तमन्नाओं पे शर्मिंदा 

डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’


अपनी तमन्नाओं पे शर्मिंदा क्यूँ हुआ जाये

एक हम ही नहीं जिनके ख़्वाब टूटे हैं

इस दौर से गुजरे हैं ये जान-ओ-दिल

संगीन माहौल में जख़्म सम्हाल रखे हैं

नजर उठाई बेचैनी शर्मा के मुस्कुरा गयी

ख़्बाब कुछ हसीन दिल से लगा रखे  हैं

दियार-ए-सहर में दर्द-शनास हूँ तो क्या

बेरब्त उम्मीदों में ग़मज़दा और भी हैं

अहद-ए-वफ़ा करके ‘राहत’ जुबां चुप है

वर्ना आरजुओं के ऐवां और भी है


शब्दार्थ:

१. दियार-ए-सहर – सुबह की दुनियाँ

२. दर्द-शनास – दर्द समझने बाला

३. अहद-ए-वफ़ा – प्रेम प्रतिज्ञा

४. ऐवां – महल