निज-जीवन से देश बड़ा होता है; हम मिटते हैं, तब राष्ट्र खड़ा होता है…

डॉ० निर्मल पाण्डेय (इतिहास-व्याख्याता/लेखक)

डॉ• निर्मल पाण्डेय

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जनवरी 1939 में सुभाष चन्द्र बोस को ‘देशनायक’ विरुद देते हुए लिखा: “सुभाष चन्द्र! बंगाल के कवि के रूप में मैं ‘लोगों का नेता’ होने का सम्मान आपको प्रदान करता हूं। गीता से हमें यह भरोसा मिला है कि समय-समय पर बुराई का नाश करने के लिए प्रभु अवतार लेते हैं। जब देश की आत्मा पर हर दिशा से बदकिस्मती का आक्रमण हो रहा हो, उसका रुदन सामने आ रहा हो तो उसे बचाने वाले आगे आते हैं। पापी ताकतों के आंतरिक व बाह्य षड्यंत्र के कारण, हम लोग उन शक्तियों का मुकाबला करने में और उनके आक्रमण से स्वयं को बचाने में असमर्थ हैं।

राष्ट्रव्यापी संकट की घड़ी में हमें शक्तिशाली व्यक्तित्व की सेवाओं की आवश्यकता है। निडर आत्मविश्वास से परिपूर्ण एक ऐसे जन्मजात नेता की आवश्यकता है, जो हमारी प्रगति को खतरा पैदा करने वाले दुर्भाग्य का सामना कर सके। आप वैसे ही देशनायक हैं।

… जन्मजात नेता कभी भी अकेले नहीं पड़ते कभी भी पलायनवाद में विश्वास नहीं करते भविष्य के सूर्योदय का सतत संदेश उनके जीवन में अभिप्रेत होता रहता है। मुझे आशा है आप हमारी मातृभूमि के लिए आशा की नई किरण लेकर आए हैं। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि आप देश के नेतृत्व का कार्यभार संभाले और देशवासियों को सही दिशा में ले जाएं…

…आपका अथक प्रयास यही होना चाहिए कि आप अपने देशवासियों को दृढ़प्रतिज्ञ बनाएं। उनमें जीवित रहने और संघर्ष करने की इच्छाशक्ति जगाएं। वह आपके जीवन से उदाहरण लेकर प्रेरणा प्राप्त करें और शक्तिशाली बने। देश को एक स्वर में स्वीकार करने दें कि यह स्थान आपका है।”

(यह संभाषण रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा जनवरी 1939 में लिखा गया था और प्रकाशित भी हुआ था। न जाने किन कारणों से यह प्रसारित नहीं हो पाया और टैगोर ने सुभाष चन्द्र बोस के स्वागत के लिए जो योजना बनाई थी स्थगित कर दी गई। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात समाचार पत्रों में यह प्रकाशित हुआ। टैगोर 1941 दिवंगत हुए और सुभाष चन्द्र बोस ने यह अभिभाषण नहीं देखा।)

स्रोत : शिशिर बोस सम्पादित और प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित नेताजी संपूर्ण वांग्मय, खण्ड 9)

नेताजी का जीवन-कर्म-दर्शन भारतीय जनमानस को आम तौर पर ‘नेहरू-गांधी केन्द्राभिमुख’ औपनिवेशिक भारतीय राजनीति और इतिहास-लेखन को पुनर्विचार की रंगभूमि में आम जनमानस संग ज्ञान-पिपासु इतिहासकारों-शोधार्थियों को आज भी आमंत्रित कर रहा। आवश्यकता है विगत कुछ वर्षों में नेताजी सम्बंधित नए स्रोतों के हवाले नवइतिहासलेखन में नवीन दृष्टि अपनाने की।

मां भारती के ऐसे वीर सपूत, महान देशभक्त, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती वर्ष में जयंती पर उन्हें कोटिशः नमन।