योग की वास्तविक व्याख्या

राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित” (योग गुरु, कवि, साहित्यकार)


योग शब्द संस्कृत धातु “युज” से निकला है जिसका अर्थ है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का आत्मा से मिलन। योग भारीय ज्ञान की एक पुरानी एक शैली है। योग का अर्थ लोग शारीरिक व्यायाम को ही मानते हैं जिसमें वे शरीर को मोड़ते हैं खींचते हैं ,श्वांस लेते व छोड़ते हैं। यह वास्तव में मनुष्य के मन व आत्मा की अनंत क्षमता का विकास करते हैं।

योग सिर्फ व्यायाम और आसन नहीं है। यह भावनात्मक एकीकरण और राहस्यवादी तत्व का स्पर्श लिए हुए एक आध्यात्मिक ऊंचाई है। जो आपको सभी कल्पनाओं से परे की कुछ एक झलक देता है।

पतंजलि ने कहा योग क्या है “योगश्च चित्तवृत्ति निरोधः। चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। मननशील परंपरा का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। उपनिषद,ब्रह्दरण्यक में भी योग के बारे में लिखा है। उसमें विभिन्न शारीरिक व्यायामों या अभ्यासों का उल्लेख मिलता है।छान्दोग्य उपनिषद में प्रत्याहार का तथा ब्रह्दरण्यक में स्तवन यानी वेदमन्त्र में प्राणायाम के अभ्यास का उल्लेख है।

योग के वर्तमान स्वरूप के बारे में कठोपनिषद में आता है जिसमे लिखा है कि योग अन्तर्मन की यात्रा है जो चेतना को विकसित करने की एक प्रक्रिया है। गार्गी द्वारा छन्दोग्य उपनिषद में योगासनों के बारे में लिखा है।

पतंजलि को योग का पिता माना जाता है। उन्होंने पतंजलि योगशास्त्र लिखा।गीता में सांख्ययोग, कर्मयोग,भक्तियोग, विभूतियोग,राजगुहियोग आदि योग के विभिन्न अंगों के बारे में विस्तार से लिखा है।

योग सही तरह से जीने का विज्ञान है। इसलिए योग को दैनिक जीवन मे शामिल करना जरूरी है। यह व्यक्ति के सभी पहलुओं पर काम करता है भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और आध्यात्मिक उन्नति करता है। “युज” का अर्थ होता है जुड़ना। योग युज से बना है। आध्यात्मिक स्तर पर जुड़ना। सार्वभौमिक चेतन के साथ व्यक्तिगत चेतना का एक होना। व्यवहारिक स्तर पर योग शरीर,मन,और भावनाओं को संतुलित करने और तालमेल बनाने का साधन है।

यह योग आसन, प्राणायाम,मुद्रा,षट्कर्म,ध्यान आदि करने से प्राप्त होता है। योग सदभाव व एकीकरण का कार्य करता है। यह इतना शक्तिशाली होता है कि शारीरिक व मानसिक रूप से व्यक्ति स्वस्थ रहता है। योग से अस्थमा,कैंसर, मधुमेह,गठिया, रक्तचाप,, पाचन विकार,तंत्रिका तंत्र सम्बन्धी बीमारियों को ठीक कर देता है। योग चिकित्सा तंत्रिका और अंतस्रावी तंत्र में संतुलन बनाये रखता है।

आज व्यक्ति अत्याधिक तनाव में रहता है। रात दिन मोबाइल चलाता है। सारे दिन ऑफिस में कुर्सी पर बैठे रहना,भोजन में गलत खाना ग्रहण करना ये सब व्याधियां बन जाती है जिन्हें योग से दूर किया जा सकता है।
योग के आठ महत्वपूर्ण अंग हैं:-
यम,नियम,आसन,प्राणायाम,प्रत्यहार, धारणा, ध्यान,समाधि। यम के अंतर्गत अहिंसा,सत्य, अस्तेय,ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह आते हैं। नियम के अंर्तगत शौच,संतोष,तप, स्वाध्याय,ईश्वर प्रणिधान आते हैं। आसन द्वारा शारीरिक नियंत्रण किया जाता है। श्वांस लेने सम्बन्धी खास तकनीकों द्वारा प्राण पर नियंत्रण किया जाता है। चित्त के स्वरूप का अनुकईं करना प्रत्यहार कहलाता है। एकाग्रचित होक मन को वश में करना धारणा है। एक परमात्मा के परिचायक दो ढाई अक्षर का एक नाम का जप ओर किसी तत्वदर्शी महापुरुष का ध्यान करना चाहिए। आत्मा से जुड़ना शब्दों से परे परम चैतन्य की अवस्था । हम सभी समाधि का अनुभव करें।

11 दिसम्बर 2014 से योग सारे विश्व के लोग करने लगे। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वर्ष 21 जून को विश्व योग दिवस के रुप मे मान्यता दी गई। भगवदगीता की व्याख्या यथार्थ गीता में योग को सरल तरीक़े से समझाया गया है। योग का वास्तविक अर्थ जानने हेतु इस कृति को अवश्य पढ़ें। योग का लक्ष्य स्वास्थ्य में सुधार से लेकर मोक्ष पीट करने तक है।

योगसूत्र,योगभाष्य, योगशास्त्रीय प्राणायाम, तत्ववेशारदी,भोजवृति,योगवार्तिक,योगसारसंग्रह, हठयोगप्रदीपिका,सूत्रवृति, शिवसंहिता, योगचूड़ामण्डूपनिषद ,सूत्राटपेअबोधनी,मनीप्रभा आदि ग्रंथ है जिसमे योग को विस्तार से लिखा है।
आइये योग करें हमारी भारतीय संस्कृति,ऋषि मुनियों की परंपरा को आगे बढ़ाएं। योग घर घर मे सिखाएं। करें योग,रहें निरोग।
98,पुरोहित कुटी,श्रीराम कॉलोनी,भवानीमंडी