धरम न दूसर सत्य समाना। आगम निगम पुरान बखाना॥

हिन्दू लोग जबसे सत्य के स्थान पर ईश्वर, भगवान, देवी, देवता, भूत, प्रेत की पूजा को धर्म मानकर जीवन जीना प्रारम्भ किए, तब से हिंदुओं का बेड़ागर्क हो गया।

विश्वव्यापी हिन्दूधर्म बिखरता चला गया।
और इनके पारस्परिक संघर्ष में यहूदी, बौद्ध, जैन, ईसाई, मुस्लिम, सिख, बहाई, पारसी अनेक निराधार धर्मों का निरर्थक अस्तित्व प्रकट हो गया।
जिससे संघर्ष और युद्ध बढ़ते चले गए और सृष्टि विनाश के कगार तक जा पहुची।

सत्य की उपेक्षा या परित्याग सदैव हानिकारक है।

सत्य ही परम उपास्य है, आराध्य है।
सत्य ही चिरपुरातन, नितनूतन, शाश्वत एवम् सनातन धर्म है।

प्रसिद्ध है-
धर्म न दूसर सत्य समाना।
आगम निगम पुराण बखाना।।

सत्य को हटाकर दूसरा कुछ भी धर्म का आधार नहीं हो सकता।

सत्य निर्विकल्प है।
सत्य ही ब्रह्म है।
सत्य ही ईश्वर है।
सत्य ही भगवान है।
सत्य ही दिव्य है।
सत्य ही पूज्य है।
सत्य ही आदर्श है।
सत्य ही दर्शन है।
सत्य ही सिद्धांत है।
सत्य ही धर्म है।
सत्य ही सौभाग्य का द्वार है।
सत्य ही भेद में अभेद का बोध है।
सत्य ही अनेकता में एकता का अनुभव है।
सत्य ही खण्ड में अखण्ड का ज्ञान है।
सत्य ही स्व का सर्व में रूपांतरण है।
सत्य ही स्वार्थ का सर्वार्थ में परिवर्तन है।
सत्य ही स्वहित का सर्वहित में विलय है।
सत्य ही सिद्धान्त, सभ्यता, संस्कृति, संसाधन को सात्त्विक बनाता है।
सत्य ही मनुष्यों के बीच परस्पर प्रेम, न्याय, पुण्य के व्यवहार का मार्ग प्रशस्त करता है।
सत्य का ज्ञान ही मनुष्य को तम से ज्योति की ओर ले जाता है।

सत्य ही मनुष्य को मृत्यु से जीवन की ओर ले जाता है।

सत्य ही मनुष्य को दुर्बन्ध से बचाकर सम्बन्ध की ओर ले जाता है।
सत्य ही मनुष्य को विनाश से विकास की ओर ले जाता है।

सत्य ही मैं और तू के बीच संघर्ष को समाप्त करता है।
सत्य ही ‘स्व’ और ‘पर’ के बीच सम्मेल कराता है।

सत्य ही मित्रता को जन्म देकर शत्रुता को दूर करता है।
सत्य ही मनुष्य को दानव से मानव और देव बनाता है।

सत्य ही मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि प्रदान करता है।
सत्य ही मनुष्य को जंगलराज से बचाकर मंगलराज की ओर ले जाता है।

सत्य ही मनुष्य को पशतुल्य जीव से ऊपर उठाकर मानवीय गरिमा प्रदान करता है।
सत्य ही मनुष्यों के बीच प्रतिद्वन्द्विता के स्थान पर प्रतियोगिता को प्रतिष्ठित करता है।

सत्य ही सभी मनुष्यों का व्यक्तिगत धर्म है जो परिवार में प्रेम, और समाज में न्याय, और समष्टि में पुण्य को सुनिश्चित करता है।

भगवान, ईश्वर, खुदा, अल्लाह, यहोवा, गॉड, सुप्रीम पॉवर, देवी, देवता, भूत, प्रेत, चमत्कार, राजा, राजनेता, बाहुबली, हथियारबाज, गुंडा, पंडा, पुजारी, चमत्कारी, योगी, बैरागी, साधू, महात्मा, ऋषि, महर्षि, ध्यानी, समाधानी पर आधारित धर्म के स्थान पर केवल ज्ञान-विज्ञान द्वारा प्रकाशित सत्य की उपासना प्रारम्भ कीजिए और सत्य द्वारा प्रशस्त प्रेम-न्याय-पुण्य को क्रमशः पारिवारिक, सामाजिक, सामष्टिक धर्म के रूप में अपनाइये।

एक दिन सारा जगत् इस सत्यात्मक धर्म के समक्ष नतमस्तक होगा।

तब हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी, बहाई इत्यादि सभी काल्पनिक असत् धर्मों का अस्तित्व स्वतः मिट जायेगा।
सत्सूर्य उदित होने पर अन्धकार स्वतः मिट जाता है उसे मिटाना भी नहीं पड़ता।
सत्य को धर्म के रूप में स्वीकार करते ही संसार में सतयुग वापस आ जायेगा।
अतः हे प्रबुद्ध एवं सुहृद लोगों सत्य की उपासना शीघ्र प्रारम्भ कीजिए, अंतिम विजय तो सत्य की ही होती है-
सत्यमेव जयते…!!!
पूरी आत्मा से बोलिये….!
सत्यं शरणं गच्छामि….!!!

✍️?? (राम गुप्ता, स्वतन्त्र पत्रकार, नोएडा)