प्रयागराज मे एक समुदाय-विशेष की ‘खुली गुण्डई’ सामने आयी?

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
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आज (१० जून) प्रयागराज मे जुमे की नमाज़ पढ़़ने के बाद जिस तरह से ईंट और पत्थर के टुकड़ों से पुलिस और ज़िला-प्रशासन के अधिकारियों पर हमले किये गये हैं, वह बेहद निन्दनीय कृत्य है। यदि कथित नमाज़ी ऐसे कृत्य करके नगर को आतंकित करना चाहते हों तो उन्हें ऐसा सबक़ मिलना चाहिए कि उक्त घटना की पुनरावृत्ति करने का कोई दुस्साहस न कर सके।

घरों से ईंट-पत्थरों के टुकड़ों को फेंकनेवालों और वालियों की पहचान कर, उन्हें कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए। जिन लोग ने वाहनों को क्षति पहुँचायी है, उन सभी को आरोपित बनाते हुए, उनसे अविलम्ब क्षतिपूर्ति करानी होगी और उन सभी पर आपराधिक मुक़द्दमा क़ायम होना चाहिए।

यहाँ सरकार भी दोषी है, जो उस अपराधिन महिला (नूपुर शर्मा) और सम्बन्धित समाचार-चैनल की सूत्रधार को हरी झण्डी दिखाती आ रही है। इससे देश का वातावरण आतंकी बनता जा रहा है। सरकार उन्हें गिरिफ़्तार क्यों नहीं कर पा रही है? इस नाकामी के कारण हमारे सुरक्षाकर्मी घायल किये जा रहे हैं और देशभर का जनजीवन त्रस्त किया जा रहा है। कथित सरकार की जनघाती हठधर्मिता के कारण हमारे सुरक्षाकर्मियों की ऊर्जा का अनावश्यक संदर्भों मे अपव्यय कराया जा रहा है।

प्रयागराज मे घटित शर्मनाक काण्ड के लिए जिस किसी भी समुदाय के आक्रामक लोग सी० सी० टी० ह्वी० मे दिख रहे हों, उन्हें अतिशीघ्र जेल के सीखचों के पीछे भूखे-प्यासे डाल देने की ज़रूरत है; क्योंकि व्यावहारिक स्तर पर आक्रामक तेवर दिखाकर विरोध-प्रदर्शन करना, गम्भीर आपराधिक कृत्य है; अक्षम्य गतिविधि है। यदि प्रदर्शन करना ही था तो शान्तिपूर्वक करते अथवा जिस अधम नूपुर शर्मा ने आपत्तिजनक बात कही थी, तुम लोग भी कुछ वैसा ही कहकर शान्त हो जाते। यदि यह किसी समुदाय-विशेष का शक्तिप्रदर्शन है तो उसका हिंसक और विध्वंसक होना, अक्षम्य है। कानपुर मे तो दो बेहद घटिया समुदायों के चरित्र का परिचय देनेवाली उपद्रवी भीड़ थी; किन्तु प्रयागराज मे ‘जुमे की नमाज़’ पढ़ने के बाद ऐसा कौन-सा ‘शैतानी भूत’ सवार हुआ कि भीड़ उग्र हो गयी। जिन बच्चों के हाथों मे किताब, कॉपी तथा क़लम होने चाहिए, उन्हीं हाथों मे विध्वंसक-हिंसक सामान देखे गये हैं और उनका दुरुपयोग करते बालक-किशोर अप्रासंगिक नारे लगाते हुए भी।

ऐसे मे, उन लोग के विरुद्ध कठोरतम न्यायिक कार्यवाही की आवश्यकता है, जो भीड़ का हिंसक ढंग से रहनुमाई कर रहे थे। ऐसे रहनुमाओं को यदि सही ढंग से सबक़ सिखा दिया गया तो उन्मादी भीड़ के हौसले पस्त हो जायेंगे, जिसकी आज सख़्त ज़रूरत है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १० जून, २०२२ ईसवी।)