देश की जनता के रुपयों पर राजनीतिक अय्याशी

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

हमारे देश के प्रधानमन्त्री कहते हैं : मैं ‘जनता का सेवक’ हूँ; मैं आप सबका ‘प्रधान चौकीदार’ हूँ; परन्तु विडम्बना देखिए, उनका काम ‘चौकीदारी’ का और मीडिया की सुर्ख़ियों में बने रहते हैं; वस्त्र, घड़ी तथा अन्य आभूषणसहित उनके शरीर पर करोड़ों रुपये की वस्तुएँ रहती हैं; विदेशों में बिना पूर्व-सूचना के घूमते रहते हैं। यदि वे सचमुच, जनसेवक हैं तो संवैधानिक और व्यावहारिक रूप में ‘प्रधानमन्त्री’ के स्थान पर ‘प्रधान जनसेवक’ कहलाने के लिए क्यों नहीं प्रस्तुत होते हैं? देश के संविधान में ‘प्रधान मन्त्री’ को स्थान क्यों? इतना ही नहीं, इस ‘जनसेवक’ शब्द का प्रभाव देश की जनता व्यापक और विशद रूप में देखना चाहती है। यह कैसी चौकीदारी कि आज देश का एक-एक व्यक्ति असुरक्षित जीवन जीने के लिए विवश और बाध्य है और प्रधान चौकीदार को ‘देश के सबसे बड़े सुरक्षा-कवच’ की सुविधा दी जा रही है। ऐसे में, देश की जनता उस चौकीदार से ‘सुरक्षा’ की आशा कैसे कर सकती है? यह विषय बहुत गम्भीर है। देश की जनता समझने का प्रयास ही नहीं करती।

प्रधान जनसेवक और प्रधान चौकीदार के नाम पर देश की जनता के साथ क्रूर छल किया जा रहा है। जब चुनाव का समय आया तब ‘प्रधान चौकीदार’ बन गये और ‘मुक्त मीडिया’ पर ‘मैं हूँ चौकीदार’, ‘मैं भी चौकीदार’ आदिक की बाढ़ आ गयी थी। लग रहा था, मानो राष्ट्रीय चेहरा ‘चौकीदार’ बननेवाला हो। ‘चौकीदार’ को भुनाना था, भुन गया तो ‘चौकीदार को हाशिये से भी सरका कर उसका नामोनिशाँ मिटा डाला गया। अब वे सभी बहुरुपिये एक साथ ऐसे ग़ायब हुए, जैसे गधे के सिर से सींग।

न्यायालय को इसका स्वत: संज्ञान करना चाहिए, जिससे कि राजनीतिक अय्याशी समाप्त हो सके। इतना ही नहीं, उन सभी को दी जानेवाली सारी ‘विशेष’ और ‘अतिरिक्त’ सुविधाएँ सभी राजनेताओं से ले ली जायें। वे ही सुविधाएँ-साधन उन्हें दिये जायें, जो उनके कर्त्तव्य-पालन के लिए अपरिहार्य हों। जिस प्रकार देश का मध्यम-वर्ग अपना जीवन जीता है, उसी प्रकार उनके भी जीवन-यापन करने की व्यवस्था की जाये।

देश में विधायकों, सांसदों को दी जानेवाली पेंशन समाप्त करने की आवश्यकता है; साथ ही उन्हें ‘विशिष्ट’ व्यक्ति के रूप में दी जानेवाली औचित्यरहित साधन- सुविधा उनसे वापस ली जाये।

और हाँ, देश में किसी भी निर्वाचन के लिए उम्मीदवार की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता ‘स्नातक’ निर्धारित की जाये। उम्मीदवार ‘स्वच्छ छवि’ वाला रहे।

ये सब ढकोसला है। आज़ादी के बाद से जितने भी राजनीतिक दलों ने हम पर शासन किये हैं, सबने किसी-न-किसी रूप में ठगा है; देशवासियों को लूटा है, इसलिए अब यह अपरिहार्य हो गया है कि केन्द्र और राज्यों में जिस भी दल की सरकारें हैं, उनकी सत्ता को प्रत्येक पाँच वर्षों-बाद देश के मतदाता उखाड़ फेंकें। देश की जनता को ‘पाँव से सिर तक’ इतने तरह के ‘करों’ से लाद दिया जाता है कि देश की औसत जनता ‘क़र्ज़ में जीते-जीते, उसी को चिता और कफ़न बनाकर ‘क़र्ज़’ में मर जाती है और देशवासियों के रुपयों को ‘राजस्व’ के नाम पर हमारे नेता अपनी तिज़ोरी भरते हैं। देश की जनता कब आँखें खोलेगी?

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १७ जुलाई, २०२० ईसवी)