उत्तरप्रदेश हिन्दी-संस्थान पर काला दाग़

पंजीरी की तरह से पुरस्कार-सम्मान बाँटे जायेंगे

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


बेहद बदनामशुदा संस्थान लखनऊ-स्थित ‘उत्तरप्रदेश हिन्दी-संस्थान’ की ओर से १ सितम्बर, २०१८ ईसवी को दैनिक समाचारपत्रों में एक सूची प्रकाशित करायी गयी थी, जिसमें विभिन्न विषयों पर दिये जानेवाले पुरस्कार-सम्मानों की घोषणा की गयी थी। घोषित बीस ‘साहित्यभूषण’ सम्मान के अन्तर्गत ऐसे-ऐसे लोग के नाम हैं, जिनका साहित्य के क्षेत्र में कोई ऐसा योगदान नहीं है; परन्तु घर बैठे लाखों रुपये की धनराशि के हक़दार बन चुके हैं। उनमें अधिकतर वे लोग हैं, जो राज्यपालों, उत्तरप्रदेश के मुख्यमन्त्री, उपमुख्यमन्त्री, मन्त्रियों, केन्द्रीय मन्त्रियों तथा भारतीय जनता पार्टी के कई विधायकों-सासदों की संस्तुति के आधार पर बड़ी धनराशि पाने के अधिकारी बन चुके हैं। ‘उत्तरप्रदेश हिन्दी-संस्थान’ के एक भूतपूर्व निदेशक की नज़दीकी महिला मित्र, चहेती, जो पहले लखनऊ में थी और जिसका साहित्यिक स्तर उतना उन्नत नहीं है, जो ‘साहित्यभूषण’ के योग्य बन सके। 


प्रश्न है, उत्तरप्रदेश के जिस मुख्यमन्त्री को नौकरी के लायक़ उत्तरप्रदेश में योग्य अभ्यर्थी नहीं दिख रहे हैं, उसी मुख्यमन्त्री को उत्तरप्रदेश में साहित्यादिक विषयों के जानकार कैसे दिख गये हैं, जो उक्त संस्थान की ओर से लाखों रुपये के पुरस्कार झटकेंगे?


इलाहाबाद के हरिमोहन मालवीय को किस आधार पर ‘साहित्यभूषण’ सम्मान का अधिकारी माना गया है? साहित्य के क्षेत्र में उनका क्या योगदान है? वास्तव में, साहित्य-विषय पर हरिमोहन मालवीय की दो पुस्तकें भी नहीं हैं। सच तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी के सिपहसालार बने रहने का उन्हें इनाम दिया गया है।


इतना ही नहीं, ऐसे-ऐसे लेखकों को पुरस्कार-सम्मान देने की घोषणा की गयी है, जिन्हें साहित्य और भाषा के ‘क ख ग’ की समझ तक नहीं। उनमें अधिकतर के नाम कभी सामने आये ही नहीं। साहित्य की दलाली करनेवालों में शुमार हो सकते हैं।


गोरखपुर, जो योगी का धाम है, से डॉ० रामदेव शुक्ल को लाखों रुपयेवाले ‘हिन्दी गौरव सम्मान’ देने की घोषणा की गयी है। हिन्दीभाषा के क्षेत्र में ‘डॉ० रामदेव शुक्ल’ का नाम न तो पढ़ा गया है और न ही सुना गया है। ऐसे में, उनके नाम पर आपत्ति करना औचित्यपूर्ण है। आख़िर किस आधार पर, किस/किन साक्ष्यों को मानक मानकर डॉ० रामदेव शुक्ल के नाम का चयन किया गया है? इस ‘मुक्त मीडिया’ पर यदि गोरखपुर में रहनेवाले मित्र हों तो वे कृपया डॉ० शुक्ल की ‘हिन्दी-भाषिक’ पृष्ठभूमि से मुझे अवगत करायें। हो सकता है, वे अध्यापक हों, रहे हों; परन्तु यह कोई योग्यता नहीं मानी जायेगी।


चार-छ: नामों को छोड़ दें तो शेष नामों पर “डंके की चोट पर” मेरी आपत्ति है। मैं इन सभी को खुली चुनौती देता हूँ। सुस्पष्ट हो चुका है कि उक्त संस्थान के अध्यक्ष, निदेशक, अन्य पदाधिकारी, समीक्षक, परीक्षक इत्यादिक दोषी लग रहे हैं। उन्हें एक सिरे से आरोपित किये जाने की आवश्यकता है।