काश ऐसा होता प्यारे..!

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

पूरब होता पच्छिम होता, सूरज-चाँद नहीं होते,
धरती और आकाश भी होता, जीव-जगत् नहीं होते |
हम भी होते तुम भी होते, सरोकार नहीं होते,
कितना अच्छा होता हम, जब होकर भी नहीं होते |
बदरी होती बिजुरी होती, दादुर-मोर नहीं होते,
सावन होता फागुन होता, कजरी-रंग नहीं होते |
खेत होता बागीचे होते, अन्न-जल नहीं होते,
सजना होता सजनी होती, प्रेम-प्यार नहीं होते |
गलियाँ होतीं सड़कें होतीं, चलते क़दम नहीं होते,
इत-उत मुर्दाघाट भी रहते, मुर्दे कहीं नहीं होते |
मरना होता हँसना होता, भाव-विचार नहीं होते,
काश! ऐसा होता प्यारे! जब हम कहीं नहीं होते |
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ५ जुलाई, २०२० ईसवी)