सम्बन्ध-सन्दर्भ में ‘धर्म’ की भाव-प्रवणता

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


‘धर्मभाई’ का अर्थ है, ‘धारण किया हुआ भाई’। जैसे आपने गुण-दोष को धारण कर लिया है वैसे ही आपने उस ‘भाई’ को भी धारण कर लिया है– मनसा-वाचा-कर्मणा। वह धर्म भाई ‘सगे भाई’ से भी बढ़कर होता है। सगा भाई भी ‘धर्मभाई’ हो सकता है। इसी प्रकार धर्म से सम्पृक्त करके जितने भी सम्बन्ध बनते-बनाये जाते हैं, वे रक्त-सम्बन्ध से भी बढ़कर सिद्ध होते हैं। यही सम्बन्ध ‘धर्मपत्नी’ के साथ भी है। पुरुष अपनी उस प्रकृति (पत्नी) को अपने हृदय में आजीवन धारण कर लेता है, जिसे ‘हृदयेश्वरी’ और ‘प्राणेश्वरी’ की संज्ञा से समलंकृत किया गया है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; ५ अगस्त, २०१८ ईसवी)