‘साहित्यांजलि प्रज्जोदि’ का राष्ट्रीय कवि-सम्मेलन “गंगा को चंगा रखने में जीवन की भलाई है”

प्रतिवर्ष की भाँति इस वर्ष भी वर्षान्त के प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन करने और नूतन वर्ष के अभिनन्दन के रूप में प्रकृति-संरक्षण-मंच ‘साहित्यांजलि प्रज्जोदि’ की ओर से संगम-तट पर स्थित अध्यात्म-पण्डाल में ‘गंगा-विषयक’ राष्ट्रीय कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया। ग़ाज़ियाबाद से पधारे महेश सक्सेना ने कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता की। वयोवृद्ध कवि मुनेन्द्र श्रीवास्तव ने मुख्य अतिथि के रूप में गंगा-प्रदूषण को निरूपित करते हुए, सुनाया– गंगा में मैल की परत समाई हुई है, यह साज़िशों के हाथ से सताई हुई है।
सारस्वत अतिथि के रूप में भाषाविद् डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा– यह आयोजन इस दृष्टि से सार्थक आकार ले चुका है कि कवि-कवयित्रीगण गंगातट पर आकर माँ गंगा का काव्यपूर्ण स्मरण कर रहे हैं।
विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ० प्रदीप चित्रांशी ने अपने दोहे माँ गंगा को समर्पित किये– गंगा यमुना घाघरा या सरयू का घाट। चंचल लहरों को सदा देत अपना घाट।।
ग़ाजियाबाद से पधारीं स्नेहलता भारती ने गंगा-विषयक कई मुक्तक सुनाकर श्रोताओं की तालियाँ बटोरीं।
            ईश्वरशरण शुक्ल की रचना थी–“गंगा को चंगा रखने में जीवन की भलाई है, इसकी पवित्रता जीवन की अद्भुत सचाई है।
ओमप्रकाश श्रीवास्तव ‘दार्शनिक’ ने गंगा की उपयोगिता को इस रूप में रेखांकित किया– हृदय पवित्र बनाती गंगा, पुरखों को तारती है गंगा।
कविता उपाध्याय ने गंगा से प्रार्थना की– माँ गंगे! तुम अविरल बहती रहना। जन-जन के पाप हरो मोक्षदायिनी बन गहना।
हरिद्वार से आये सतीश कुमार शास्त्री ने अपनी रचना के माध्यम से गंगामहिमा की प्रतिष्ठा की।
असोम से पधारे महेन्द्र कुमार मौर्य ने गंगा के दु:ख का मानवीकरण करते हुए रचनापाठ किया।
दयाशंकर पाण्डेय ने लक्षणाशक्ति का परिचय दिया– विष हमारे लिए भी अमृत सदा बन जायेगा, भाव मीराँ की तरह विष समझ पी जाइए।
देवेश श्रीवास्तव ने सुनाया– नमन तुम्हें शत बार हे गंगा, अर्पित पहला प्यार हे गंगा!
अवनेन्द्र पाण्डेय ‘रसराज’ ने सुनाया– गंगोत्री से प्रकट सुधारस धार मातु बरसाती, जड़-चेतन प्राणी वैश्विक ओ कण्ठहार अपनाती।
अजीत शर्मा ‘आकाश’ ने आशावाद का इस रूप में पोषण किया– भारत महान् देश का गौरव बढ़ायें हम, जैसे भी हो गंगा की उदासी मिटायें हम।
डॉ० वीरेन्द्र तिवारी ने सुनाया– टूटे नाहीं गंगा मइया! तुझसे ये नाता टूटे ना।
ऋचा सिंह ने संवादशैली में कविता पढ़ी– माँ गंगे! मैं तुमसे मिलने आयी हूँ, अपना पाप धोने नहीं, तेरा हाल पूछने आयी हूँ।
प्रो० विमला व्यास ने सुनाया– ओ गंगे! तुम हो बहती क्यों? तुम तो निर्मल माँ, स्वर्गवासिनी कल्याणी।
इनके अतिरिक्त जगन्नाथ शुक्ल, रविरंजन पाण्डेय, असलम आदिल इलाहाबादी, साकेत त्रिपाठी, शिवमूर्ति सिंह, प्रो० के० जी० श्रीवास्तव, अशोक सनेही, सूर्यकुमार त्रिपाठी, मीरा सिनहा, कैलाश पाण्डेय, केशव सक्सेना, डॉ० इन्दुप्रकाश मिश्र, पीयूष मिश्र, देवयानी, मुकुल मतवाला, के०पी० गिरि, जयशंकर मिश्र, एस०पी० श्रीवास्तव आदिक कवि-कवयित्रियों ने काव्यपाठ किये।
उल्लेखनीय है कि यह कवि-सम्मेलन हाल ही दिवंगत हुए नगर के कवि गिरीशचन्द्र श्रीवास्तव की स्मृतियों के नाम था।
कविसम्मेलन का संयोजन ज्योति चित्रांशी ने किया। आभारज्ञापन अनिल सिंह ‘शलभ’ और संचालन डॉ० रवि मिश्र ने किया।
कविसम्मेलन के समापन पर गंगा-यमुना जल में प्रवेश कर अभ्यागतों ने गुड्डू पण्डा के मार्गदर्शन में माँ गंगा की महा आरती की।