बांग्लादेशी आरक्षण की लपटेँ : सड़क से संसद् तक!

राख की उपेक्षा की जाती रही; परन्तु उसके भीतर की सुगबुगाहट कोई देख न पाया और जब उसमे से धुआँ उठने लगा तब उस पर पानी डालकर बुझाने की कोशिश की जाती रही, तब तक वह लपटेँ बनकर फैल चुकी थी, जिसकी ज़द मे समूचा बांग्लादेश आ चुका था। बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री ७६ वर्षीया शेख़ हसीना सोच रही थीँ कि आरक्षण-विरोधी आन्दोलन को पुलिस और सेना की ताक़त के सहारे कुचल देँगी; मगर पुलिस और सेना ने वैसा करने से इन्कार कर दिया था। बांग्लादेशी आर्मी-चीफ़ जनरल वकार उज जमाँ ने शालीनता से तख़्ता-पलट करते हुए, शेख़ हसीना के १५ वर्षोँ के शासन के अन्त का संकेत करते हुए, स्वयं यह घोषणा कर दी थी कि प्रधानमन्त्री शेख़ हसीना ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है; क्योँकि प्रदर्शनकारी शेख़ हसीना का इस्तीफ़ा ही चाह रहे थे। वहीँ कनिष्ठ सैन्य-अधिकारी भी नहीँ चाहते थे कि शेख़ हसीना सत्ता मे बनी रहेँ, फिर हसीना के लिए जान का ख़तरा भी हो गया था, इसलिए आर्मी-चीफ़ ने उन्हेँ और उनकी बहन को ४५ मिनट के भीतर ढाका छोड़ देने की सलाह दी थी, जबकि हसीना देश छोड़ने से पहले ‘राष्ट्र के नाम संदेश’ का प्रसारण कराना चाहती थीँ; परन्तु आर्मी-चीफ़ ने शेख़ हसीना और उनकी बहन शेख़ रेहाना को ‘एजेएक्स नाम के सी– १३० जे सैन्य-विमान’-द्वारा पूर्व-नियोजित तरीक़े से सुरक्षित रूप से ढाका की सीमा से बाहर कराते हुए, ५ अगस्त को अपराह्ण ५.४५ बजे भारत की सीमा मे दाख़िल करा दिया था। इस संदर्भ मे शेख़ हसीना ने ढाका छोड़ने से पहले दिल्ली के सम्बद्ध अधिकारियोँ से वार्त्ता भी कर ली थी। यही कारण है कि भारतीय सुरक्षा-एजेंसियोँ ने शेख़ हसीना को सुरक्षित ढंग से भारत मे प्रवेश करा दिया था।

अब शेख़ हसीना ने सुरक्षा की दृष्टि से बांग्लादेश की राजनीति से ‘तोबा’ कर ली है, जिसकी पुष्टि हसीना के पूर्व-सलाहकार पुत्र सजीब वाजेद जाय ने कर दी है। उन्हेँ भारतीय सैन्य-सुरक्षा मे ग़ाज़ियाबाद के हिण्डन सैन्य-हवाई अड्डा के एक आवास मे रखा गया है। बांग्लादेश के आर्मी चीफ़ जनरल वकार ने शेख़ हसीना को सुरक्षित पहुँचवा कर, साँप को बिना लाठी टूटे ही मार गिराते हुए, ”योग-क्षेमं वहाम्यहम्” की शैली मे सारी घटनाओँ के लिए स्वयं को दोषी मान लिया है। आर्मी-चीफ़ जनरल वकार-द्वारा शेख़ हसीना को सुरक्षित बाहर पहुँचवाने का एक कारण यह भी है कि शेख़ हसीना ने जनरल वकार को बड़े-बड़े ओहदे दिये हैँ और दूसरी बात यह कि जनरल वकार शेख़ हसीना के जीजा भी हैँ। जनरल वकार की पत्नी बेग़म सराहनाज़ कामालिका रहमान, शेख़ हसीना के चाचा मुस्तफ़िज़ुर्हमान की बेटी हैँ।

