पकड़ गिराओ धर्मान्धों को!

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

केवल धन्धा-केवल चन्दा,
भक्ति-भाव है मन्दा।
भक्त और भगवान् है कैसा,
खेल खेलते गन्दा।
सनातनी का खेल निराला,
गले पड़ा ज्यों फन्दा।
पकड़ गिराओ धर्मान्धों को!
रगड़ो जैसा रन्दा।
एक कबीर की और ज़रूरत,
लाओ कहीं से बन्दा।
(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १७ मार्च, २०२३ ईसवी।)