प्यारा-प्यारा नाती

मेरे घर की शान डगरुआ,
खूब मुझे भटकाता है ।
तोतिल वाणी के शब्दों से,
खूब मुझे, बहलाता है ।।

मेरे जी की जान डगरुआ,
लेकर छड़ी नचाता है ।
आगे-आगे खुद चलता,
और पीछे मुझे चलाता है ।।

मेरा कहना मान डगरुआ,
आओ उधर घूम आयें ।
पर उंगली के संकेतों से,
राह मुझे दिखलाता है ।।

अपने मन की ‘ठान’ डगरुआ,
करतब नये दिखाता है।
हैंडपम्प को स्वयं चलाकर,
पानी मुझे पिलाता है ।।

टोंटी में मुँह कभी लगाता,
टपकी बूंदें पीता है ।
छप्पा छइयाँ, अकड़म बकड़म,
मुझे देख मुसकाता है ।।

मेरी ‘ सुर – लय – ताल’ डगरुआ,
जीना मुझे सिखाता है ।
जीवन प्रथम सत्यअनुबोधन,
संशय दूर भगाता है ।।

मेरे मन की ‘आन’ डगरुआ,
मन की उलझन सुलझाता है।
छोटे डग हैं, लम्बा मारग,
थक- रुक चलता जाता है ।।

पीछे मुड़कर नहीं देखता,
रहता है गतिमान डगरुआ।
शक्तिमान को लक्ष्य मानकर,
गढ़ता है प्रतिमान डगरुआ ।।

अब मेरी ‘पहचान’ डगरुआ,
उसकी बातें भाती हैं ।
बड़ा घुमक्कड़, अचलू – मचलू,
प्यारा – प्यारा नाती है ।।

अवधेश कुमार शुक्ला
मूरख हिरदय, मूरखों की दुनिया
पौष त्रियोदशी कृष्ण
17/12/2025