कवि- सितांशु त्रिपाठी, सम्पर्क सूत्र – 9399851765 जिला – सतना, मध्यप्रदेश
Email- sitanshu2811@gmail.com“
एक बात पुरानी है, एक घटिया सोच पुरानी है ।
दिल तो रोया कब का था, आंखों में फिर आज मेरे पानी है ।समझ न पाया मैं आज तक, जाने कैसे रीति-रिवाज के नाम पर यह मनमानी है ।
बात करूं मैं उसी सोच की, शिकार जिसकी आज भी दादी और नानी है ।
कहती हैं वो बहन को अपवित्र, तीन दिनों तक पीना नहीं कोई छुआ उसका पानी है ।
अरे बोलो पाप किया क्या उसने क्यों ये तुम्हारी आनाकानी है ,
दिखाओ ना मुझे उस पन्ने को, जिसमें किसी मूरख ने लिखी ये मनगढ़ंत कहानी है ।
शायद थे अनपढ़ गंवार पूर्वज सारे और यह उसी की एक निशानी है ।
रोती है वह चुप के साथ ना होता जब कोई उसके, क्या समाज ये अज्ञानी है ?
कोई गलती है ना उसकी ना ही वो अपवित्र, बस स्त्री के शरीर से निकला हुआ गंदा वो पानी है ।
गुनाह नहीं है वह कोई, बस है शारीरिक क्रियाकलाप और विज्ञान ने भी बात ये मानी है ।
बेचूंगा अंधों के शहर में आइना, मैंने भी अब ये ठानी है ।
मिट जाऊंगा खुद या मिटा दूंगा उन सबको, जिनकी यह मनगढ़ंत कहानी है ।
मैं ना मानूं ऐसे किसी रीति रिवाज को, चलती जहाँ कुछ मूरख बुजुर्गों की मनमानी है ।
दुनिया पहुंच रही चांद पर, यहाँ कुछ मूर्ख काट पंख बहन के कहते खुद को ज्ञानी हैं ।
थूंकता हूं मुंह पर मैं उनके, रची जिन्होंने यह घटिया कहानी है ।
बस और नहीं अब, तुम्हें रुकना होगा ।
बहन उड़ेगी तुम्हे झुकना होगा, क्योंकि लिखनी उसको भी एक नई कहानी है ।
बहन है आज मेरी वो पर कल किसी की, होने वाली दादी और नानी है ।