सामाजिक जहर : बात पीरियड्स की

कवि- सितांशु त्रिपाठी, सम्पर्क सूत्र – 9399851765  जिला – सतना, मध्यप्रदेश
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एक बात पुरानी है, एक घटिया सोच पुरानी है ।
दिल तो रोया कब का था, आंखों में फिर आज मेरे पानी है ।समझ न पाया मैं आज तक, जाने कैसे रीति-रिवाज के नाम पर यह मनमानी है । 

बात करूं  मैं उसी सोच की, शिकार जिसकी आज भी दादी और नानी है ।

कहती हैं वो बहन को अपवित्र, तीन दिनों तक पीना नहीं कोई छुआ उसका पानी है । 

 अरे बोलो पाप किया क्या उसने क्यों ये  तुम्हारी  आनाकानी है ,

दिखाओ ना मुझे उस पन्ने को, जिसमें किसी मूरख ने लिखी ये मनगढ़ंत कहानी है ।
शायद थे अनपढ़ गंवार पूर्वज सारे और यह उसी की एक निशानी है ।
रोती है वह चुप के साथ ना होता जब कोई उसके, क्या समाज ये अज्ञानी है ?
कोई गलती है ना उसकी ना ही वो अपवित्र, बस स्त्री के शरीर से निकला हुआ गंदा वो पानी है ।

गुनाह नहीं है वह कोई, बस है शारीरिक क्रियाकलाप और विज्ञान ने भी बात ये मानी है ।

बेचूंगा अंधों के शहर में आइना, मैंने भी अब ये ठानी है ।
मिट जाऊंगा खुद या मिटा दूंगा उन सबको, जिनकी यह मनगढ़ंत कहानी है ।

मैं ना मानूं ऐसे किसी रीति रिवाज को, चलती जहाँ कुछ  मूरख बुजुर्गों की मनमानी है ।

दुनिया पहुंच रही चांद पर, यहाँ कुछ मूर्ख काट पंख बहन के  कहते खुद को ज्ञानी हैं ।

थूंकता हूं मुंह पर मैं उनके, रची जिन्होंने यह घटिया कहानी है ।
बस और नहीं अब, तुम्हें रुकना होगा ।

बहन उड़ेगी तुम्हे झुकना होगा, क्योंकि लिखनी उसको भी एक नई कहानी है ।
बहन है आज मेरी वो पर कल किसी की, होने वाली दादी और नानी है ।