देश के प्रख्यात टी० जी० टी०-पी० जी० टी०-सहायक प्राध्यापक हिन्दीशिक्षाविद्, ‘हिन्दी-संसार’, प्रयागराज नामक शिक्षण-संस्थान के निदेशक एवं परमप्रिय शिष्य डॉ० अशोक स्वामी जी आज (१२ जनवरी) हमारे ‘सारस्वत सदन’ मे आये थे। हमने लगभग एक घण्टा तक ऐसे विषय-विन्दुओँ पर विमर्श किये, जो कल की तारीख़ मे एक ‘तवारीख़’ (इतिहास) सिद्ध होँगे।
हमने इस अवसर पर डॉ० स्वामी जी को हिन्दी ‘साहित्य सम्मेलन प्रयाग’ की नवीनतम दैनन्दिनी (डाइरी/रोज़नामचा) और ‘राष्ट्रभाषा संदेश’ का सम्पादित ‘हिन्दीभाषा-उत्थान-विशेषांक’, ‘स्वातन्त्र्य-समर मे इलाहाबाद का शंखनाद’ नामक सम्पादित क्रान्तिगाथा प्रदान की थी। डॉ० स्वामी जी के साथ उनके विशेष सहयोगी प्रियवर अभिषेक यादव जी थे। उन्हेँ भी उपर्युक्त सारस्वत सामग्री प्रदान की गयी थी।
हम डॉ० अशोक स्वामी जी के लिए एक कथन अवश्य करना चाहते हैँ :– ‘एकलव्य’ और ‘अर्जुन’ के रूप मे देशभर मे, विशेषत: उत्तर-भारत मे हमारे लाखोँ शिष्य और विद्यार्थी हैँ, जो उच्चपदस्थ हैँ; परन्तु हमने डॉ० स्वामी जी मे जो विनयशीलता, उदारशीलता एवं सदाशयता पायी है, वह दृष्टान्त हमारे लिए शीर्ष पर है; अनन्य है। यही कारण है कि आज देश मे टी० जी० टी०-पी० जी० टी० (हिन्दी) के बहुसंख्य विद्यार्थी उनके उपर्युक्त शिक्षण-संस्थान के साथ प्रत्यक्ष-परोक्ष जुड़े हुए हैँ।
हम हिन्दीशिक्षाविद् के रूप मे विश्रुत/प्रख्यात अपने परमप्रिय शिष्य डॉ० अशोक स्वामी जी के मनस्वी-जीवन की कामना करते हैँ।