‘वैचारिकी’ का कविसम्मेलन सम्पन्न

“आसमाँ गर तू बना तो मैं धरा बन जाऊँगी।”
सर्जनशील रचनाकारों का वैचारिक मंच ‘वैचारिकी‘ की ओर से ३१ मार्च, २०१८ ई० को अल्लापुर, इलाहाबाद में एक भव्य कविसम्मेलन का आयोजन किया गया था।

नवोदित कवयित्री कविता त्रिपाठी ने सुनाया– वह कौन है, जो संस्कृति को अपनाता है, वह कौन है जो संस्कारों को निभाता है।

सागर होशियारपुरी ने शेर प्रस्तुत किया– दुनिया में जब तक रहे, छोड़ा न कुछ भी हाथ से, छोड़ी जब दुनिया तो हाथों में रहा कुछ भी नहीं।

अना इलाहाबादी की रचना थी– आसमाँ गर तू बना तो मैं धरा बन जाऊँगी, तू तलाशेगा जो मंज़िल रास्ता बन जाऊँगा।

डॉ० प्रदीप चित्रांशी ने दोहा सुनाया– चंचल मन की आशिक़ी, और प्रेम व्यवहार। समझ सका कोई नहीं, जो समझा लाचार।।

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने ग़ज़ल पेश की– चादर की सलवटें बेबाक होने को हैं, हमारी रात हमारे साथ रहने दो।

शिवराम उपाध्याय ‘मुकुल मतवाला’ ने पढ़ा– तेरी नन्ही-नन्ही मुट्ठी में मेरे भारत का अरमान है, पग सँभल-सँभल कर रखना तू तो नई सदी की जान है।

डॉ० रवि कुमार मिश्र ने कविता पढ़ी– किताबों को सीने से लगाकर सारी रात सोये थे। डॉ० वीरेन्द्र तिवारी ने गाया–सखी री! देख वसन्त कमाल। इनके अतिरिक्त तलब जौनपुरी, महिमा त्रिपाठी, हिमांशु पाण्डेय, रामायण जी, देवीप्रसाद पाण्डेय, के० पी० गिरि, ऋतिक मिश्र, हितेश मिश्र, राजेश सिंह, दयाशंकर पाण्डेय, डॉ० इन्दु जौनपुरी, विपिन दिलकश, विपिन दिलकश, मीरा सिनहा, कविता उपाध्याय, देवयानी, एस० पी० श्रीवास्तव, कैलाशनाथ पाण्डेय, विवेक सत्यांशु, शैलेन्द्र चौधरी, ज्योतिर्मयी, महक जौनपुरी, उमेश श्रीवास्तव, शम्भुनाथ त्रिपाठी ‘अंशुल’, केशव सक्सेना आदि ने अपनी रचनाएँ सुनायीं।
कविसम्मेलन की अध्यक्ष देवेश थेमीरा सिन्हा मुख्य अतिथि थीं। ओमप्रकाश दार्शनिक और डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय विशिष्ट अतिथि थे
कविसम्मेलन का संयोजन शिवराम गुप्त और संचालन डॉ० रवि मिश्र ने किया।