चिलमन को सो लेने दो

आँसू की तबीअत नासाज़ है
पलकों को न छेड़ो।
उसके गेसू मे
इक अजीब-सी लर्जिश† की बुनावट है।
ज़ख़्मी बूढ़े दरख़्त को,
सिसकियाँ भर लेने दो।
शम्अ न बुझाओ,
तक्रीज़‡ को ख़ारिज़ करना है।
काइनात* मे ज़ह्र घोलते,
शैतान चेहरों को–
मनमानी कर लेने दो।
मत खींचो रस्सी,
चिलमन को जीभर सो लेने दो।
समय आनेवाला है, 
कर्मो का दस्तावेज़ लेकर।

क्लिष्ट शब्दार्थ :–
† थरथराहट/कम्पन
‡ आलोचना

*ब्रह्माण्ड

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २३ फ़रवरी, २०२४ ईसवी।)