● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
इस पूरे विश्वकप मे जिस क्रिकेट-दल ने बल्लेबाज़ी, गेंदबाज़ी, क्षेत्ररक्षण तथा विकेटरक्षण करते हुए, शेष विश्व को चौंका दिया है, वह है, ‘भारतीय क्रिकेट-दल’। आत्मविश्वास से भरपूर भारतीय दल के खेलाड़ियों का ‘जीतने का स्वभाव’ बन चुका है, इसलिए विश्वकप क्रिकेट का फ़ाइनल भी उसके पक्ष मे जाता हुआ दिख रहा है। हमे नहीं भूलना चाहिए कि पुरुष-विश्वकप क्रिकेट– २०२३ की प्रतियोगिता मे ‘लीग चरण से लेकर नॉक-आउट तक’ के जितने भी मुक़ाबले हुए हैं, उनमे भारतीय दल की बराबरी करने मे विश्व के जाने-माने क्रिकेट-दल और ‘प्रोफ़ेसनल टीम’ के नाम से जाना जानेवाला ऑस्ट्रेलिया भी विफल सिद्ध हो चुके हैं। यही कारण है कि भारतीय दल विश्वकप को चूमने से कुछ ही क़दम की दूरी पर खड़ा है। भारतीय कप्तान और प्रशिक्षकों ने अपने खेलाड़ियों के प्रदर्शन करने की जो रणनीति बनायी है तथा उसके अनुसार प्रदर्शन करके यह सिद्ध कर दिया है कि उसके समान विश्व की अन्य कोई दल नहीं है। हमने देखा कि इकाई के ही अंक पर भारतीय दल के कई विकेट गिर चुके थे; किन्तु उसके खेलाड़ियों ने धैर्य और साहस का परिचय प्रस्तुत करते हुए, जिस प्रकार प्रदर्शन किया था, उससे विपक्षी दलों के दाँत खट्टे हो गये थे।
भारतीय दल ने बल्लेबाज़ी, गेंदबाज़ी, क्षेत्ररक्षण तथा विकेट-रक्षण करते हुए, अब तक के मैचों मे जितना और जिस रूप मे भी प्रदर्शन किया है, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि वह ‘विश्वकप’ को गर्व से उठाने के लिए तत्पर हो चुका है। ऐसा लगने लगा है, मानो आजका भारतीय क्रिकेट-दल अब तक का सर्वाधिक सुदृढ़ दल बन चुका है।
भारतीय बल्लेबाज़ी के सम्मुख शेष दल पानी भरते नज़र आ रहे हैं। कप्तान रोहित शर्मा की वह रणनीति बेहद असरकारी साबित होती दिख रही है, जिसमे वे ८ से १० रन प्रति ओह्वर बल्लेबाज़ी करके आरम्भिक ‘पॉवर प्ले’ मे लगभग ६० रन बनाकर विराट कोहली को दबावमुक्त होकर खेलने के लिए मार्ग प्रशस्त करते आ रहे हैं। कोहली बहुत ही समझ-बूझकर बल्लेबाज़ी करते आ रहे हैं। हमने कई मैचों मे देखा कि रोहित शर्मा यदि जल्दी आउट हो भी जाते हैं तो शुभमन गिल मोर्चा सँभाल लेते हैं और कम-से-कम ५० रन बनाकर कोहली का साथ देते हैं। गिल वा कोहली मे से यदि कोई भी आउट हो जाता है तो श्रेयस अय्यर की ठोस और आक्रामक बल्लेबाज़ी प्रतिद्वन्द्वियों की नाक मे दम करती दिखती है। सूर्यकुमार यादव को अभी सही ढंग से खेलने का मौक़ा नहीं मिल पा रहा है। रवीन्द्र जडेजा अपनी हरफ़नमौला की योग्यता बाख़ूबी सिद्ध करते आ रहे हैं।
विश्वकप क्रिकेट-इतिहास का एक अभूतपूर्व आयोजन
उस विश्वकप के फ़ाइनल मे एक अभूतपूर्व आयोजन भी होगा, जिसमे देश-देशान्तर के विश्वकप-विजेता के सभी कप्तानो को निमन्त्रित किया गया है। उन सभी कप्तानो को उस वैश्विक आयोजन के अवसर पर ‘ब्लेजर्स’ भेंटकर सम्मानित किया जायेगा। इस दृष्टि से ‘विश्व कप क्रिकेट’ के फ़ाइनल मैच का वह आयोजन अपनी भव्यता के साथ विश्व के दर्शकों को मन्त्रमुग्ध करता लक्षित होगा और चारों दिशाएँ सम्मोहित मुद्रा मे उस आयोजन का साक्षी बनती स्वयं पर गर्व करती अनुभव करेंगी।
