ओलिम्पिक मे भारत के ही साथ नकारात्मक बरताव क्योँ?

हम यदि ओलिम्पिक-खेलोँ के इतिहास का अध्ययन करेँ तो ऐसे अनेक उदाहरण हैँ, जहाँ भारतीय खेलाड़ी-खेलाड़िनो के मनोबल तोड़ने के लिए विदेशी निर्णायक और अधिकारियोँ ने गर्हित कृत्य किये हैँ।

हम अभी इसी ओलिम्पिक का उदाहरण प्रस्तुत करेँगे। सबसे पहले भारत को हॉकी-खेल मे उसके आक्रामक और रक्षात्मक खेलाड़ी अमित रोहिदास को ‘रेड कार्ड’ दिखाकर ‘ओलिम्पिक मैच’ से बाहर करा दिया गया है। पिछले मुक़ाबले मे टी० ह्वी० अम्पायर ने रेफ़्री के भारत के विरुद्ध ‘पेनाल्टि कॉर्नर’ के निर्णय को यह कहकर बदला नहीँ– मुझे यहाँ से कुछ साफ़ पता नहीँ चल रहा है, इसलिए रेफ़्री अपने निर्णय पर बना रहे।

…. और अब कुश्ती मे स्वर्णपदक की प्रबलतम दावेदार विनेश फोगाट के साथ ‘नियम के विरुद्ध शारीरिक भार मे वृद्धि’ का तर्क देकर ओलिम्पिक से ही बाहर करा दिया गया है।

हमे नहीँ भूलना चाहिए कि पिछले ओलिम्पिक-खेल मे टोक्यो मे भालाप्रक्षेपण-प्रतियोगिता के प्रबलतम दावेदार नीरज चोपड़ा को भी टोक्यो ओलिम्पिक-खेल से बाहर कराने का घिनौना षड्यन्त्र रच दिया गया था; परन्तु गम्भीर विरोध करने पर सम्बन्धित उपकरण से जाँचा-परखा गया था तब निर्णय भारत के पक्ष मे आया था, जो कि सम्बन्धित खेल-अधिकारियोँ और निर्णायकोँ के गाल पर निर्णायक ‘स्वर्णिम तमाचा’ था।

बेशक, यहाँ नियम मे शिथिलता पर पुनर्विचार करना होगा; क्योँकि ओलिम्पिक-आयोजन मे पहुँचने के बाद यदि कुछ घण्टोँ के भीतर खेलाड़ी/खेलाड़िन का थोड़ा-बहुत शारीरिक भार बढ़ जाता है तो उसके प्रति शिथिलता बरतनी चाहिए; क्योँकि कोई खेलाड़ी/खेलाड़िन जानबूझकर अपना भार नहीँ बढ़ाता और न ही उतने कम समय मे कोई चमत्कार कर, अपने शारीरिक भार पर नियन्त्रण कर सकता है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ७ अगस्त, २०२४ ईसवी।