क्या मैं पागल हूँ?

राहुल पाण्डेय ‘अविचल’

क्या मैं पागल हूँ?
सोचता हूँ जब कभी इस विषय पर लिखने को तो आँखों में आँशू होते हैं,
सीने में जलन,
चेहरे पर खामोशियाँ और सिकन,
माथे पर चिन्ता की लकीरें,
फिर भी सोचता हूँ लिख दूँ आज,
जब कोई किसी से पूँछता है,
क्या तुम पागल हो?
कितना दर्द भरा शब्द होता है!
फिर जब भावनाएँ आहत होती है और किसी की चाहत होती है!!
सीनें में दर्द होता है तो कहना पड़ता है!
हाँ हाँ मै पागल हूँ!!
क्योकिं तुमसे प्यार करना मेरा पागलपन था।
मेरी बेबसी को अगर समझा होता,
मेरी तड़प को तड़पते देखकर मुँह न मोड़ा होता!
तब न तुम कहते क्या तुम पागल हो?
और न मै कहता कि हाँ हाँ मै पागल हूँ!!