शेख़ हसीना को ढाका से सुरक्षित निकलवाने के बाद आर्मी-चीफ़ जनरल वकार ने अन्तरिम सरकार गठन करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने की घोषणा कर भी कर दी है, साथ ही यह भी एलान कर दिया है कि प्रदर्शनकारियोँ की सारी माँगेँ पूर्ण की जायेँगी। दूसरी ओर, जिस शेख़ हसीना ने ‘बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी’-अध्यक्ष एवं पू्र्व-प्रधानमन्त्री ७९ वर्षीया ख़ालिदा जिया पर कई प्रकार के आपराधिक कृत्य मे शामिल होने का आरोप लगाकर, उन्हेँ घर मे नज़रबन्द करा दिया था, उन्हेँ बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने तत्काल प्रभाव से आज़ाद करने का आदेश कर दिया है, साथ ही आरक्षण-विरोधी प्रदर्शन करनेवाले जिन छात्र-नेताओँ को गिरिफ़्तारी की गयी थी, उन सबकी रिहाई का भी हुक़्म सुनाया है। बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने संसद् को भंग करने की घोषणा के शीघ्र पश्चात् यथाशीघ्र अन्तरिम सरकार के गठन का एलान कर दिया है। राष्ट्रपति ने यह भी कहा है कि इस विरोध-प्रदर्शन के दौरान मारे गये लोग के पीड़ित परिवार को मुआवजा दिया जायेगा। आर्मी-चीफ जनरल वकार ने भी राजनीतिक नेताओँ से भेँट की है, जिनमे शेख़ हसीना की ‘अवामी लीग् पार्टी’ का कोई नेता शामिल नहीँ था। यह सारा घटनाक्रम कुछ ऐसा ही रहा है, जैसा कि पाकिस्तान मे कुछ समय-पूर्व कारागार मे बन्द इमरान ख़ान के साथ रहा। हमे नहीँ भूलना चाहिए कि शेख़ हसीना और हसीना वाजेद मे जमकर राजनैतिक शत्रुता रही है; दोनो एक-दूसरे को फूटी आँख देखना पसन्द नहीँ करतीँ।

अब प्रश्न है, ऐसी कौन-सी स्थिति थी, जिसके कारण समूचे बांग्लादेश को वहाँ के विद्यार्थियोँ के विध्वंसक आन्दोलन ने रक्तरंजित कर दिया था? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए हमे लन्दन मे रहनेवाले बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के उपाध्यक्ष तारिक रहमान की गतिविधियोँ को समझना होगा। तारिक और उसके पाकिस्तानी एजेण्टोँ ने लन्दन मे एक साज़िश तैयार की थी। बांग्लादेशी गुप्तचर एजेंसियोँ के अनुसार, कट्टर इस्लामिक आतंकी संघटन ‘जमात-ए-इस्लामी’ ने विपक्षी दल ‘बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी’ और उसके विद्यार्थी-संघटन ‘युवा-दल’ के साथ जो सौदा किया था, उसमे एक छात्र की हत्या पर ५ हज़ार टका (₹३,५००) और एक पुलिसकर्मी की हत्या पर १० हज़ार टका (₹७,०००) देने पर सहमति बनी थी। इस घटना को अंजाम देने के लिए बांग्लादेशी सुलतान के पास हवाला के माध्यम से बड़ी धनराशि भेजी गयी थी। इसका भण्डाफोड़ तब हुआ था जब सुलतान को गिरिफ़्तार कर लिया गया था।

बांग्लादेश मे सरकारी नौकरियोँ मे आरक्षण को लेकर १२ जुलाई से हिंसा की शुरुआत हो चुकी थी। प्रधानमन्त्री शेख़ हसीना ने १९ जुलाई को देश मे कर्फ़्यू लागू करा दिया था। देश की सड़कोँ पर सेना तैनात किया गया था और प्रदर्शनकारियोँ को देखते ही गोली मारने का आदेश कर दिया गया था। विद्यालय और १५ बड़े विश्वविद्यालय के छात्रावास ख़ाली करा लिये गये थे; पुलिस विद्यार्थियोँ के घर मे छापे मार रही थी।