पाँच गेंदबाज़ों मे से तीन तीव्र गेंदबाज़ :– जसप्रीत बुमराह, मो० शमी तथा मो० सिराज मे से सिराज उतने प्रभावकारी सिद्ध नहीं हो पा रहे हैं, जितने वे कभी होते थे। उनकी गेंदबाज़ी मे जो तीख़ापन दिखता था, वह विश्वकप मे दिख नहीं रहा है। यही कारण है कि विपक्षी बल्लेबाज़ों को उनकी गेंदों का सामना करने मे कोई ख़ास कठिनाई नहीं हो रही है तथा वे सबसे अधिक महँगे भी सिद्ध होते आ रहे हैं। सिराज के स्थान पर ‘प्रसिद्ध कृष्णा’ को लाया जा सकता है। जसप्रीत बुमराह अपनी किफ़ायती और घातक गेंदबाज़ी से प्रतिपक्षी दल को भयभीत करते आ रहे हैं, जबकि मो० शमी अपनी बारीक़ और इन-स्विंग और आउट-स्विंग, यॉर्कर करके तथा गुड लेंथ पर गेंदें फेंककर अपनी उपयोगिता और महत्ता सिद्ध करते आ रहे हैं। १५ नवम्बर को पहले सेमी फ़ाइनल मे जिस तरह से मो० शमी ने ७ विकेट लेकर न्यूज़ीलैण्ड के बल्लेबाज़ों की कमर तोड़ दी थी तथा गिल, कोहली एवं अय्यर ने प्रभावकारी बल्लेबाज़ी की थी, उसकी अनुगूँज आगामी १९ नवम्बर को ऑस्ट्रेलिया के साथ खेले जानेवाले फ़ाइनल मैच के समय अहमदाबाद (गुजरात) के मैदान मे चारों और निश्चित रूप से सुनायी देती रहेगी तथा मैदान मे समर्थन कर रही अपार भीड़ का जयघोष भारतीय खेलाड़ियों मे स्फूर्ति भरता अनुभव करायेगा।दोनो स्पिन-गेंदबाज़ों :–रवीन्द्र जडेजा और कुलपति यादव के घूमते गेंद विपक्षियों पर भारी पड़ते दिख रहे हैं, जिससे ऑस्ट्रेलिया के दमदार बल्लेबाज़ भी परिचित हो चुके हैं।
इस विश्वकप मे भारतीय दल की प्रमुख विशेषता रही है कि वह किसी एक खेलाड़ी पर पूरी तरह से आश्रित नहीं रहा है; क्योंकि रोहित, गिल, कोहली, राहुल, अय्यर, सूर्यकुमार तथा रवीन्द्र जडेजा का कोई विकल्प नहीं है। वे सभी अपनी-अपनी भूमिका से वाक़िफ़ हैं और उसका प्रभावकारी ढंग से निर्वहण भी करते आ रहे हैं।
भारतीय क्षेत्ररक्षण सर्वोत्तम कोटि का है। रवीन्द्र जडेजा, श्रेयस अय्यर, रोहित शर्मा, शुभमन गिल तथा विराट कोहली का क्षेत्ररक्षण देखते ही बनता है, जबकि के० एल० राहुल का विकेटरक्षण करते समय शानदार और जानदार तरीक़े से अत्यन्त कठिन कैचों को लपकते हुए देखकर विपक्षी दलों के पसीने निकलते आ रहे हैं तथा मैदान मे जितने भी दर्शक बैठे रहते हैं, वे सब ‘वाह-वाह!’ कहने के लिए उतावले हो जाते हैं।
हमने १६ नवम्बर को दूसरे सेमी फ़ाइनल मे ऑस्ट्रेलिया-दल और दक्षिणअफ़्रीका-दल के बीच खेले गये मैच मे ऑस्ट्रेलियाई खेलाड़ियों की बल्लेबाज़ी, गेंदबाज़ी तथा उनका क्षेत्ररक्षण देख लिया था, जिसमे कोई ऐसी बात नहीं दिखी थी, जिससे यह लगे कि उन्हें पछाड़ने मे भारतीय खेलाड़ियों को एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाना पड़े। दक्षिणअफ़्रीका-दल ने मात्र २१२ रन बनाये थे, जिसे बनाने मे ऑस्ट्रेलिया के ७ खेलाड़ियों को अपने विकेट गवाँने पड़े थे, जिनमे सर्वाधिक रन (६२ रन) बनानेवाले ऑस्ट्रेलियाई खेलाड़ी ट्रेविस हेड थे। इस दृष्टि ऑस्ट्रेलियाई दल के सामने भारतीय दल ‘बीस’ नहीं, ‘इक्कीस’ साबित होगा। यदि भारतीय दल ने ३५० से ४०० रनो का सफ़र तय कर लिया तो उसे बनाने मे ऑस्ट्रेलियाई खेलाड़ियों के पसीने छूट जायेंगे। यदि ऑस्ट्रेलिया-दल पहले बल्लेबाज़ी करने के लिए उतरे तो भारतीय दल को चाहिए कि उसे अधिकतम ३०० रनो के भीतर आउट कर ले, जिसे बनाने मे भारत के चार खेलाड़ी ही समर्थ हैं।
