कर देना चाहिए। इसके लिए जिन फ़िल्मों में व्यभिचार का दृश्य न हो, उन्हें प्रसारित करने से रोक देना चाहिए। उसमें अनिवार्यत: उस एक न्यायाधीश का होना चाहिए, जो ऐसा घटिया फ़ैसला सुनाने में साथ रहा है।

अब जब न्यायालय ने अभूतपूर्व निर्णय सुना दिया है और पर-पुरुष-पर-स्त्रीगामी होने का प्रमाणपत्र दे दिया है तब देश के प्रत्येक मुहल्ले में ‘व्यभिचार क्लब’ का गठन कर दिया जाये, जिसमें देश के न्यायाधीशों और उनकी बेटी-बहू-पत्नियों को पदाधिकारी अवश्य बनाया जाना चाहिए।
शर्मनाक फ़ैसले की जितनी भी निन्दा की जाये, कम है।
जो लोग बेचारी ‘स्मृति ईरानी’ पर अँगुली उठाते थे, वे कितने ग़लत थे, अब समझ में आ रहा है। अब तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति के विरोध में उठ रही आवाज़ बेबुनियाद हैं; क्योंकि ‘व्यभिचार ज़िन्दाबाद’।
भारतीय संस्कृति के ठीकेदार कहाँ है? हिन्दूवादी, बजरंग दल इत्यादिक दल, ‘लव जेहाद’ का विरोध करनेवाले कहाँ छुप गये हैं? अब तो जो जिसके साथ शारीरिक संभोग करना चाहे, कर सकता है; क्योंकि हमारे न्यायाधीशों ने ‘व्यभिचार’ करने का ‘लाइसेंस’ दे दिया है। अब तो ‘व्यभिचार करो टूर्नामेण्ट’ भी शुरू कर देना चाहिए, जिसका उद्घाटन ‘उद्घाटनबाज़’ से कराना चाहिए, जो इस श्रेणी का है भी।

ऐसा फ़ैसला सुनानेवाले न्यायाधीशों के आवास घेरने और देशस्तर पर उनके पुतले जलाने की ज़रूरत है। हमारी मर्यादा के साथ न्यायाधीशों ने बलात्कार किया है।
उन न्यायाधीशों की जितनी भी भर्त्सना की जाये, बहुत कम है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; २७ सितम्बर, २०१८ ईसवी)