हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचन्द को भूलते लोग!..?

राष्ट्रीय क्रीड़ा-दिवस (तिथि) २९ अगस्त के अवसर पर विशेष

 ● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

भूलना और याद करना, यह एक प्रकार की मानसिक गति है। जब मस्तिष्क का विकेन्द्रीकरण होने लगता है तब व्यक्ति ‘क्या भूलूँ-क्या याद करूँ’ की स्थिति मे आने लगता है। उसे जो भाता है, उसे याद करता है और जो उसके लिए अप्रिय विषय होता है, उसे विस्मृति के गर्भ मे डालता जाता है। वहीं एक स्थिति ऐसी आ जाती है, जब वह उदासीन बना रहता है; स्मरणपटल पर अच्छी बातें उभरीं तो उचित, न उभरीं तो भी उचित। व्यक्ति तो प्राथमिकताएँ निर्धारित करता आया है।

मेरा यह कथन इसलिए प्रासंगिक है कि आज (२९ अगस्त) हॉकी-सम्राट् ध्यानचन्द की जन्मतिथि है, जिसे देशभर मे ‘राष्ट्रीय खेलदिवस’ के नाम से आयोजित किया जाता है; परन्तु खेद है! दुनिया को ख़बरदार करनेवाले ख़ुद ‘बेख़बर’ दिख रहे हैं। आज, अभी तक किसी भी समाचार-चैनल के माध्यम से हॉकी-शिरोमणि’ ध्यानचन्द का नाम तक नहीं लिया गया है। यही स्थिति देश से प्रकाशित समाचारपत्र-पत्रिकाओं की है। इसे किस मानसिकता का नाम दिया जाये।

अब समझें, उस ध्यानचन्द को, जिसे हिटलर ने अपने देश की नागरिकता देकर उनके देश की ओर से खेलने का आग्रह किया था, जिसे ‘स्वदेशभक्ति’ का परिचय देते हुए, ध्यानचन्द ने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया था।

अप्रतिम हॉकी-खिलाड़ी मेजर ध्यानचन्द का जन्म २९ अगस्त, १९०५ ई० को यहियापुर, इलाहाबाद मे हुआ था।
ओलिम्पिक-खेलों की हॉकी-प्रतियोगिता मे भारत को वर्ष १९२८, १९३२ तथा १९३६ मे स्वर्णपदक दिलाने मे दद्दा ध्यानचन्द की विशेष भूमिका रही है। उनके खेलप्रदर्शन को देखकर जाने-माने विदेशी खिलाड़ी हतप्रभ रह जाते थे। उनकी ‘ड्रिबलिंग’ का चमत्कार देखते हुए हिटलर को सन्देह हुआ था। उसने सोचा :― कहीं ध्यानचन्द की स्टिक मे ‘चुम्बक’ तो नहीं लगाया गया है। हिटलर के मन मे ऐसा सोच (‘सोच’ पुंल्लिंग-शब्द है।) इसलिए उत्पन्न हुआ था कि जब ध्यानचन्द के पास गेंद फेंका जाता था अथवा वे प्रतिद्वन्द्वी खिलाड़ी से गेंद छिन लेते थे तब किसी भी प्रतिपक्षी/विपक्षी खिलाड़ी में ऐसी/ऐसा सामर्थ्य नहीं रहती/रहता थी/था, जो गेंद को उनसे छुड़ा सके। ऐसा जानकर हिटलर ने ध्यानचन्द की हॉकी तोड़वायी; किन्तु उसके हाथ निराशा ही लगी थी।

तानाशाह हिटलर उनके प्रदर्शन से ऐसा प्रभावित हुआ कि उसने ध्यानचन्द के सम्मुख अपने देश की ओर से खेलने के लिए प्रस्ताव किया था, जिसे दद्दा ने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया था।

उस अद्भुत और अनुपम खिलाड़ी को हमारा ‘मुक्त मीडिया’ अभिवादन करता है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २९ अगस्त, २०२३ ईसवी।)