● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
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आँसू की तबीअत नासाज़ है पलकों को न छेड़ो। उसके गेसू मे इक अजीब-सी लर्जिश† की बुनावट है। ज़ख़्मी बूढ़े दरख़्त को, सिसकियाँ भर लेने दो। शम्अ न बुझाओ, तक्रीज़‡ को ख़ारिज़ करना है। काइनात* मे ज़ह्र घोलते, शैतान चेहरों को– मनमानी कर लेने दो। मत खींचो रस्सी, चिलमन को जीभर सो लेने दो। समय आनेवाला है, कर्मो का दस्तावेज़ लेकर।
क्लिष्ट शब्दार्थ :–
† थरथराहट/कम्पन
‡ आलोचना
*ब्रह्माण्ड
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २३ फ़रवरी, २०२४ ईसवी।)