मारी गयी है मति

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक–
गति सबही की एक है, दुर्गति अलग विधान।
पापी समझ न पा रहे, पाते नहीं निदान।।
दो–
पापी इस संसार मे, भाँति-भाँति के लोग।
लटके उलटा हैं दिखें, तन के-मन के रोग।।
तीन–
घटिया शासन-नीति है, भाड़े के हैं लोग।
हिन्दू-मुस्लिम कर रहे, छकते छप्पन भोग।।
चार–
रूप दिखे चण्डाल-सा, है मक्कारी वेश।
गर्जन गुण्डा-सा करे, जान चुका है देश।।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २३ जुलाई, २०२२ ईसवी।)