जिसे हम एसीपी अजय सिंह राठौर समझने की भूल करते रहे , वह वास्तव में गुलफाम हुसैन है

कभी आमिर खान का मैं जबरा फैन हुआ करता था।

साल में केवल एक मूवी। और मूवी भी ऐसी कि जैसे उस मूवी के कैरेक्टर को खुद जीता था वह। मंगल पांडेय के लिए मूँछे बढ़ाना, दंगल के लिए वजन और पेट बढ़ाना, गजनी का वो विशेष अतरंगी लुक, पीके में बड़े-बड़े कानों वाला एलियन और लगान में बिल्कुल गँवई लेकिन दृढ़ युवा का किरदार।

मतलब अपने पात्र के रंग में पूरी तरह रंग जाते थे ‘मिस्टर परफेक्शनिस्ट’। आमिर के अभिनय में सब कुछ कितना रियल, कितना जीवंत मालूम पड़ता था। एक से एक उम्दा फिल्में उसने की, जिन्हें बार-बार देखने का मन करे। यहाँ तक कि मैं तो उसके ऐड का भी दीवाना था। ऐड देखकर भी मैं लहालोट हो जाया करता था क्योंकि आमिर उनमें भी जान फूंक देता था। ऐसे लगता था कि जैसे कोई शार्ट मूवी देख रहें हों।

“सत्यमेव जयते” धारावाहिक भी मैंने खूब चाव से देखा और हमारे देश की सामाजिक बुराइयों को उजागर करने हेतु आमिर को बार -बार सराहा। हालाँकि उस समय भी मेरे एक दोस्त ने मुझे चेताया था कि इसे हिंदुओं का शिवलिंग पर दूध बहाना अंधविश्वास लगता है लेकिन बकरीद पर मुसलमानों का खून बहाना धर्म का कार्य, सेक्युलरिज्म लगता है। क्या इसे मुस्लिम समाज मे प्रचलित हलाला, बहुविवाह, तीन तलाक़, बुरका आदि अंधविश्वास और कुरीति नहीं लगते हैं? वह इन पर कोई एपिसोड क्यों नही करता है?

लेकिन तब मैं सेक्युलर हुआ करता था, इसलिए उसे यह कहकर चुप करा दिया कि हर बात में हिन्दू-मुस्लिम न किया करो।

पर! हिंदुओं को उनके अंधविश्वास, कुरीतियों पर ज्ञान, प्रवचन देने वाले मियां आमिर खान की जब उमरा के दौरान मक्का में शैतान पर पत्थर मारते हुए तस्वीर मैंने देखी और फिर गौवंश के हत्यारे अख़लाक़ पर जब इसने असहिष्णुता का रं# रोना रोया, देश छोड़ने की बात की, टुकड़े टुकड़े गैंग के साथ खड़ा हुआ तो मेरे भी कान खड़े हो गए ।

अखलाक, जुनैद पर डर के मारे देश छोड़ने वाले मियां आमिर को पालघर साधुओं की मॉब लींचिंग से डर नहीं लगा। दिल्ली, बैंगलोर हिंसा पर इसके मुँह से एक शब्द न फूटा। अभी हाल में हुए उदयपुर, कोल्हापुर कांड पर भी इसने चुप्पी साधे रखी।

इस सेक्युलर को इज़रायल के प्रधानमंत्री से मिलने में डर लग रहा था लेकिन भारत के धुर विरोधी, कश्मीर मामले में पाकिस्तान के साथ खड़े देश तुर्की के राष्ट्रपति की बीवी के साथ खूब फोटोग्राफी की।

कुल मिलाकर हाजीलाल चड्ढा ने यह सिद्ध कर दिया है कि जिसे हम ‘एसीपी अजय सिंह राठौर’ समझने की भूल करते रहे , वह वास्तव में ‘गुलफाम हुसैन’ है।

(विनय सिंह बैस)