पिछली जुलाई के शुरू के घटनाक्रम से अवगत होना होगा, जिसमे बांग्लादेश के उच्च न्यायालय की ओर से सरकारी नौकरियोँ के लिए ‘कोटा-प्रणाली’ को बहाल किया गया था। उसमे सरकारी नौकरियोँ मे ५६ प्रतिशत का आरक्षण था, जिसमे वर्ष १९७१ मे आज़ादी की लड़ाई लड़नेवाले सैनिकोँ के परिवारोँ को सरकारी नौकरियोँ मे ३० प्रतिशत का आरक्षण किया गया था; महिलाओँ और अल्प विकसित क्षेत्रोँ से आनेवाले लोग के लिए १०-१० प्रतिशत तथा मूल निवासियोँ के लिए ५ प्रतिशत तथा विकलांगोँ और किन्नरोँ के लिए १ प्रतिशत का आरक्षण था, जिनमे से सर्वाधिक विरोध सैन्य-परिवारोँ को दिये जानेवाले ३० प्रतिशत आरक्षण को लेकर था। प्रदर्शनकारी समूचे आरक्षण मे कमी चाहते थे; परन्तु शेख़ हसीना टस-से-मस तक नहीँ हुई; अन्तत:, विक्षुब्ध और आक्रोशित प्रदर्शनकारी सड़कोँ पर उतर आये थे, जिन्हेँ शेख़ हसीना ने ‘रजाकार’ घोषित कर दिया था।ज्ञातव्य है कि बांग्लादेश में ‘रजाकार’ शब्द का उपयोग वर्ष १९७१ के बांग्लादेश ‘मुक्ति संग्राम’ के दौरान पाकिस्तानी सेना के साथ सहयोग करनेवाले उन लोग के लिए किया गया था, जिन्होँने पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर बांग्लादेशी स्वतन्त्रतासेनानियोँ और निर्दोष नागरिकोँ के ख़िलाफ़ हिंसा और अत्याचार किये थे। इसका मतलब है कि उन्हेँ देशद्रोही वा राष्ट्रविरोधी माना जा रहा था।

अपना ऐसा अपमान जानकर ढाका विश्वविद्यालय और अन्य शिक्षण-संस्थानो के विद्यार्थी आगबबूला हो उठे और हर ओर से एक ही माँग उठने लगी– शेख़ हसीना इस्तीफ़ा दो!

विद्यार्थी-आन्दोलन परवान चढ़ने लगा, जिसे बलपूर्वक कुचलने के लिए तत्कालीन प्रधानमन्त्री शेख़ हसीना ने अपनी सारी ताक़त झोँक दी थी। विरोध- प्रदर्शन अपने चरम पर पहुँचने लगा; सैकड़ोँ की संख्या मे प्रदर्शनकारी मारे जाते रहे; हज़ारोँ घायल होते रहे; लगभग ११ हज़ार प्रदर्शनकारी गिरिफ़्तार किये गये; २० से अधिक पुलिसकर्मी मारे गये; व्यापक पैमाने पर विध्वंसक कृत्य किये गये, तब उस विस्फोटक स्थिति की गम्भीरता को समझते हुए, उच्चतम न्यायालय की ओर से निर्णय सुनाया गया था, जिसमे कहा गया था कि सरकारी नौकरियोँ मे कुल आरक्षण ७ प्रतिशत होगा; वर्ष १९७१ के योद्धाओँ का कोटा घटाकर ५ प्रतिशत की जायेगी, जिसमे ९३ प्रतिशत नौकरियाँ योग्यता के आधार पर दी जायेँगी; शेष २ प्रतिशत जातीय अल्पसंख्यकोँ, किन्नरोँ तथा विकलांगोँ के लिए निर्धारित की जायेँगी।

अब यह तथ्य उभरकर आ चुका है कि बांग्लादेश-विद्रोह मे ‘बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी’ कार्यकर्त्ताओँ और प्रतिबन्धित कट्टर इस्लामिक संघटन ‘जमात-ए-इस्लामी’ के उग्रवादियोँ का हाथ था।

प्रदर्शनकारियोँ के मनोनुकूल व्यवस्था किये जाने की सूचना पाकर अब वहाँ जश्न का माहौल है और विध्वंसक गतिविधियाँ सिकुड़ने लगी हैँ। हालात धीरे-धीरे सामान्य होने लगे हैँ। यदि शेख़ हसीना अपना अहंकारी और निरंकुश आचरण नहीँ प्रदर्शित करतीँ तो उन्हेँ आज-जैसा दिन देखने को नहीँ मिलता कि अपना ही देश अब उनके लिए बेगाना हो चुका है।

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