ऐसी भी निकृष्टता और निर्ममता किस काम की?

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

सरकारी ‘लॉक-डाउन’ के कारण अब तक लाखों लोग नौकरी से बाहर हो चुके हैं; बाहर किये जा रहे हैं; कम्पनियाँ, व्यावसायिक प्रतिष्ठान इत्यादिक बन्द किये जा रहे हैं। ऐसे मे, देश की सरकार से प्रश्न है– ऐसे लोग और उनके परिवार की आजीविका चलती रहे, इसके लिए हमारे देश की सरकार ने कौन-सी व्यवस्था की है। महँगाई इतनी तेज़ी मे बढ़ रही है, उस पर से देश और राज्य की सरकारों ने जी० एस टी०, वैट तथा अन्य प्रकार की वृद्धि कर देशवासियों की कमर तोड़ कर रख दी है। यह सरकार की कौन-सी लोकमंगलकारी नीति है ?

खेद है, इतना सब होने के बाद भी देश की जनता ‘सीधी गाय’ बनी हुई है और दोहन कराने के लिए तत्पर है। ऐसे मे, ऐसा कौन-सा उपाय है, जिसे लागू करके-कराके जन-सामान्य का भविष्य सुरक्षित किया जा सके ?

वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि देश का सम्पूर्ण सरकारी तन्त्र नितान्त निरंकुश हो चुका है और देश की अधिकतर जनता अब भी सम्मोहित है, जो उसे विनाश के द्वार तक ले जाने के लिए तत्पर है; किन्तु आँखें बन्द-की-बन्द।

”विनाशकाले विपरीत बुद्धिः”।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ६ जून, २०२२ ईसवी)