नरेन्द्र मोदी को ‘चैम्पियन्स ऑव़ द अर्थ’ एवार्ड देने का औचित्य?

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ‘एवार्ड’ देने की बेईमानी किस तरह से की जाती है, इसे अपने देश में ही रहकर समझा जा सकता है।

हमारे देश में सड़क और रेल-मार्गों के किनारे वर्षों से लगे पेड़ों की हत्याएँ पिछले कुछ वर्षों से लगातार की जा रही हैं। एक वृक्ष का हमारे जीवन में कितना महत्त्व है, इसे सभी जानते हैं। जो हमें जीवनदायिनी गैस ‘ऑक्सीजन’ उपलब्ध कराता है और हमारी ज़मीन की आन्तरिक शक्ति को बनाये रखता है; और भी लाभ देता है, उसकी हत्या यदि किसी देश की केन्द्र-राज्य-सरकारें कराती हैं तो आप क्या कहेंगे?

जिस देश में सड़क-मार्ग और व्यावसायिक भवन-निर्माण के नाम करोड़ों वृक्ष कटवा कर धरती की आन्तरिक शक्ति को दुर्बल कर दिया जाता रहा है, उसी देश अर्थात् भारत के प्रधानमन्त्री को ‘संयुक्त राष्ट्र’ की ओर से ‘चैम्पियन्स ऑव़ द अर्थ’ का सम्मान दिया जाये तो इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है? मोदी को सम्मान देकर संयुक्त राष्ट्र ने भारत के सवा/डेढ़ अरब जनता के घाव पर नमक छिड़ककर महा अपमान किया है।

उक्त सम्मान उस देश को दिया जाना चाहिए था, जिस देश में वृक्षों की पूजा की जाती है; धरती को उर्वरा बनाये रखने के लिए सात्त्विक उपक्रम किये जाते हैं; वृक्षों की उपयोगिता-महत्ता को स्वीकार कर, उन्हें काटा नहीं जाता; काटने नहीं दिया जाता। जहाँ बड़ी संख्या में पौधारोपण किया जाता है, उस देश के राष्ट्राध्यक्ष को वह सम्मान दिया जाना चाहिए था, ताकि उस सम्मान की उपयोगिता और सार्थकता रेखांकित हो सके। उस सम्मान को देखकर देश के वे सभी वृक्ष उदास हैं, जिनकी गरदन रेतने के लिए सरकारी मशीनें जल्लाद की तरह से हुक़्म की प्रतीक्षा में हैं।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; ३ अक्तूबर, २०१८ ईसवी)