तुम्हारे भीतर तक
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय बेशक,तुम हो।तुम्हारे साथ मै नहीँ;क्योँकि तुम मै-मय हो।तुम्हारे-मेरे मध्य का मै,एक अन्तराल-शिला पर बैठा,कुचक्र रच रहा है।तुम और मै मिल-बैठ,उस अन्तराल को पी रहे हैँ–भीतर तक।आँखेँ–पलकोँ पर प्रश्नो को सँभाले,तुमसे […]