ऑस्ट्रेलियाई दल को ट्रेविस हेड, डेविड वार्नर, स्मिथ, ग्लेन मैक्सवेल तथा लाबुशेन पर पूरा भरोसा है; परन्तु भारतीय गेंदबाज़ यह समझ चुके हैं कि किस ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ को किस स्तर का गेंद करना होगा।
ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज़ों मे स्टार्क, हेज़लवुड तथा जाम्पा के गेंदें प्रभावकारी दिखते रहे हैं, जिनको किस तरह से खेलना है और किस समय प्रहारात्मक रुख़ इख़्तियार (‘अख़्तियार’ अशुद्ध है।) करना है, अच्छी तरह से समझ चुके हैं।
ज्ञातव्य है कि ऑस्ट्रेलियाई दल दक्षिणअफ़्रीका-दल को ३ विकेटों से पराजित कर, आठवीं बार विश्वकप मे पहुँचा है, जबकि भारतीय दल ने न्यूज़ीलैण्ड-दल को ७० रनो से हराकर चौथी बार विश्वकप के फ़ाइनल मे अपनी जगह बनायी है। इससे पहले भारतीय दल वर्ष १९८३ मे कपिलदेव, वर्ष २००३ मे सौरव गांगुली तथा २०११ मे महेन्द्र सिंह धोनी की कप्तानी मे विश्वकप के फ़ाइनल मे पहुँचा था। ऑस्ट्रेलियाई दल अब तक पाँच बार विश्वकप जीत चुका है, जबकि भारतीय दल दो बार। अब रोहित शर्मा का दल १३ वर्षों के सूखे को सरसाने के लिए १९ नवम्बर को ऑस्ट्रेलियाई दल के सामने अपने आक्रामक तेवर मे दिखेगा। दोनो दल २० वर्षों-बाद विश्वकप के फ़ाइनल मे दूसरी बार आमने-सामने ताल ठोंकते हुए दिखेंगे। इससे पहले वर्ष २००३ मे दोनो देशों के दल एक-दूसरे से भिड़ चुके हैं, जिसमे ऑस्ट्रेलियाई दल ने १२५ रनो से भारतीय दल को पराजित किया था। जिस तरह से भारतीय दल ने सेमी फ़ाइनल मे न्यूज़ीलैण्ड को पराजित कर, वर्ष २०१९ मे न्यूज़ीलैण्ड के हाथों हार का बदला ले लिया है उसी तरह से उसे ऑस्ट्रेलिया को फ़ाइनल मे हराकर वर्ष २००३ का प्रतिशोध लेने मे कोई कमी नहीं छोड़नी होगी।
इस बार भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले जानेवाले फ़ाइनल मैच मे ‘मैच’ से पहले दर्शकों के रोमांच को बढ़ाने के लिए भारतीय वायुसेना के ‘सूर्यकिरण एरोबैटिक दल’ १० मिनट तक साहसिक प्रदर्शन करेगा।
इस विश्वकप-मुक़ाबले मे वर्षा की भूमिका ‘खलनायिका’ के रूप मे भी जब-तब दिखती आ रही है, जिसे लेकर दर्शकों को चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि १९ नवम्बर को होनेवाले फ़ाइनल-मैच मे यदि वर्षा बाधक बनी तो उसके लिए ‘रिज़र्व डे’ (सुरक्षित दिन) की व्यवस्था की गयी है। इस प्रकार वर्षा के कारण यदि खेल स्थगित किया गया तो मैच ‘रिज़र्व डे’ मे पुन: वहीं से शुरू किया जायेगा।
कुल मिलाकर, विश्वकप का फ़ाइनल अति उत्तेजनापूर्ण वातावरण मे खेला जायेगा और परिणाम के रूप मे क्रिकेट का विश्वकप भारतीय खेमे की ओर जाता दिखेगा।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १८ नवम्बर, २०२३ ईसवी।)