● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
अंकुश नहीँ जब़ान पे, बोलेँ ऊल-जुलूल।
हवा घृणा की चल रही, पकड़ लिया है तूल।।
मतदाता भी सोच मे, कौन हमारे साथ।
दिखते सब बहुरूपिये, कहाँ दबायेँ हाथ?
थू-थू सबकी हो रही, जीभ अभागी मौन।
चिन्तन काला दिख रहा, प्रश्न करेगा कौन?
कैसा यह मतदान है, कैसा है प्रतिशोध।
सबसे पहले देश है, कौन कराये बोध?
बटन दबाना जानकर, अवसर है अनुकूल।
क़ानूनी अधिकार है, करना कभी न भूल।।
कहीँ मवाली दिख रहे, औ’ लम्पट-मक्कार।
‘नोटा’ अपने पास है, मिल भेजो धिक्कार।।
नीर-क्षीर विवेक का, रखना बढ़कर मान।
जनता का हित है कहाँ, करना हरदम भान।।
राजनीति के पंक मे, सने सभी हैँ लोग।
बटन दबाना सोचकर, हो उसका उपयोग।।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १ मई, २०२४ ईसवी।)