गजल : मैं ही महफ़िल में अकेला रह गया

 एस.पी.सुधेश-


उजड़ कर हर एक मेला रह गया
अन्त में दर्शक अकेला रह गया ।
सुखों की चाँदनी में तुम नहा लो
सीस पर कोई दुपहरी सह गया ।
हर शमा के साथ इक परवाना है
मैं ही महफ़िल में अकेला रह गया ।
हँसते हँसते आदमी रोने लगा
काल आ कर कान में क्या कह गया ।
हर किसी के साथ में सारा जहाँ
भीड़ में मैं ही अकेला रह गया ।
हवामहलों से हवा यह कह गई
एक दिन पुख़्ता क़िला भी ढह गया ।